Thursday, April 28, 2011

मेरा मन

मेरा मन
हमारा नाम ले कर भी तुम्हें अच्छा नही लगता
हमारी बात करना भी तुम्हे अच्छा नही लगता
हमारी एक भी खूबी तुम्हें अच्छी नही लगती
बता दो और क्या है जो तुम्हें अच्छा नही लगता |

मेरी आदत पुरानी है नही छूटेगी कैसे भी
मेरी कसमे पुरानी हैं नही टूटेंगी कैसे भी
बहुत मजबूर हूँ खुद भी बदलना चाहता हूँ मैं
परन्तु क्या करूं आदत नही छूटेगी कैसे भी |

तुम्हारे प्यार ने मुझ को नई राहें दिखाई हैं
तुम्हारे प्यार ने मेरी नई साँसे चलाई हैं
तुम्हारा प्यार ही मकसद है मेरी सांस चलने का
तुम्हारे प्यार ने मुझ को नई ज्योति दिखाई है |

चलो अच्छा है मन मेरा तुम्ही ने तो मिलाया है
कहाँ पर था वह जाने उसे वापिस बुलाया है
तुम्ही ने तो कहा उस को घरौंदे और मत ढूँढो
वही तो एक मंजिल ही जिस तुमने बताया है |

चलो अच्छा है तुमने ही यह खुद ही बताया है
चलो अच्छा है तुमने ही यह खुद ही बताया है
मुझे मालूम है धडकन हमारी एक ही तो है
तुम्हारा दिल है मेरे पास ये तुमने बताया है ||

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत कोमल भावों से सजी अच्छी रचना

प्रवीण पाण्डेय said...

संबन्धों की स्पष्टवादिता उसे और सांध्र कर जाती है।