क्रौंच वध
पहली बार तो नही हुआ था
पृथ्वी पर क्रौंच वध
परन्तु उस की पीड़ा को
शायद पहली ही बार
अनुभव किया गया था
जिस से बह चली थी
करुणा की अजस्र धारा
जो प्लावित होती ही रही
क्यों कि उस ने नही क्या था दावा
दूसरों को द्रवित करने का
अपितु कवि स्वयम द्रवित हो गया था
उस पीड़ा से
जिस से प्रादुर्भूत हुए
महा काव्य मानवता के ||
7 comments:
हर द्रवित कवि के पीछे ऐसी ही घटनायें घट रही हैं।
पीड़ा ही सही मायने में कवि को जन्म देती है ...
priy shreshthh,
pahle shlok ka prithvi par avataran ka karan bana kraunch -----[ sa mam pat ---] sunder darshan ka varnan sanskaron se ..... achhi abhivyakti .sadhuvad ji
bemisal prastuti
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..
nice expressions......
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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