नव वर्ष सुहाना हो
सब खुशियाँ खूब मिलें
खुशियों का खजाना हो ||
चाहत हों सभी पूरी
अपनों से निकटता हो
मिट जाएँ सभी दूरी ||
मैसम भी सुहाने हों
फूलों की गंध लिए
आंगन में बहारें हों ||
सभी मित्रों को आंग्ल नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएं प्रदान करता हूँ कृपया स्वीकार कर आभारी करें
आप का
वेद व्यथित
मेल: dr.vedvyathit@gmail.com
blog : http://sahityasrajakvedvyathit.blogspot.com
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Friday, December 31, 2010
Friday, December 17, 2010
Wednesday, December 15, 2010
शीत ऋतू की त्रि पदी
सर्दी अपना रंग दिखा ही रही है मैंने मित्रों के स्नेह से एक नये छंद त्रि पदी की रचना की है जो पहले भी आप ने मेरे ब्लॉग पर व अन्य स्थानों पर पढ़ा है उसी को आगे बढ़ाते हुए फिर कुछ शीत ऋतू की त्रि पदी लिखी हैं इन्हें भी आप का पूर्वत स्नेह व आशीष मिलेगा |
शीत ऋतू की त्रि पदी
जब आग बुझी होगी
तो बाक़ी बचेगा क्या
बस बर्फ जमीं होगी
ये सर्द बनती है
बर्फीली हवाएं हैं
ये खूब सताती हैं
ये बर्फ तो पिघलेगी
बस दिल को गर्म रखना
मजबूर हो पिघलेगी
ये बर्फ जमाये तो
सांसों को गर्म रखना
जब सर्द बनाये तो
ठिठुरन तो होगी ही
ये बर्फ की मन मानी
पर ये भी पिघलेगी
ये सर्द हवाएं हैं
ये प्यार के रिश्तों को
बस बर्फ बनाएं हैं
क्यों चुप्पी छाई है
इन लम्बी रातों में
क्यों बर्फ जमाई है
कुछ बर्फ पिघलने दो
बस दिल को गर्म रखना
बस दिल को धडकने दो
किस किस को बताओगे
जो बर्फ सी यादें हैं
किस किस को सुनाओगे
यादें कैसे भूलूँ
ये बर्फ सी जम जातीं
उन को कैसे भूलूँ
जब बर्फ जमी होगी
दिल की गर्माहट से
कुछ तो पिघली होगी
यादें पथरीली हैं
वे दिल को जमातीं हैं
ऐसी बर्फीली हैं
ये केश हैं अम्मा के
ये बर्फ के जैसे हैं
बीते दिन अम्मा के
विधवा के आंचल सी
ये बर्फ की चादर है
दुःख की बदली जैसी
शीत ऋतू की त्रि पदी
जब आग बुझी होगी
तो बाक़ी बचेगा क्या
बस बर्फ जमीं होगी
ये सर्द बनती है
बर्फीली हवाएं हैं
ये खूब सताती हैं
ये बर्फ तो पिघलेगी
बस दिल को गर्म रखना
मजबूर हो पिघलेगी
ये बर्फ जमाये तो
सांसों को गर्म रखना
जब सर्द बनाये तो
ठिठुरन तो होगी ही
ये बर्फ की मन मानी
पर ये भी पिघलेगी
ये सर्द हवाएं हैं
ये प्यार के रिश्तों को
बस बर्फ बनाएं हैं
क्यों चुप्पी छाई है
इन लम्बी रातों में
क्यों बर्फ जमाई है
कुछ बर्फ पिघलने दो
बस दिल को गर्म रखना
बस दिल को धडकने दो
किस किस को बताओगे
जो बर्फ सी यादें हैं
किस किस को सुनाओगे
यादें कैसे भूलूँ
ये बर्फ सी जम जातीं
उन को कैसे भूलूँ
जब बर्फ जमी होगी
दिल की गर्माहट से
कुछ तो पिघली होगी
यादें पथरीली हैं
वे दिल को जमातीं हैं
ऐसी बर्फीली हैं
ये केश हैं अम्मा के
ये बर्फ के जैसे हैं
बीते दिन अम्मा के
विधवा के आंचल सी
ये बर्फ की चादर है
दुःख की बदली जैसी
Thursday, December 9, 2010
ढूढने वे बहाने लगे
ढूँढने वे बहाने लगे
उन को हम याद आने लगे ||
कोयलें कूकने क्या लगीं
आम पर बौर आने लगे ||
बात जब भी सताने लगी
वायदे याद आने लगे ||
कच्चे धागे से बंधन थे जो
वो ही दिल को सताने लगे ||
कौन सुनता हमारी यहाँ
जख्म सब ही दिखने लगे ||
बात जब जब भी उन की हुई
जख्म फिर से सताने लगे ||
मन की दूरी कहाँ कम हुई
हम बनावट बढ़ाने लगे |
उन को हम याद आने लगे ||
कोयलें कूकने क्या लगीं
आम पर बौर आने लगे ||
बात जब भी सताने लगी
वायदे याद आने लगे ||
कच्चे धागे से बंधन थे जो
वो ही दिल को सताने लगे ||
कौन सुनता हमारी यहाँ
जख्म सब ही दिखने लगे ||
बात जब जब भी उन की हुई
जख्म फिर से सताने लगे ||
मन की दूरी कहाँ कम हुई
हम बनावट बढ़ाने लगे |
Monday, December 6, 2010
नव गीतिका
इस तरह तू हवा की वकालत न कर
देख , दुनिया की ऐसे अदावत न कर
आसमाँ से तेरी दोस्ती क्या हुई
सोच अपनों की ऐसे खिलाफत न कर
चाँद तारों की ऐसे खिलाफत न कर
धूप सूरज की ऐसे खिलाफत न कर
ठीक है तेरी दौलत की गिनती नही
क्या पता है समय का दिखावट न कर
हाथ में तेरे बेशक है ताकत सही
गैब से थोडा डर तू शरारत न कर
प्यार के बोल मीठे हैं अनमोल हैं
और इस के सिवा तू लिखावट न कर
जान ले तेरे प्रीतम की मूरत है क्या
छोड़ दे और चीजें इबादत न कर
देख , दुनिया की ऐसे अदावत न कर
आसमाँ से तेरी दोस्ती क्या हुई
सोच अपनों की ऐसे खिलाफत न कर
चाँद तारों की ऐसे खिलाफत न कर
धूप सूरज की ऐसे खिलाफत न कर
ठीक है तेरी दौलत की गिनती नही
क्या पता है समय का दिखावट न कर
हाथ में तेरे बेशक है ताकत सही
गैब से थोडा डर तू शरारत न कर
प्यार के बोल मीठे हैं अनमोल हैं
और इस के सिवा तू लिखावट न कर
जान ले तेरे प्रीतम की मूरत है क्या
छोड़ दे और चीजें इबादत न कर
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