Monday, May 20, 2013

नव गीतिका



नव गीतिका 
यह रचना गजल नही है 
रौशनी कैद है और परेशान  है 
अब जमाने की ये ही तो पहचान है । 
हाँ मैं हाँ बस  करो और कुछ न कहो 
फिर तो सब से  भले आप  इन्सान हैं। 
भूल कर भी उठाया यदि प्रश्न तो 
आप इन्सान कब आप हैवान हैं । 
भूल जाओ यहाँ सच बड़ी चीज है 
संच कहने से मिलता नही मान है ।
आँख भी बंद हो , कान मुंह बंद हो 
फिर तो बन जाओगे आप परधान है। 
झूठ ही तुम कहो जोर से पर कहो 
मान लेंगे उसे लोग सच बात है ।
इस जमाने का कैसा ये दस्तूर है 
पूजते हैं उसे जो की बदमाश है । 
आप बच्चों के जैसे न बातें करें 
जिस से पूरा हो स्वारथ वो भगवान है । 
इस जमाने से कैसे लड़ोगे भला 
सांच अब न यहाँ  कोई हथियार है ।।   
डॉ वेद व्यथित 
09868842688