भूले कब जाते हैं
जो याद बहुत आते
वे खूब सताते हैं |
जो खूब सताते हैं
वे याद बहुत आते
पर भूले जाते हैं ||
कैसे उन को भूलूँ
हैं साँस वह मेरी
कैसे उन को भूलूँ ||
भूलों को जरा कह दो
वे याद रहें मुझ को
ये बात उन्हें कह दो ||
यह बात जरूरीहै
यह याद रहेगी ही
यह भूल ही ऐसी है ||
कुछ भूलें मीठी हैं
इन्हें भूल नही सकते
वे हर पल मीठी हैं ||
वह बात अभी भी है
वह भूल नही भूली
वह याद अभी भी है ||
भूलों को नही भूलें
फिर भूल नही होगी
कहे को उन्हें भूलें ||
भूलों को यदि भूलें
फिर भूल करेंगे हम
उन को न कभी भूलें ||
धोड़ा सा अंतर है
यादों और भूलों में
पर अंदर दोनों हैं ||
भूलों को भूल गये
यह बात नही जमती
क्यों खुद को भूल गये ||
इस मन के झरोखे में ||
यादों के झरोखे में
कुछ भूल तो होंगी ही
Sunday, July 31, 2011
Sunday, July 24, 2011
चौपदे
भूलो राम राज की बातें ये ही अपना नारा है
घपलिस्तान बनायेंगे हम यही हमारा नारा है
अन्ना ,बाबा तो बेचारे यूँ ही खुद मर जायेंगे
बेवकूफ ये जनता है हम इस को नाच नचाएंगे ||
अन्ना जी क्या याद नही है पांच जून की घटना
अच्छी तरह हमे आता है मुंह को बंद करना
नही भूलना पांच जून को फिर दोहरा सकते हैं
शासन कैसे करना है ये हम को नही बताना ||
आजादी का जश्न मनाओ ये किस ने रोका है
पर सत्ता न हाथ लगेगी ये केवल धोखा है
सत्ता पर तो केवल और केवल अधिकार हमारा
बाक़ी कुछ भी करो और हम ने किस को रोका है ||
अब के लाल किले से जब झंडा फहराया जायेगा
उस के बाद बहुत सी बातों को फिर दोहराया जायेगा
पर मंहगाई और आतंकी घटना कम न होंगी
इसी तरह से देश खूब यूं ही लुटवाया जायेगा ||
मन्तर मैंने पढ़े और बिल में तुम हाथ लगा लो
घोटालों की हिस्से दारी चुपचाप पंहुंचा दो
बोलोगे तो पता तुम्हे है हम क्या कर सकते हैं
कुछ दिन मुंह पर अंगुली रख कर जेल में मौज उड़ा लो ||
पिछले सालों की भांति ही पन्द्रह अगस्त मनेगा
उसी भांति ही लाल किले पर झंडा भी फहरेगा
पर जिस अंतिम व्यक्ति कि गाँधी ने बात कही थी
शायद वो बेचारा तो अब दूर भी नही दिखेगा
घपलिस्तान बनायेंगे हम यही हमारा नारा है
अन्ना ,बाबा तो बेचारे यूँ ही खुद मर जायेंगे
बेवकूफ ये जनता है हम इस को नाच नचाएंगे ||
अन्ना जी क्या याद नही है पांच जून की घटना
अच्छी तरह हमे आता है मुंह को बंद करना
नही भूलना पांच जून को फिर दोहरा सकते हैं
शासन कैसे करना है ये हम को नही बताना ||
आजादी का जश्न मनाओ ये किस ने रोका है
पर सत्ता न हाथ लगेगी ये केवल धोखा है
सत्ता पर तो केवल और केवल अधिकार हमारा
बाक़ी कुछ भी करो और हम ने किस को रोका है ||
अब के लाल किले से जब झंडा फहराया जायेगा
उस के बाद बहुत सी बातों को फिर दोहराया जायेगा
पर मंहगाई और आतंकी घटना कम न होंगी
इसी तरह से देश खूब यूं ही लुटवाया जायेगा ||
मन्तर मैंने पढ़े और बिल में तुम हाथ लगा लो
घोटालों की हिस्से दारी चुपचाप पंहुंचा दो
बोलोगे तो पता तुम्हे है हम क्या कर सकते हैं
कुछ दिन मुंह पर अंगुली रख कर जेल में मौज उड़ा लो ||
पिछले सालों की भांति ही पन्द्रह अगस्त मनेगा
उसी भांति ही लाल किले पर झंडा भी फहरेगा
पर जिस अंतिम व्यक्ति कि गाँधी ने बात कही थी
शायद वो बेचारा तो अब दूर भी नही दिखेगा
Friday, July 22, 2011
चौपदे
भूलो राम राज की बातें ये ही अपना नारा है
घपलिस्तान बनायेंगे हम यही हमारा नारा है
अन्ना ,बाबा तो बेचारे यूँ ही खुद मर जायेंगे
बेवकूफ ये जनता है हम इस को नाच नचाएंगे ||
अन्ना जी क्या याद नही है पांच जून की घटना
अच्छी तरह हमे आता है मुंह को बंद करना
नही भूलना पांच जून को फिर दोहरा सकते हैं
शासन कैसे करना है ये हम को नही बताना ||
आजादी का जश्न मनाओ ये किस ने रोका है
पर सत्ता न हाथ लगेगी ये केवल धोखा है
सत्ता पर तो केवल और केवल अधिकार हमारा
बाक़ी कुछ भी करो और हम ने किस को रोका है ||
अब के लाल किले से जब झंडा फहराया जायेगा
उस के बाद बहुत सी बातों को फिर दोहराया जायेगा
पर मंहगाई और आतंकी घटना कम न होंगी
इसी तरह से देश खूब यूं ही लुटवाया जायेगा ||
मन्तर मैंने पढ़े और बिल में तुम हाथ लगा लो
घोटालों की हिस्से दारी चुपचाप पंहुंचा दो
बोलोगे तो पता तुम्हे है हम क्या कर सकते हैं
कुछ दिन मुंह पर अंगुली रख कर जेल में मौज उड़ा लो ||
पिछले सालों की भांति ही पन्द्रह अगस्त मनेगा
उसी भांति ही लाल किले पर झंडा भी फहरेगा
पर जिस अंतिम व्यक्ति कि गाँधी ने बात कही थी
शायद वो बेचारा तो अब दूर भी नही दिखेगा
घपलिस्तान बनायेंगे हम यही हमारा नारा है
अन्ना ,बाबा तो बेचारे यूँ ही खुद मर जायेंगे
बेवकूफ ये जनता है हम इस को नाच नचाएंगे ||
अन्ना जी क्या याद नही है पांच जून की घटना
अच्छी तरह हमे आता है मुंह को बंद करना
नही भूलना पांच जून को फिर दोहरा सकते हैं
शासन कैसे करना है ये हम को नही बताना ||
आजादी का जश्न मनाओ ये किस ने रोका है
पर सत्ता न हाथ लगेगी ये केवल धोखा है
सत्ता पर तो केवल और केवल अधिकार हमारा
बाक़ी कुछ भी करो और हम ने किस को रोका है ||
अब के लाल किले से जब झंडा फहराया जायेगा
उस के बाद बहुत सी बातों को फिर दोहराया जायेगा
पर मंहगाई और आतंकी घटना कम न होंगी
इसी तरह से देश खूब यूं ही लुटवाया जायेगा ||
मन्तर मैंने पढ़े और बिल में तुम हाथ लगा लो
घोटालों की हिस्से दारी चुपचाप पंहुंचा दो
बोलोगे तो पता तुम्हे है हम क्या कर सकते हैं
कुछ दिन मुंह पर अंगुली रख कर जेल में मौज उड़ा लो ||
पिछले सालों की भांति ही पन्द्रह अगस्त मनेगा
उसी भांति ही लाल किले पर झंडा भी फहरेगा
पर जिस अंतिम व्यक्ति कि गाँधी ने बात कही थी
शायद वो बेचारा तो अब दूर भी नही दिखेगा
Tuesday, July 12, 2011
फिर भी प्यासी प्यास रह गई
फिर भी प्यासी प्यास रह गई
बहुत बार बादल छाये हैं
बहुत बार वर्षा आई है
बहुत बार भीगा होगा मन
फिर भी प्यासी प्यास रह गई |
बहुत रात आँखों में बीतीं
बहुत सजाये स्वप्न रंगीले
सुबह हुई तो बिखर गए वे
रोज अधूरी आस रह गई |
बहुत कहा जो भी मन में था
बहुत सुना जो कहा उन्होंने
कहते सुनते गई जिन्दगी
फिर भी आधी बात रह गई |
कहाँ मिला जो भी मन में था
जो भी मिला नही मन भाया
फिर भी चलती रही जिन्दगी
मन की मन में बात रह गई ||
बहुत बार बादल छाये हैं
बहुत बार वर्षा आई है
बहुत बार भीगा होगा मन
फिर भी प्यासी प्यास रह गई |
बहुत रात आँखों में बीतीं
बहुत सजाये स्वप्न रंगीले
सुबह हुई तो बिखर गए वे
रोज अधूरी आस रह गई |
बहुत कहा जो भी मन में था
बहुत सुना जो कहा उन्होंने
कहते सुनते गई जिन्दगी
फिर भी आधी बात रह गई |
कहाँ मिला जो भी मन में था
जो भी मिला नही मन भाया
फिर भी चलती रही जिन्दगी
मन की मन में बात रह गई ||
Monday, July 11, 2011
गठ्बन्धन
गठ्बन्धन की मजबूरी है चाहे देश बेच खाएं
गठ्बन्धन की मजबूरी है जानें कितनी भी जाएँ
गठ्बन्धन के कारण तो तुम देश का सौदा कर दोगे
ऐसा क्या ये गठ्बन्धन है मन मर्जी जो कर लोगे
गठ्बन्धन की मजबूरी है जानें कितनी भी जाएँ
गठ्बन्धन के कारण तो तुम देश का सौदा कर दोगे
ऐसा क्या ये गठ्बन्धन है मन मर्जी जो कर लोगे
Friday, July 8, 2011
दिल किरच किरच टूटे
दिल किरच किरच टूटे और टूटता ही जाये
बाक़ी बचे न कुछ भी फिर भी धडकता जाये
कहने को साँस चलती रहती खुद ब खुद ही
ये ही नही है काफी बस साँस चलती जाये
मौसम की बात छोडो अब खेत ही कहाँ हैं
खेतों में खूब जंगल लोहे का बनता जाये
तड़पन को कौन पूछे कितना भी दिल तडप ले
जब तक चले हैं सांसे बेशक तडपता जाये
ये भी हर भरा था जो ठूंठ सा खड़ा है
किस को पडी है बेशक मिट्टी में मिलता जाये
पाया नही जो चाहा अनचाहा खूब पाया
दुनिया में कब हुआ है जो चाहें मिलता जाये
अब बहुत हो चुका है सूरज का तमतमाना
अब तो गरज के बदरा रिमझिम बरसता जाये |
बाक़ी बचे न कुछ भी फिर भी धडकता जाये
कहने को साँस चलती रहती खुद ब खुद ही
ये ही नही है काफी बस साँस चलती जाये
मौसम की बात छोडो अब खेत ही कहाँ हैं
खेतों में खूब जंगल लोहे का बनता जाये
तड़पन को कौन पूछे कितना भी दिल तडप ले
जब तक चले हैं सांसे बेशक तडपता जाये
ये भी हर भरा था जो ठूंठ सा खड़ा है
किस को पडी है बेशक मिट्टी में मिलता जाये
पाया नही जो चाहा अनचाहा खूब पाया
दुनिया में कब हुआ है जो चाहें मिलता जाये
अब बहुत हो चुका है सूरज का तमतमाना
अब तो गरज के बदरा रिमझिम बरसता जाये |
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