Friday, April 30, 2010

देश की वर्तमान दुखद स्थिति पर दो मुक्तक

नैतिकता अब कहाँ खो गई देश का कैसा हाल हुआ
देश को गिरवी रख कर के भी उन को नही मलाल हुआ
आखिर लाज सुरक्षित कैसे भारत की रह पाएगी
जिम्मेदार कौन इस का है देश का जो ये हाल हुआ

बाहर गला फाड़ चिल्लाते संसद में शरणागत हैं
सौदेबाजी रोज नई है ये ही उन की आदत है
ऐसे ऐसे देश के नेता माननीय कहलाते हैं
इन लोगों का क्या कर लोगे कैसी आई आफत है

इस लम्बी दाढ़ी में कितने राज छुपाये हो बाबा
बाहर कुछ है अंदर कुछ है वैसे बने हुए बाबा
कितनी हद्द हो गई इस से भी ज्यादा क्या गिरना है
जिस पत्तल में खाते उस में छेड़ कर रहे हो बाबा
डॉ. वेद व्यथित
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Monday, April 19, 2010

जन का तन्त्र पित रहा नित दिन आई पी एल की विकटों पर
अरबों खरबों का किस्सा है आई पी एल की विकटों पर
राजनीति का खेल नया ये भैया खूब निराला है
खूब लुटी जनता बेचारी आई पी एल कि विकटों पर

Saturday, April 10, 2010

दांते वाडामें शहीद हुए जवानो के प्रति

इस के बाद बचा ही क्या है और अधिक कुछ कहने को
बंधुआ हैं जवान बेचारे गोली कहा कर मरने को
क्यों कि तो लौह भवन में चैन की वंशी बजा रहे
क्योंसंकल्प नही करते हो माओ वाद से लड़ने को

सत्ता सोच रही है कितनी और बलि चाहिए उस को
मरवा कर इतने जवान भी कहाँ तसल्ली है उस को
फिर भी सख्ती से लड़ने की हिम्मत नही जुटापाई
इन के बल पर कुर्सी पाई क्यों खोएगी वो उस को

तथा कथित मानवतावादी कहाँ बिलों में सोये हैं
जब भी कांटा चुभा शत्रु को वो आंसू से रोये हैं
पर जवान की विधवा ,बहना बच्चे इन को दिखे नही
कैसे उल्लू के पठ्ठे हैं गहरी निद्रा सोये हैं
डॉ. वेद व्यथित

Friday, April 9, 2010

'ज़िंदा ज़ख्म' की नायिका का मूर्त रूप हैं- फ़िरदौस ख़ान


'ज़िंदा ज़ख्म' की नायिका का मूर्त रूप हैं- फ़िरदौस ख़ान

सच वास्तव में यदि सच हो तो वह इस मायावी जगत में जितना सुनना कड़वा होता है उतना उसे कहना या व्यक्त करना होता है.
सच को कहने के लिए पहाड़ जैसा साहस चाहिए, समुद्र जैसी गंभीरता व गहनता चाहिए, नदियों जैसी रवानगी चाहिए और सूरज जैसी प्रखरता व दिव्यता चाहिए तब जाकर कहीं सच कहा जा सकता है.
इसी पथ कीपथिक हैं निर्भीक पत्रकार, लेखिका, शायरा व विचारक तथा चिंतक फ़िरदौस ख़ान जो सच को उजागर करने के लिए अथक परिश्रमशील हैं वे प्रेम, करुणा व सौहार्द के मुरझाते वृक्ष को अपनी लेखनी से सींच रही हैं
उन्हें इसके लिए कुछ लोग नासमझी में 'तसलीमा नसरीन' कहने की गलती कर बैठते हैं, परन्तु वास्विकता तो यह है की फ़िरदौस तसलीमा नहीं हैं वे 'फ़िरदौस' ही हैं क्योंकि फ़िरदौस की शख्सियत उनकी अपनी शख्सियत है वह कुछ और नहीं हो सकतीं वे फ़िरदौस ही हो सकतीं हैं इसीलिए वे फ़िरदौस हैं
हिंदी के एक महान चिंतक व उपन्यासकार आचार्य निशांत केतु जी का उपन्यास है -'ज़िंदा ज़ख्म' उपन्यास की नायिका महजबी ज़ैदी एक पत्रकार हैं. वह पत्रकारिता के धर्म को निभाते हुए सच कहने व लिखने का साहस करती है, सौहार्द व प्रेम के प्रति समर्पित भाव रखती है, विभिन्न कलाओं के प्रति समर्पित है दूसरे मतों व धर्मों के प्रति हार्दिक आदर व सम्मान रखती है.
इस 'ज़िंदा ज़ख्म' की नायिका महजबी का वर्तमान में साक्षात्कार होता है - फ़िरदौस ख़ान के रूप में महजबी की तमाम ख़ासियत या विशेषताएं इस पत्रकार फ़िरदौस ख़ान में मूर्तिमान होकर जीवंत हो रही हैं.
कैसा संयोग है किसी उपन्यास की नायिका का व्यवहार जगत में प्रतिरूप प्राप्त होना यह महज़ संयोग है या उपन्यासकार की भविष्य को संवारने की भविष्य दृष्टि जो फ़िरदौस ख़ान में स्वत: स्फूर्त प्रकट हो रही है
मुझे समझ नहीं आ रहा कि सौहार्द स्थापना के प्रयासों के लिए उपन्यासकार आचर्य निशान केतु जी को साधुवाद दूं या उपन्यास की नायिका की साक्षात् मूरत फ़िरदौस को साधुवाद दूं कि वह किस प्रकार मुसीबतों और कुरीतीयों से टकराकर सौहार्द स्थापना हेतु कृत संकल्प हैं.
निश्चित ही दोनों साधुवाद के पात्र हैं.

फिरदौस मज़हब से ज़्यादा रूहानियत में यक़ीन करने वाली लड़की हैं. उनका यह ध्यातिमक गीत इस बात की मिसाल है. वह खुद कहती हैं- अगर इंसान अल्लाह या ईश्वर से इश्क़ करे तो... फिर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि किसी मस्जिद में नमाज़ पढ़कर उसकी इबादत की है... या फिर किसी मन्दिर में पूजा करके उसे याद किया है...

पिछले साल प्रकाशित फ़िरदौस की किताब ‘गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ भी रूहानियत पर आधारित है. इसमें 55 संतों व फकीरों की वाणी एवं जीवन-दर्शन को प्रस्‍तुत किया गया है. इसकी ‘प्रस्‍तावना’ राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री इन्‍द्रेश कुमार जी ने लिखी है. फ़िरदौस का ज़िक्र करते हुए वे कहते हैं- लेखिका चिन्तक है, सुधारवादी है, परिश्रमी है, निर्भय होकर सच्चाई के नेक मार्ग पर चलने की हिम्मत रखती है.
वेद व्यथित

Friday, April 2, 2010

फ़ोन विहीन नेता जी

नेता जी चिंतन कर रहे थे देश कीसमस्याओं में उलझ रहे थे उन में गहराईसे डूब रहे थे इसी गहराई में चिन्तन करते करते देश का बहुत उद्धार कर दिया दुनिया भर का निर्माण कर दिया ऊँची २ इमारतें बना दी बड़े २ बांध बना दिए नदियों पर पुल बना दिए ऐसा ही पता नही क्या २ हवा में बना दिया देश का तो इन चिन्तन के क्षणों में नकशाही बदल दिया
इसी तन्द्रा यानि चिन्तन में एक चमचा प्रकट हो गया नेता जी के कार्यों पर गर्व से उस का सिरनेता जी चरणों पर झुकाया फिर उस ने अपना चमचा धर्म निभाया उस ने नेता जी से इस निर्माण के उदघाटन की प्रार्थना की और कहा आप ने देश पर कितना उपकार किया है देश की जनता का कल्याण किया है अब आप देर मत करें आप के हाथ में जो नारियल है उसे तोड़े जोर से सडक पर पटक कर फोड़ें और इस सरे हवाई निर्माण का उद्घाटन करें बस फिर क्या था नेता जी ने अपना धर्म निभाया उद्घाटन करने को हाथ में पकड़ा नारियल जोर से दे मारा नारियल टुकड़े २ हो गया परन्तु तेज आवाज से नेता जी का चिन्तन भंग हो गया क्यों की न तो वहाँ कोई उद्घाटन था और न ही नारियल था उन के हाथ में तो उन का सेल फोन था जो चिंतन में नारियल हो गया था और जोर से पटकने पर टुकड़े २ हो गया था दूर २ तक बिखर गया था नेता जी का चिन्तन भंग हो गया था
फोन क्या टूटा नेता जी फोन हीन हो गये नेता जी फोन हीन क्या हुए गजब हो गया जैसे युद्ध में योद्धा शस्त्र हीन हो जाये ,फ़ौजी सीमा पर बिना बंदूक के तैनात कर दिया जायेसिपाही से उस का डंडा छीन लिया जाये मजदूर को बिना औजार काम पर लगा दिया जाये पत्रकार को खबर न लिखने दी जाये लेखक से कलम छीन ली जाये ड्राइवर को गाडी न चलाने दी जाये रेल को सिंग्नल न दिया जाये हीरो को विलं की पिटाई न करने दी जाये विलं को गुंडा गर्दी न करने दी जाये प्रेमिका को प्रेमी संग बात न करने दी जाये प्रेमी को प्रेमिका के चक्कर में बिना पीते छोड़ दिया जाये पत्नी को पति आँख न दिखने दी जाये औरतों को चुप रहने के लिए कहा जाये बच्चों को शरारतों से रोका जाये अध्यापकों को टूशन न पढ़ने दी जाये स्टेशन पर चाय वालों को चाय २ का शोर न मचाने दिया जाये या और जो २ भी ऐसा कुछ भी आप के दिमाग में आये वह सब फिर आप अंदाजा लगायें की तब क्या हो सकता है ठीक वही हालत बिना फोन के नेता जी की हो गई जैसे जल बिन मछली की दशा होती है चकोर की चाँद के बिना होती है चातककी बिना स्वाती जल के होती है सूर्य की पूर्ण ग्रहण के समय होती हैचन्द्रमा जैसे बिना चांदनी के होता है नदियाँ बिनाजल के जैसे होती हैं समुद्र बिना जल के जैसे होता बस ऐसी ही हालत नेता जी कीबिना फोन के हो गई भला आज के समय में फोन हीन नेता भी कोई नेता हो सकता है कदापि नही तो
परन्तु अब क्या हो बिना फोन नेता ,नेता नही होता क्यों की फोन हीन नेता तो लोक तन्त्र के लिए बहुत बड़ी हानि हैनेता जी फोन ही तो इस लोकतंत्र की चाबी है जैसे कार बिना ड्राइवर के नही चलती बल्व या तुब जैसे बिना लाइट के नही जलती जुआ खेले बिना जैसे कोई जुआरी नही होता शराब पिए बिना जैसे कोई शराबी नही होता ऐसे ही भला बिना फोन के नेता भी नेता नही होता और बिना नेता के भला लोकतंत्र भी कोई लोकतंत्र रह सकता है कदापि नही
इसी लिए कुछ देर के लिए लोक तन्त्र पर खतरा मडराने लगा वह अपनी सार्थकता यानि लोकतंत्रिकता खोने लगा यानि लोकतंत्र फेल होने लगा वह लोकतंत्र न रह कर कुछ और होने लगा क्यों की लोक तन्त्र के रहने पर शहर में सोने की चैन लुटेरों को चोरों को डैकेतों को पुलिस ने पकड़ लिया और ठाणे में बंद कर दिया उन के हित चिंतक लोग लोकतंत्र में अपना हक मागने नेता जी के पास पहुंचे और बोले अपना वायदा निभाओ हमारे काम आओ तुरंत पुलिस को फोन करो हमारे आदमियों को छुड वाओ पुलिस वालों को धमकाओ थानेदार का तबादला करवाओ उसे लाइन हाजिर करवाओ परन्तु आज नेता जी का हथियार उन पर नही था वह नारियल सा उदघाटित हो गया था अब फोन हें नेता जी क्या करें पुलिस को फोन कैसे करें कैसे उन्हें धमकाएं और अपने समथको को कैसे छुडाएं इसी बीच एक बड़े दान दाता के यहाँ इनकम टेक्स की रेड पद गई अरबों दो नम्बर का रुपया पकड़ा गया इस्पेक्टर अरबों की जगह लाखों दिखाना चाहता था परन्तु यह तो उन की बेइज्जती थी उन्होंने कहा कम से कम करोड़ों तो दिखाओ क्यों की बाद में तो मिल ही जाना है इस बात पर दोनों में तकरार हो गई ददन दाता ने नेता जी को फोन मिलाया परन्तु नेता जी का फोन तो उद्घटित हो चुका था मिलता कहाँ से आज तो नेता जी फोन हीन थे इस लिए उन्होंने अपना आदमी दौड़ाया परन्तु नेता जी बिना फोन के असमर्थ हो गये यानि बिना के लोकतंत्र के प्रहरी निरस्त हो गये
शहर में और भी कई जगह हलचल हुई लुचे लफंगे काम चोर कर्मचारी बेईमान भ्रष्ट अधिकारी सभी की आफत आ गई नेता जी फोन हीन क्या हुए लोकतंत्र पर बड़ा कुठारा घात हो गया आखिर लोकतंत्र के प्रहरी का एक ही तो काम होता है अपने गुलाम अफसरों को फुनवनाउनको डरना धमकाना तबादले करवाने का कह कर डरना इमानदार पुलिस वालों को लाइन हाजिर करवाना अपने मन माफिक काम करने वाले अफसरों को मन पसंद जगह तैनात करवाना आदि आदिलोकतंत्र के सभी काम रुक गए क्यों की ये सरे काम ही तो नेता जी के फोन से होते हैं विभाग के अधिकारी तो मात्र क्ग्जी कार्यवाही कर के हस्ताक्षर भर करते हैं लोक के तन्त्र का असली काम तो नेता जी करतें हैं इस लिए लोक तन्त्र की रक्षा के लिए कृत संकल्प नेता जी के चमचों ने तुरंत फोन का इंतजाम किया तब जा कर कहीं फिर से लोकतंत्र चालू हुआ
इसी लिए आगे से ध्यान रखा गया की सरकार की ओर से लोकतंत्र की रक्षा के लिए नेताओं को फोन के साथ २ कम्प्यूटर लेपटोप आदि सुविधाएँ भी दी गईं बच्चों केवन्य परिवार वालों के लिए नेता जी के साथ २ उन्हें भी सरकारी गाड़ियाँ भी दे दी गईं ताकि लोकतंत्र चलता रहे लोकतंत्र को ठीक से चलाने के लिए नेताओं के इर्द गिर्द सुविधाओं व सहूलियतों का जल बिछता और बढ़ता रहे लोकतंत्र सुरक्षित रहे
जय लोकतंत्र जय नेता जी जय फोन बाबा की
डॉ. वेद व्यथित
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१५७७ सेक्टर ३ फरीदाबाद -१२१००४