Monday, May 7, 2012


"बदलते परिवेश में भाषा" विषय पर गोष्ठी का आयोजन

आज 'इंडियन मीडिया फोरम' के तत्वाधान में "बदलते परिवेश में भाषा" विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया | संगोष्ठी की अध्यक्षता 'भारतीय साहित्यकार संघ' के अध्यक्ष डॉ वेद व्यथित जी ने की | हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ की स्थिति, वैश्विक स्तर पर उनके हालत और प्रवासी भारतीयों का हिंदी के प्रसार में योगदान, भाषा आन्दोलन, भाषा को लेकर राज्य की भूमिका, भाषा पर सांस्कृतिक प्रभाव, भाषा पर आर्थिक प्रभाव आदि विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई |

डॉ वेद व्यथित ने कहा कि 'भाषा पर अधिकार सम्मान दिलाता है | यदि आप प्रांजल भाषा बोलते हैं, भाषा पर आपका पूर्ण अधिकार है तो हिंदी बोलने पर भी उतना ही सम्मान मिलता है जितना की अंग्रेजी बोलने पर | भाषा पर अधिकार होने के साथ ही भाषा को लेकर स्वाभिमान की जरुरत है | अगर ये दोनों चीजें आपके पास हैं तो फिर हिंदी को भी उतने ही सम्मान से लोग स्वीकारते हैं जितना की अन्य कोई विदेशी भाषा |'

उन्होंने कहा कि गलत अनुवाद के कारण हिंदी भाषा का बहुत नुक्सान हुआ है | कभी भी संज्ञा का अनुवाद नहीं होता लेकिन गलत अनुवाद के जरिये हिंदी भाषा का मजाक बनाने की कोशिश की गई | जैसे - रेल के लिए "लौह्पदगामिनी" शब्द का प्रयोग किया जाता है | अब चूँकि रेल हमारे देश में थी ही नहीं तो हमें उसके लिए रेल शब्द को स्वीकार कर लेना चाहिए लेकिन उसके बजाय ऐसा क्लिष्ट शब्द प्रस्तुत कर देना परिहास से अधिक कुछ नहीं है |

एक प्रश्न के उत्तर में डॉ व्यथित ने कहा कि "ये सोच गलत है कि हिंदी संकट में है या उसकी दुर्दशा हो रही है बल्कि हिंदी सतत समृद्ध हो रही है | भाषा पर आर्थिक सत्ता का बहुत प्रभाव पड़ता है और चूंकि वर्तमान में आर्थिक सत्ता की भाषा अंग्रेजी है इसलिए अंग्रेजी भाषा का वैश्विक आधार है | " साथ ही भाषा और संस्कृति के सम्बन्ध में बताते हुए उन्होंने कहा कि "संस्कृति, सभ्यता आदि का भी भाषा पर प्रभाव है | उदाहरण के लिए हम पीपल के वृक्ष को या भगवान शिव को जल चढाते हैं, पानी नहीं | वैसे वो पानी ही होता है लेकिन कोई भी ये नहीं कहता कि हम उन्हें पानी चढाते हैं | अतः संस्कृति का भी भाषा के स्वरुप पर असर पड़ता है |

विदेश में हिंदी की स्थिति के बारे में बताते हुआ उन्होंने कहा कि "आज कई महाद्वीपों में बसे भारतीय प्रवासियों ने वहां की भारतीय संस्कृति और भाषा को स्थापित किया है | अमेरिका, यूरोप आदि में आज भारतीय संस्कृति का डंका बज रहा है और लोग दुनिया के अनेक देशों से भारत में अंग्रेजी सिखने आ रहे हैं | भाषाओँ की जननी संस्कृत को भूलने के कारण हमें व्यापक क्षति हो रही है | संस्कृत वांग्मय में वैमानिक शास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, चिकित्सा आदि विभिन्न क्षेत्रों का अपार और उन्नत ज्ञान भरा पड़ा है लेकिन हम उन्हें लगभग भूल चुके हैं जबकि नासा जैसा संस्थान हमारे संस्कृत ग्रंथों पर शोध कर रहा है और वहां नर्सरी से संस्कृत पढ़ा रहा है |"

स्वतंत्र पत्रकार विनय झा ने चर्चा में भागीदारी करते हुए बताया कि किस तरह हिंदी भाषा वैश्विक स्तर पर फैलती जा रही है | उन्होंने बताया कि आज विश्व के 116 विश्वविद्यालय हिंदी पढ़ा रहे हैं | चीन भी अपने रेडियो पर हिंदी में एक कार्यक्रम प्रसारित करता है | लेकिन ये दुखद है कि यदि भारत में आपको प्रबंधन की डिग्री लेनी हो तो अंग्रेजी में ही पढ़ना होगा, एक-दो विश्वविद्यालय ही मिलेंगे जो हिंदी में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शिक्षा दे रहे हैं |

कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए रामेन्द्र मिश्र ने कहा कि "हिंदी भाषा दिनोदिन समृद्ध हो रही है | भले ही उसकी गति कम हो लेकिन ऐसे अनेकों प्रयास चल रहे हैं जिससे हिंदी भाषा और अन्य भारतीय भाषाएँ समृद्ध हो रही हैं | हिंदी भाषा की दशा सोचनीय या दयनीय हो गई है ऐसा सोचना ठीक नहीं है |" भाषा को लेकर राज्य की भूमिका पर भी व्यापक चर्चा की गई जिसमें यह बात जोरदार तरीके से रखी गई कि भाषा के सम्बन्ध में राज्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है | राज्य की नीति से भाषा को समृद्ध किया जा सकता है | चीन, रूस, इजराइल आदि राष्ट्र इसके उदाहरण हैं |

कार्यक्रम के संयोजक श्री बालकृष्ण मिश्र ने भी चर्चा में भाग लेते हुए भाषा पर अपना पक्ष रखा | इसके साथ ही शैलेश त्रिपाठी, कुलदीप तिवारी, दीपक आदि ने भी इस चर्चा में हिस्सा लिया | कार्यक्रम के दूसरा सत्र काव्य पाठ का रहा जिसमें शैलेश त्रिपाठी, गोकुलेश पाण्डेय, बालकृष्ण मिश्र, दीपक आदि ने कविता पाठ किया |

Tuesday, May 1, 2012


आचार्य द्रोण की तप: स्थली गुरुग्राम (गुडगांवा )में हम कलम संस्था द्वारा आयोजित गोष्ठी में मूर्धन्य साहित्य कार डॉ. महीप सिंह जी का कहनी पाठ हुआ |डॉ. महीप सिंह जी ने इस अवसर पर अपनी देशांतर कहानी का पाठ किया |देशांतर कहानी अपने अंदर एक साथ बहुत सी दिशाओ को सम्पूर्णता से समेटते हुए प्रवाहमान हुई है |कहानी में राज नीति देश के प्रति निष्ठावान कार्यकर्ता का समर्पण भाव और अपने व्यक्ति हितों का त्याग करते हुए अपने जीवन के अमूल्य क्षणों को देश के प्रति अर्पण करने के  भाव की अद्वितीय अभिव्यक्ति हुई है | कहानी के मुख्य पात्र देवा जी देश के लिए अविवाहित रहते हुए स्वयं को  सन्घठन के प्रति अर्पित कर देते हैं परन्तु मानवीय दुर्बलताएं उसे कभी भी कमजोर बना सकने में सक्षम होती है परन्तु उस के बाद भी देश भक्त कार्यकर्ता अपने व्यैक्तिक सुख को एक ओर रख कर देश सेवा के बड़े लक्ष्य की ओर समर्पित हो जाता है यही इस कहानी का निहितार्थ है |
कहानी के  कथ्य व शिल्प पर  तो कोई प्रश्न   हो ही नही सकता क्योंकि  डॉ. महीप सिंह जी सिद्ध हस्त  व वयोवृद्ध लेखक  हैं ही साथ ही आज   कहानी जिस दौर  से गुजर रही   है कि उस मेंऊटपटांग  दृश्यों  की  जरूर भरमार  हो तो  उस केस्थान   पर डॉ. महीप सिंह जी नेसभी बात  बड़े  सहज व  सुंदर ढंग  से  व्यक्त  की हैं जिन  में न तो कोई अनर्गल शब्दों ही आया है और  न ही कोई अश्लील चित्र ही | उन्होंने  कहानी में भी यह बात व्यक्त  की है कि एक ; बारीक पर्दा कुछ बातों के मध्य रहना चाहिए नही तो वह बड़ा भयावह व  घातक  हो जाता है |
कहानी पर चर्चा   में डॉ. शेर जंग  गर्ग     , डॉ. संतोष गोयल   डॉ. वेद व्यथित  डॉ.  केदारनाथ शर्मा डॉ. सुनीति रावत  श्रीमती  चन्द्र कांता    डॉ. सुदर्शन  शर्मा   डॉ. मोहन  लाल  सर   डॉ.  सविता उपाध्याय  डॉ. पद्मा सचदेव   आदि ने  सहभागिता की  | दूसरे सत्र   में काव्य  पाठ हुआ जिस में   उपस्थित  सभी  साहित्य कारों  ने  काव्य पाठ किया |


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