Friday, June 18, 2010

मित्रों का आभारी हूँ
जिन्होंने मेरी नव गीतिका को स्नेह दिया खास कर उन मित्रों का जिन्होंने अपनी नेहटिप्पणियों से मेरा उत्साह वर्धन किया है इनमे बहन फिरदौस ,वन्दना जी ,म,वर्मा जी बेर अनुज सुलभ व सभी अन्य मित्र
इसी नेह के कारण एक और नव गीतिका आप के सामने रखने कि हिम्मत कर रहा हूँ
"नव गीतिका
तुम्हारे गीत पैने है ये दिल के पार जाते हैं
तुम्हारे आँख के मोती बहुत दिल को दुखाते हैं
सुहाने बादलों कीबात क्यों उन को सुहाएगी
सुरीली तान सुन कर गम बहुत से याद आते हैं
तुम्हारा ही दिया है घाव ये भरता नही है जो
तुम्हारे बोल मीठे हैं वह नश्तर चुभाते हैं
नही भटके हवा मैं मान लूं कैसे यह होगा
बहुत से रास्ते के मोड़ जब उस को सताते हैं
हवा भी चाहती ठहराव तो उस का कहीं पर हो
कहाँ ठहरे समय के जब बढ़े ही पांव जाते हैं
कहीं गया तो होगा गीत जब तुम ने कहीं कोई
उसी के बोल ही आ कर यहाँ मुझ को सताते हैं
पुन:बौरा गये हैं आम तुम ने तन छेड़ी है
पपीहा और कोयल भी उसे ही रोज गाते हैं
तुम्हे कैसे बताऊँ प्रश्न जो मन में मेरे आते
वही क्या प्रश्न शायद रोज तुम को भी सताते हैं
तुम्हीने भूल कर के भी वह बाते नही छोड़ी
किजिन से जिन्दगी के गम हमेशा दूर जाते है
व्यथा कि क्या कहूँ मुझ को यह मीठी बहुत लगती
मुझे मरे सभी अपने तभी तो याद आते हैं
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मित्रों का आभारी हूँ
जिन्होंने मेरी नव गीतिका को स्नेह दिया खास कर उन मित्रों का जिन्होंने अपनी नेहटिप्पणियों से मेरा उत्साह वर्धन किया है इनमे बहन फिरदौस ,वन्दना जी ,म .वर्मा जी अनुज सुलभ व सभी अन्य मित्र
इसी नेह के कारण एक और नव गीतिका आप के सामने रखने कि हिम्मत कर रहा हूँ
"नव गीतिका
तुम्हारे गीत पैने है ये दिल के पार जाते हैं
तुम्हारे आँख के मोती बहुत दिल को दुखाते हैं
सुहाने बादलों कीबात क्यों उन को सुहाएगी
सुरीली तान सुन कर गम बहुत से याद आते हैं
तुम्हारा ही दिया है घाव ये भरता नही है जो
तुम्हारे बोल मीठे हैं वह नश्तर चुभाते हैं
नही भटके हवा मैं मान लूं कैसे यह होगा
बहुत से रास्ते के मोड़ जब उस को सताते हैं
हवा भी चाहती ठहराव तो उस का कहीं पर हो
कहाँ ठहरे समय के जब बढ़े ही पांव जाते हैं
कहीं गया तो होगा गीत जब तुम ने कहीं कोई
उसी के बोल ही आ कर यहाँ मुझ को सताते हैं
पुन:बौरा गये हैं आम तुम ने तन छेड़ी है
पपीहा और कोयल भी उसे ही रोज गाते हैं
तुम्हे कैसे बताऊँ प्रश्न जो मन में मेरे आते
वही क्या प्रश्न शायद रोज तुम को भी सताते हैं
तुम्हीने भूल कर के भी वह बाते नही छोड़ी
किजिन से जिन्दगी के गम हमेशा दूर जाते है
व्यथा कि क्या कहूँ मुझ को यह मीठी बहुत लगती
मुझे मरे सभी अपने तभी तो याद आते हैं
डॉ. वेद व्यथित

Saturday, June 12, 2010

मित्रों यह गजल नही है जैसा मैंने पहली पोस्ट में कहा है यह "नव गीतिका "है
पावस ऋतू प्रारम्भ हो रही है इस लिए बदल बूँदें बरसात व फुहार से ही इस का साधारणीकरण होता है ये तत्व ही सहृदयी को पावस का अहसास कराते हैं इसी पर यह नव गीतिका है
ध्यान से निकला करो मौसम सुहाना है
कब बरस जाये यह बादल दीवाना है
चौंक मत जाना कभी बिजली कीगहरी कौंध से
इस तरह ही देखता सब को जमाना है
पींग धीरे से बढ़ाना संग में मल्हार के
देख ये कब से रहा बरगद पुराना है
झिम झीमा झिम पड़ें जब मेहकी बूंदे
सम्भल कर चलना नही दिल टूट जाना है
बैठ लो कुछ देर सुस्ता लें जरा इस छाँव में
हाल अपना आप का सुनना सुनाना है
जब कभी आना तो इत्मिनान से आना
वरना भागम भाग में रहता जमाना है
बीच जुल्फों से कभी नजरें उठा कर देखना
क्या अदा है देख कर पर्दा गिरना है
बात न करना कभी इतर के मुंह को फेरना
क्या बताएं शौक ये उन का पुराना है
ख़्वाब फिर फिर देखना इस बुरा क्या है
सहारे उम्मीद के ही ये जमाना है
हाथ में लकुटी कमरिया और अपने पास क्या
मन किया जब बिछा लई वो ही ठिकाना है
सहन कर लो वेद ये बेदर्द दुनिया है
क्यों किसी को व्यथा का किस्सा सुनना है
डॉ. वेद व्यथित

Friday, June 11, 2010

क्या अब भी नही सोचोगे
देश की वर्तमान व्यवस्था का सब से काला अध्याय देश के सामने उजागर हो चुका है किइकस तरह देश को राज नेता द्वारा बंधक बनाया जा सकता है कानून को किस तरह हाथ में लिया जा सकता है
देश को चलाने वाले आई ए एस अधिकारी किस तरह मंत्रियों के आधीन काम करते है किस तरह एंडरसन को भारत के गणतन्त्र में जनता को धोखा दे कर सुरक्षित बाहर निकला गया तो देश कीसुरक्षा की ही क्या गारंटी है
यह तो एक मामला उजागर हो गया जिस से हो हल्ला मच गया नही तो ऐसे कितने ही मामले रोज होते हैं
क्या इस से प्रश्न नही उठता किदेश कि वर्तमान व्यवस्था बदलनी चाहिए
बुद्धिजीवी होने का दम भरने वाले लोग आखिर क्या कर रहे है
दूसरे नम्बर पर क्या वे लोग भी कसूर वर नही हैं जो इन के पैरोकार बन कर इन के हित चिंतक बनते हैं वोट के समय देश व समाज को भूल कर छुद्र स्वार्थों के लिए ऐसे लोगो को वोट देते हैं
भोपाल जैसे गैस कांड में वे भी भागीदार है
क्या वे इस पाप कि भागीदारी से बच पाएंगे
और सब से बड़े भागीदार तो वे हैं जो इन का बचाव कर रहे हैं
कितने सारे प्रष हम सब के सामने उपस्थित हैं
क्या अब भी हम इन को नजरंदाज कर सकेंगे
दिल पर हाथ रख कर सोचो
शायद कोई निर्णय तो आप ले ही रहे होंगे
डॉ. वेद vyathit

Wednesday, June 9, 2010

मित्रों !
जिसे हिंदी गजल कहा जा रहा है वास्तव में तो वह हिंदी की गीति परम्परा से आई गीतिका है इस का यह नाम भी कुछ दिन चला पर बिना उर्दू की बहर के ज्ञान के गजल लिखने वाले इसे गजल ही कहते रहे
उन से प्रश्न है किजैसेहिंदी में दोहा लिखने के लिए १३-११कि यति अंत में गुरु और लघु मात्रा आवश्यक है यदि ये मात्राएँ पूरी नही हों तो वह रचना दोहा नही होती उसी प्रकार बहर के बिना गजल कैसे हो सकती है जब कि हिंदी में हर दो पंक्ति में लिखी रचना को गजल कहने का प्रचलन शुरू कर दिया है
वास्तव में ऐसी रचनाएँ गजल नही हैं उन्हें "नव गीतिका "नाम दिया गया है इस सन्दर्भ में" समवेत सुमन ग्रन्थ माला"पत्रिका के कुछ अंक दृष्टव्य हैं ऐसी ही एक रचना प्रस्तुत है :-
वर्षा बादल पानी पानी हर पल मुझ को याद रहा
तेरी आँख का आँसू आँसू हर पल मुझ को याद रहा
झूठे जाहिल मक्कारों ने देश का सब कुछ लूट लिया
फाँसी फंदा दिवानो का हर पल मुझ को याद रहा
महल अटारी कोठी बंगला मुझ से दूर बहुत थे वे
टूटी छान टपकता छप्पर हर पल मुझ को याद रहा
कहने को हर पल कोई न कोई कसम उठाते वे
सच्चाई उन में कितनी है हर पल मुझ को याद रहा
चाउमीन पिज्जा केक पेस्ट्री मुझ को याद नही आई
कंगाली में आटा गीला हर पल मुझ को याद रहा
जब जब बिजली गिरी और अम्बर नौ नौ आँसू रोया
धरती का जब फटा कलेजा हर पल मुझ को याद रहा
कभी एक पल शीतलता के झोंके आये थे कितने
पर जब शीतल झोंका आया वो पल मुझ को याद रहा
डॉ. वेद व्यथित

Saturday, June 5, 2010

हम बज क्यों नही आते

आज पर्यावरण दिवस मना रहे हैं :-
पर अपनी एक भी आदत में सुधर को तैयार नही है जैसे
१ क्या हम अपना ए.सी. कितना समय बंद रखेंगे
२क्या हम बाजार अपना थैला या बैग ले कर जाते है
३क्या हम पौलिथिन के लिए दुकानदार को मना करते है
4क्या हम किसी वृक्ष को लगाने के बाद उस की देख भाल करते है
5 क्या हम अपने घर व अन्य स्थान पर पानी बचाने के लिए कृत संकल्प हैं
६ क्या हम कागज का सदुपयोग करते है
७ क्या हम पुराने एक तरफ खाली कागज का उपयोग करते है
८ क्या हम कभी बिजली बचाने का आग्रह अपने घर में करते हैं
9 क्या हम केवल दूसरों को ही उपदेश देते हैं
१० क्या हम पर्यावरण को बचाने के लिए अपने आप से भी कभी प्रश्न करते हैं

यदि नही तो क्या आज इस की शुरुआत करेंगे मैं कर रहा हूँ
आप सहभागी बने पर्यावरण बचाने के नारे में नही अपितु कुछ करने में
प्रार्थी
वेद व्यथित

Thursday, June 3, 2010

वामपंथियों की वास्तविकता
वामपंथियों ने देहली में मुसलमानों के लिए इसराइल के विरुद्ध मोर्चा निकला है
यही है इन की वास्विकता छद्म धर्मनिरपेक्षता क्योकि वेद्शों में हो रहे बरसात की तो इन्हें चिंता है वहाँ दो बूँद क्या गिरे इन के छाते खुलने में देर नही लगते परन्तु देश में हो रहे हिन्दुओं के उपर इतने अत्याचार व हमले इन आँख वाले अंधों को दिखाई नही देते है इस्लामी आतंकवाद के कारण हजारों नही लाखों हिन्दू मारा जा चुका है कश्मीर के लाखों पंडित अपने ही देश में शरणार्थी जीवन जीने को मजबूर है
वह इस इन को नही दिखाई दिया है बस दिखा है तो इसराइल का मुसलमानों पर हमला दिखाई दिया है
क्या इन्होने आजआतंकवाद के विरुद्ध मोर्चा तो दूर कभी बयान भी नही दिया तसलीमा का तो जो इन तथाकथित ध्र्निर्पेक्ष ताकतों ने हाल किया है वह भी सब को पता ही है
कैसे दोगले चरित्र के लोग है जो भारत की अस्मिता के विरुद्ध अभियान चलाये हुए है जनता को इन की वास्विकता जननी ही चाहिए
डॉ वेद व्यथित