Sunday, December 25, 2011






राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खुजली

खुजली शब्द को सुनते ही मजा सा आने लगता है क्योंकि जैसे बिवाई के फटे बिना पीर नही जानी जा सकती ऐसे ही खुजली के खुजलाये बिना आप को उस का मजा नही आ सकता है और जिस ने जिन्दगी में खुजली का मजा न लिया हो ऐसा भी कोई इन्सान नही होगा क्यों कि यह मजा ही ऐसा है जिसे लिए बिना आप रह नही सकते |यदि आप को कहीं खुजली हो रही हो तो आप कितनी भी कोशिश करो मन को खूब पक्का करो पर जैसे नेता भाषण दिए बिना ,कवि कविता सुनाये बिना ,औरते चुगली २ बतलाये बिना ,यौवन की दहलीज पर आये युवा लडके लडकी एक दूसरे को देखे बिना , सास बहुएं एक दूसरे की बुराई किये बिना ,दूध वाले पानी मिलाये बिना ,कहावत के अनुसार सुनार खोट मिलाये बिना पत्नी पति को डांट लगाये बिना बर्तनों को खडके बिना ,कोयल को कूके बिना ,मोर को नाचे बिना ,गधे को ढेंचू २ किये बिना कुत्ते को भौंके बिना आदि जैसे मानते ही नही है वैसे ही आदमी खुजलाये बिना मानता ही नही है |वह लाख कोशिश कर के देख ले पर खुजलाये बिना रह ही नही सकता ,खुजली चीज ही ऐसी है क्यों कि यह एक सार्वजनीन ,सर्वव्यापक ,राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की चीज है |आखिर ऐसी महत्व पूर्ण चीज से कोई कैसे वंचित रह सकता है और यदि रह जाये तो वह या तो आदमी नही है और यदि है तो वह खुजलाये बिना रह जाये तो समझो अपनी जिन्दगी के असली मजे से वंचित रह गया |उस जैसा दुर्भाग्यशाली इस दुनिया में कोई नही होगा कि जिसे खुजली लगी हो और वह इसे खुजलाये बिना रह जाये क्योंकि यह तो गूंगे का गुड है , जी हाँ इस के आगे लड्डू ,बर्फी रस मलाई आदि तो कुछ भी नही हैं |अब आप समझ ही गये होंगे कि कितनी महत्वपूर्ण चीज है यह खुजली या खाज |
इस का महत्व स्त्री -पुरुष ,घर - परिवार ,गली - मौहल्ला ,गाँव - नगर , जिला - राज्य ,व देश - विदेश तक व्यापक है |सब से ज्यादा तो यह आप के लिए ही महत्वपूर्ण है |हो सकता है खुजली के लिए भी आदमी ही सब से ज्यादा उपयुक्त हो क्योंकि सब से ज्यादा खुजली भी उसी को होती है जो उसे कहीं भी और कभी भी हो सकती है किस भी जगह या किसी भी समय दिन - रात ,सोते जगते ,उठते -बैठते हरी नाम की तरह हो सकती है जैसे हरी नाम कैसे भी लिया जा सकता है ऐसे ही खुजली भी कहीं भी की जा सकती है |पर इस सब में सब से महत्व पूर्ण है आदमी यानि जिसे खुजली होती रहती है और वह अपनी खुजली मिटने के लिए कई बार बहुत लोगों को खुजली कर देता है और कई बार तो ऐसी खुजली फैलता है कि इस खुजली से पूरी दुनिया को संक्रमित कर देता है जैसे आतंक वाद की खुजली ने पूरे विश्व को परेशान कर रखा है जिसे खुजाते २ पूरा विश्व उकता चुका है पर यह खुजली है कि मिटती ही नही और घटने के बजाय दोनों दिन और बढती रहती है |
ऐसे ही खुजली कई अन्य देशों में भी समय २ पर उठती रहती है जिस के कारण वे दूसरे देशों को भी ऐसे परेशान करते हैं जैसे भैंसा अपनी खुजली मिटने के लिए किसी पेड़ ,खम्बा या गाड़ी आदि से अपने शरीर को रगड़ते २ उसे गिरा देता है ऐसी ही खुजली अमेरिका और चीन को भी होती रहती है | अम्रेरिका तो बाकायदा एलान कर के जोर २ से खुजली करता है उसे खुजलाने के लिए कभी इराक कभी इरान कभी अफगानिस्तान और कभी हिन्दुस्तान या पाकिस्तान चाहिए ही | ऐसे ही चीन है वह तो जिस को मर्जी धमका देता यदि कोई अपने यहाँ किसी भिक्षु को भी बुला ले तो बस चीन उस का ही दुश्मन बन जाता है ऐसे ही देखा देखी अब रूस भी को भी दुबारा खुजली होने लगी है तो उस ने श्री मद भागवत गीता पर ही प्रतिबन्ध की मंशा जाहिर कर के अपनी खुजली मिटानी शुरू कर दी |अब बताओ ऐसी २ खुजली का क्या किया जाये समझ नही आता है और हमारा देश है कि उसे पता है कि रूस गलत जगह खुजा रहा है तो भी कुछ नही कहता है लगता यहाँ के नेताओं को भी गलत जगह खुजली हो रही है जो मन मर्जी खुजलाये जा रहे हैं नही तो ऐसा करार जबाब दें कि उस के तो बड़ों २ की खुजली बंद हो जाये |
पर वे कह भी कैसे सकता हैं क्योंकि वह तो स्वयम ऐसी २ खुजली करते हैं इन नेताओं को साम्प्रदायिकता नामकी बिना बात की सूखी खुजली वक्त बेवक्त होती रहती है इस खुजली को वे जब मर्जी खुजलाने लगते हैं न तो वे इस में कोई जगह देखते है नऔर न ही अपना शरीर कि कहाँ खुजा रहे हैं | और सब से ज्यादा मजा तो उन्हें गुजरात की तरफ मुंह कर के खुजलाने में आता है |जिसे वे गुजरती खुजली या भगवा खुजली कहते हैं परन्तु गुजरातियों के पास इस खुजली की ऐसी दाव है कि जिसे वे जिस को भी लगा देते हैं वह ही नाचता २ फिरता है या बिलों में जा कर ही उसे शन्ति मिलती है |और तो और कुछ बिका हुआ मिडिया भी इस गुजरती खुजली से बाज नही आता है वह जब तब इसे करता ही रहता है पर गुजरती दवा है बहुत तेज जिसे लगती है नचाती जरूर है |ऐसे ही एक टोपी वाले को भी गुजरती खुजली लगी पर जब उसे दवा लगाई तो वह भी नाचा २ फिरा और फिर घर छोड़ कर ही भाग गया कि भाई मैं तो एक दम ठीक हो गया हूँ |यह खुजली तो मुझे किसी और न जबरदस्ती पकड़ा दी थी |
जब बात देश की चली है तो लगे हाथ कुछ और लोगों की खुजली भी मिटवा ली जाये |इन में से कुछ ओग तो ऐसे हैं कि उन्हें इतनी जोर से खुजली लगती है कि वे न तो दिन देखते हैं और न ही रात बस उन को तो खुजली मिटने से मतलब |उन्हें इस से क्या कि चाहे बच्चे हों चाहे औरते चाहे आधी रात हो डंडा ले कर रात में ही लगे अपनी खुजली मिटाने बेशक उस से भारत माता की एक वीर पुत्री बलिदान भी हो गई परन्तु उन्हें इस से क्या उन्हें तो अपनी खुजली से मतलब सो उन्होंने खुजलाया लो अब कर लो उन का क्या कर लोगे |उन्होंने तो खुजली मिटा ही ली |
ऐसे ही एक और माननीय हैं |वे तो अपनी मन मर्जी खुजली मिटने के लिए किसी को भी धमकाने लगते हैं |परन्तु चलो देशी लोगों को तो वे आसानी से धमका सकते हैं परन्तु विदेशियों को कैसे धमका सकते हो एक देशी कहावत है धिन्गों {ताकत वर } के लिए धींग बहुत मिल जाते हैं घर नही तो बाहर मिल जाते हैं सो उन्हें मिल भी गये |आखिर उन विदेशियों ने इन की खुजली पर ऐसी मलहम लगाई कि पानी मांगते फिरे और यदि इस से काम नही चलता तो वे अपने औजारों से इन की खुजली वाली खाल ही छिल कर खुजली ठीक कर देते परन्तु ये दवा से ही मान गये की भैया बस करो मेरी खुजली तो खूब ठीक हो गई है |अब आप जैसे चाहो अपनी मर्जी से अपनी खुजली ठीक करो या खुजलाओ मुझे क्या लेना देना |यह खुजली तो बड़े काम की चीज है इस से तो अब मैं भी फायदा उठाऊंगा |
इन लोगों में कुछ तो ऐसे भी हैं उन्होंने तो खुजली कर कर के ही इतनी सम्पत्ति इकठ्ठी कर ली कि जज साहब भी पूछने लगे कि अरे इस में कितनी जीरो लगेंगी इस की तो गिनती करना भी मुश्किल है |परन्तु उन्होंने जिस कलाकारी से खुजली की वह तो अनोखी ही है खुजली क्या हुई टकसाल ही हो गई जैसे २ उन की खुजली बढती वैसे २ आंधी में झरे आमों की भांति ही उन पर रुपयों की बरसात होती |उन्हें इस से क्या देश का खजाना बेशक खाली रहा पर इस खुजली ने उन के खजाने तो ऐसे भरे कि रिश्तेदारों के यहाँ भी माल रखने की जगह कम पड़ गई |
इस खजाने की बात चली है तो यह भी बड़ा संयोग है कि खजाने और खुजली दोनों के एक ही अक्षर से शुरू होते हैं उन में बड़ा सुंदर अनुप्रास है दोनों ही ख अक्षर से शुरू होते हैं खजाना भी और खुजली भी इस लिए लोगों को खजाने में खुजली और खुजली में खजाना नजर आने लगा जैसे लोग खुजली को छिपाते हैं वैसे ही इन लोगों ने खजाना भी छुपाना शुरू कर दिया और छुपाया भी ऐसे कि देश में तो पता चल जायेगा क्यों कि यहाँ कुछ संत महात्मा और एक स्वामी तो ऐसे हैं कि वे कहीं भी हो खोज ले ही लेंगे इस लिए उन्होंने इस खजाने को विदेश में छुपा दिया |पर संत और स्वामी ने वहाँ भी इस का सुराग लगा लिया जिस से इन की खुजली बढने लगी इस लिए इन माननीयों ने इन संत और स्वामी को तरह २ से धमका कर अपनी खुजली मिटानी शुरू कर दी पर वे हैं कि मानते ही नही इन के पीछे दवा ले कर ऐसे भाग रहे हैं कि जैसे उन का खजान ही ये विदेश में रख आये हैं पर जब वे दवा लगवाना ही नही चाहते हैं तो भी ये इन में हर अंग को उघाड़ २ कर जनता को बता रहे हैं कि देखो इन सुंदर लोगो को कितनी भयंकर खाज है और कहाँ २ है जिसे देख कर लोग ठीक से थू २ कर सकें |पर इन पर तो इस का असर ही नही हो रहा है |अब तो ये खुद ही लोगों के सामने अपने कपड़े उघाड़ २ कर खुजला २ कर मजे ले रहे हैं |और कह रहे हैं लो हमारा क्या कर लोगे हम तो ऐसे ही खुजलायेंगे ,दवा नही लगवाएंगे |आखिर यह खुजली कोई छोटी मोटी चीज थोड़ी है इस का तो मजा ही अलग तरह का है ये साधू और स्वामी इस मजे को क्या जाने और यदि मजे लेने हैं तो खुद भी खुजा लें |
अब जब ये लोग खुजलाने पर इतने ही उतारू हो चुके हैं तो लोगो को भी फिर से खुजली होनी शुरू हो गई है |अब वे फिर से अपनी खुजली के लिए मैदान तलाश रहे हैं कि जहाँ आसानी से खुजलाया जा सके और दवा भी लगाई जा सके खुद को भी और इन को भी |इस लिए अब देश के लोग दुगने उत्साह से एकत्रित हो कर किसी नई दवा की खोज कर रहे हैं जो एक दम असर डर हो और लगाने वालों पर भी इस का दुष्परिनाम न हो | पर सोये हुए को तो जगाया जा सकता है पर जगे हुए मक्कार को कैसे जगाया जाये ऐसे ही जब ये मक्कार चाहते ही नही कि इन की खुजली ठीक न हो तो भला कैसे ठीक हो सकती है | वे तो उलटे दवा लगाने वालों को ही डराने व धमकाने के लिए तैयार बैठे है और बीच २ में पिछली घटना भी याद दिला देते हैं कि जिन्होंने दवा लगाने का प्रयत्न किया उन की कैसी पिटाई की वैसी ही अब फिर भी हो सकती है क्यों कि उन्हें पता है कि ये लोग उन का कुछ नही बिगड़ सकते हैं इस लिए वे यूं ही कपड़े उघाड़ २ कर खुजलाते रहेंगे और देश की खु




राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खुजली

खुजली शब्द को सुनते ही मजा सा आने लगता है क्योंकि जैसे बिवाई के फटे बिना पीर नही जानी जा सकती ऐसे ही खुजली के खुजलाये बिना आप को उस का मजा नही आ सकता है और जिस ने जिन्दगी में खुजली का मजा न लिया हो ऐसा भी कोई इन्सान नही होगा क्यों कि यह मजा ही ऐसा है जिसे लिए बिना आप रह नही सकते |यदि आप को कहीं खुजली हो रही हो तो आप कितनी भी कोशिश करो मन को खूब पक्का करो पर जैसे नेता भाषण दिए बिना ,कवि कविता सुनाये बिना ,औरते चुगली २ बतलाये बिना ,यौवन की दहलीज पर आये युवा लडके लडकी एक दूसरे को देखे बिना , सास बहुएं एक दूसरे की बुराई किये बिना ,दूध वाले पानी मिलाये बिना ,कहावत के अनुसार सुनार खोट मिलाये बिना पत्नी पति को डांट लगाये बिना बर्तनों को खडके बिना ,कोयल को कूके बिना ,मोर को नाचे बिना ,गधे को ढेंचू २ किये बिना कुत्ते को भौंके बिना आदि जैसे मानते ही नही है वैसे ही आदमी खुजलाये बिना मानता ही नही है |वह लाख कोशिश कर के देख ले पर खुजलाये बिना रह ही नही सकता ,खुजली चीज ही ऐसी है क्यों कि यह एक सार्वजनीन ,सर्वव्यापक ,राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की चीज है |आखिर ऐसी महत्व पूर्ण चीज से कोई कैसे वंचित रह सकता है और यदि रह जाये तो वह या तो आदमी नही है और यदि है तो वह खुजलाये बिना रह जाये तो समझो अपनी जिन्दगी के असली मजे से वंचित रह गया |उस जैसा दुर्भाग्यशाली इस दुनिया में कोई नही होगा कि जिसे खुजली लगी हो और वह इसे खुजलाये बिना रह जाये क्योंकि यह तो गूंगे का गुड है , जी हाँ इस के आगे लड्डू ,बर्फी रस मलाई आदि तो कुछ भी नही हैं |अब आप समझ ही गये होंगे कि कितनी महत्वपूर्ण चीज है यह खुजली या खाज |
इस का महत्व स्त्री -पुरुष ,घर - परिवार ,गली - मौहल्ला ,गाँव - नगर , जिला - राज्य ,व देश - विदेश तक व्यापक है |सब से ज्यादा तो यह आप के लिए ही महत्वपूर्ण है |हो सकता है खुजली के लिए भी आदमी ही सब से ज्यादा उपयुक्त हो क्योंकि सब से ज्यादा खुजली भी उसी को होती है जो उसे कहीं भी और कभी भी हो सकती है किस भी जगह या किसी भी समय दिन - रात ,सोते जगते ,उठते -बैठते हरी नाम की तरह हो सकती है जैसे हरी नाम कैसे भी लिया जा सकता है ऐसे ही खुजली भी कहीं भी की जा सकती है |पर इस सब में सब से महत्व पूर्ण है आदमी यानि जिसे खुजली होती रहती है और वह अपनी खुजली मिटने के लिए कई बार बहुत लोगों को खुजली कर देता है और कई बार तो ऐसी खुजली फैलता है कि इस खुजली से पूरी दुनिया को संक्रमित कर देता है जैसे आतंक वाद की खुजली ने पूरे विश्व को परेशान कर रखा है जिसे खुजाते २ पूरा विश्व उकता चुका है पर यह खुजली है कि मिटती ही नही और घटने के बजाय दोनों दिन और बढती रहती है |
ऐसे ही खुजली कई अन्य देशों में भी समय २ पर उठती रहती है जिस के कारण वे दूसरे देशों को भी ऐसे परेशान करते हैं जैसे भैंसा अपनी खुजली मिटने के लिए किसी पेड़ ,खम्बा या गाड़ी आदि से अपने शरीर को रगड़ते २ उसे गिरा देता है ऐसी ही खुजली अमेरिका और चीन को भी होती रहती है | अम्रेरिका तो बाकायदा एलान कर के जोर २ से खुजली करता है उसे खुजलाने के लिए कभी इराक कभी इरान कभी अफगानिस्तान और कभी हिन्दुस्तान या पाकिस्तान चाहिए ही | ऐसे ही चीन है वह तो जिस को मर्जी धमका देता यदि कोई अपने यहाँ किसी भिक्षु को भी बुला ले तो बस चीन उस का ही दुश्मन बन जाता है ऐसे ही देखा देखी अब रूस भी को भी दुबारा खुजली होने लगी है तो उस ने श्री मद भागवत गीता पर ही प्रतिबन्ध की मंशा जाहिर कर के अपनी खुजली मिटानी शुरू कर दी |अब बताओ ऐसी २ खुजली का क्या किया जाये समझ नही आता है और हमारा देश है कि उसे पता है कि रूस गलत जगह खुजा रहा है तो भी कुछ नही कहता है लगता यहाँ के नेताओं को भी गलत जगह खुजली हो रही है जो मन मर्जी खुजलाये जा रहे हैं नही तो ऐसा करार जबाब दें कि उस के तो बड़ों २ की खुजली बंद हो जाये |
पर वे कह भी कैसे सकता हैं क्योंकि वह तो स्वयम ऐसी २ खुजली करते हैं इन नेताओं को साम्प्रदायिकता नामकी बिना बात की सूखी खुजली वक्त बेवक्त होती रहती है इस खुजली को वे जब मर्जी खुजलाने लगते हैं न तो वे इस में कोई जगह देखते है नऔर न ही अपना शरीर कि कहाँ खुजा रहे हैं | और सब से ज्यादा मजा तो उन्हें गुजरात की तरफ मुंह कर के खुजलाने में आता है |जिसे वे गुजरती खुजली या भगवा खुजली कहते हैं परन्तु गुजरातियों के पास इस खुजली की ऐसी दाव है कि जिसे वे जिस को भी लगा देते हैं वह ही नाचता २ फिरता है या बिलों में जा कर ही उसे शन्ति मिलती है |और तो और कुछ बिका हुआ मिडिया भी इस गुजरती खुजली से बाज नही आता है वह जब तब इसे करता ही रहता है पर गुजरती दवा है बहुत तेज जिसे लगती है नचाती जरूर है |ऐसे ही एक टोपी वाले को भी गुजरती खुजली लगी पर जब उसे दवा लगाई तो वह भी नाचा २ फिरा और फिर घर छोड़ कर ही भाग गया कि भाई मैं तो एक दम ठीक हो गया हूँ |यह खुजली तो मुझे किसी और न जबरदस्ती पकड़ा दी थी |
जब बात देश की चली है तो लगे हाथ कुछ और लोगों की खुजली भी मिटवा ली जाये |इन में से कुछ ओग तो ऐसे हैं कि उन्हें इतनी जोर से खुजली लगती है कि वे न तो दिन देखते हैं और न ही रात बस उन को तो खुजली मिटने से मतलब |उन्हें इस से क्या कि चाहे बच्चे हों चाहे औरते चाहे आधी रात हो डंडा ले कर रात में ही लगे अपनी खुजली मिटाने बेशक उस से भारत माता की एक वीर पुत्री बलिदान भी हो गई परन्तु उन्हें इस से क्या उन्हें तो अपनी खुजली से मतलब सो उन्होंने खुजलाया लो अब कर लो उन का क्या कर लोगे |उन्होंने तो खुजली मिटा ही ली |
ऐसे ही एक और माननीय हैं |वे तो अपनी मन मर्जी खुजली मिटने के लिए किसी को भी धमकाने लगते हैं |परन्तु चलो देशी लोगों को तो वे आसानी से धमका सकते हैं परन्तु विदेशियों को कैसे धमका सकते हो एक देशी कहावत है धिन्गों {ताकत वर } के लिए धींग बहुत मिल जाते हैं घर नही तो बाहर मिल जाते हैं सो उन्हें मिल भी गये |आखिर उन विदेशियों ने इन की खुजली पर ऐसी मलहम लगाई कि पानी मांगते फिरे और यदि इस से काम नही चलता तो वे अपने औजारों से इन की खुजली वाली खाल ही छिल कर खुजली ठीक कर देते परन्तु ये दवा से ही मान गये की भैया बस करो मेरी खुजली तो खूब ठीक हो गई है |अब आप जैसे चाहो अपनी मर्जी से अपनी खुजली ठीक करो या खुजलाओ मुझे क्या लेना देना |यह खुजली तो बड़े काम की चीज है इस से तो अब मैं भी फायदा उठाऊंगा |
इन लोगों में कुछ तो ऐसे भी हैं उन्होंने तो खुजली कर कर के ही इतनी सम्पत्ति इकठ्ठी कर ली कि जज साहब भी पूछने लगे कि अरे इस में कितनी जीरो लगेंगी इस की तो गिनती करना भी मुश्किल है |परन्तु उन्होंने जिस कलाकारी से खुजली की वह तो अनोखी ही है खुजली क्या हुई टकसाल ही हो गई जैसे २ उन की खुजली बढती वैसे २ आंधी में झरे आमों की भांति ही उन पर रुपयों की बरसात होती |उन्हें इस से क्या देश का खजाना बेशक खाली रहा पर इस खुजली ने उन के खजाने तो ऐसे भरे कि रिश्तेदारों के यहाँ भी माल रखने की जगह कम पड़ गई |
इस खजाने की बात चली है तो यह भी बड़ा संयोग है कि खजाने और खुजली दोनों के एक ही अक्षर से शुरू होते हैं उन में बड़ा सुंदर अनुप्रास है दोनों ही ख अक्षर से शुरू होते हैं खजाना भी और खुजली भी इस लिए लोगों को खजाने में खुजली और खुजली में खजाना नजर आने लगा जैसे लोग खुजली को छिपाते हैं वैसे ही इन लोगों ने खजाना भी छुपाना शुरू कर दिया और छुपाया भी ऐसे कि देश में तो पता चल जायेगा क्यों कि यहाँ कुछ संत महात्मा और एक स्वामी तो ऐसे हैं कि वे कहीं भी हो खोज ले ही लेंगे इस लिए उन्होंने इस खजाने को विदेश में छुपा दिया |पर संत और स्वामी ने वहाँ भी इस का सुराग लगा लिया जिस से इन की खुजली बढने लगी इस लिए इन माननीयों ने इन संत और स्वामी को तरह २ से धमका कर अपनी खुजली मिटानी शुरू कर दी पर वे हैं कि मानते ही नही इन के पीछे दवा ले कर ऐसे भाग रहे हैं कि जैसे उन का खजान ही ये विदेश में रख आये हैं पर जब वे दवा लगवाना ही नही चाहते हैं तो भी ये इन में हर अंग को उघाड़ २ कर जनता को बता रहे हैं कि देखो इन सुंदर लोगो को कितनी भयंकर खाज है और कहाँ २ है जिसे देख कर लोग ठीक से थू २ कर सकें |पर इन पर तो इस का असर ही नही हो रहा है |अब तो ये खुद ही लोगों के सामने अपने कपड़े उघाड़ २ कर खुजला २ कर मजे ले रहे हैं |और कह रहे हैं लो हमारा क्या कर लोगे हम तो ऐसे ही खुजलायेंगे ,दवा नही लगवाएंगे |आखिर यह खुजली कोई छोटी मोटी चीज थोड़ी है इस का तो मजा ही अलग तरह का है ये साधू और स्वामी इस मजे को क्या जाने और यदि मजे लेने हैं तो खुद भी खुजा लें |
अब जब ये लोग खुजलाने पर इतने ही उतारू हो चुके हैं तो लोगो को भी फिर से खुजली होनी शुरू हो गई है |अब वे फिर से अपनी खुजली के लिए मैदान तलाश रहे हैं कि जहाँ आसानी से खुजलाया जा सके और दवा भी लगाई जा सके खुद को भी और इन को भी |इस लिए अब देश के लोग दुगने उत्साह से एकत्रित हो कर किसी नई दवा की खोज कर रहे हैं जो एक दम असर डर हो और लगाने वालों पर भी इस का दुष्परिनाम न हो | पर सोये हुए को तो जगाया जा सकता है पर जगे हुए मक्कार को कैसे जगाया जाये ऐसे ही जब ये मक्कार चाहते ही नही कि इन की खुजली ठीक न हो तो भला कैसे ठीक हो सकती है | वे तो उलटे दवा लगाने वालों को ही डराने व धमकाने के लिए तैयार बैठे है और बीच २ में पिछली घटना भी याद दिला देते हैं कि जिन्होंने दवा लगाने का प्रयत्न किया उन की कैसी पिटाई की वैसी ही अब फिर भी हो सकती है क्यों कि उन्हें पता है कि ये लोग उन का कुछ नही बिगड़ सकते हैं इस लिए वे यूं ही कपड़े उघाड़ २ कर खुजलाते रहेंगे और देश की खुजली को बढ़ाते रहेंगे |

डॉ.वेद व्यथित
अनुकम्पा १५७७ सेक्टर -३
फरीदाबाद १२१००४
09868842688
mail- dr.vedvyathit@gmail.com



Sunday, December 11, 2011

नये देवता का अविष्कार

भारत देश में सत्य की पूजा होती रही है |इसी लिए लोगों ने एक "सत्य "नाम का देवता बना लिया और उसी की कथा भी बना ली | असल में यह कथा बनाई तो सत्य के देवता की थी परन्तु यह बन गई मक्कार व झूठे राजा और व्यापारियों की |जिस २ व्यापारी ने झूठ बोला यानि सत्य को छोड़ा उसे ही इस कथा में नुकसान उठाना पड़ा परन्तु फिर भी उन्होंने सत्य पर चलने का प्रण लेने के बजाय सत्य के देवता की मूर्ती बना कर उस की पूजा करनी शुरू कर दी |पूजा के आयोजन में झूठे व्यापारियों के किस्से सत्य कथा के रूप स्थापित कर के साथ में प्रसाद वितरण व बन्धु बांधवों को भोज करवाना भी कथा में जोड़ दिया और धीरे २ सत्य की पूजा की भक्तों ने सत्य नारायण जी की कथा करना शुरू कर दिया |
परन्तु धीरे २ इस कथा से लोग ऊबने लगे |परन्तु अपने २ पापों , कुकर्मों और दुष्कर्मों के फ्ल्पों से निजत पाने के लिए और उलटी सीधी मनोतियां यानि मांगें मनवाने के लिए फिर किसी ओसे देवता की तलाश शुरू कर दी जो इन की सभी उलटी सीधी बातें यानि मांगे आसानी से पूरी करवा दे |इसी तलाश में लोग जुट गये और सत्य -कथा से थके हरे हए धर्म भीरू वीरों में जब जब खूब असंतोष पनप गया तो उन्हें संतोष की बड़ी आवश्यकता पडी क्यों कि बढ़ते भ्रष्टाचार और रिश्वत खोरी से पड़ोसियों को देख २ कर जब सब का असंतोष ज्यादा जोर पकड़ने लगा तो उतने ही जोर शोर से संतोष की तलाश शुरू हुई ताकि उन के भ्रष्टाचार में व रिश्वत खोरी में भी वृद्धि हो सके जिस से उन्हें भी संतोष की प्राप्ति हो जाये |
इस लिए संतोष को प्राप्त करने के उपाय की खोज में इस बार देवता नही अपितु देवी की कथा शुरू हो गई दुकान दारों की गुड चने की बिक्री बढने लगी जो चीज गरीबों के लिए थी उस की भी काला बाजारी शुरू हो गई |भुने चने भी सोने के भाव बिकने लगे जो गरीब का भीड़ जरूरत में भोजन था वह ही उस से दूर हो गया उसे बिना कथा व्रत के ही संतोष मिल गया कि भईया संतोष करो गुड चना भी अब अपनी पंहुच से दूर हो गया है |
धीरे २ जब लोगो को रिश्वत और भ्रष्टाचार से हद दर्जे का संतोष आ गया यानि देश का नाम भ्रष्टाचार में भ्रष्ट देशों की सूची में जब बहुत उपर पंहुच गया तो लोग अब इस स्न्तिश से भी ऊब गये और उन्होंने संतोष से भी आगे बढने का मन बना लिया और उस से भी उपर किसी औसी वस्तु की तलाश शुरू कर दी कि जिस एक को ही बिना व्रत उपवास के खुश करने पर आसानी से सब फल और फलियाँ प्राप्त हो जाएँ क्यों कि देवी देवताओं को तो अब तक खूब बहका २ कर लोग अपना उल्लू सीधा कर ही चुके हैं इस लिए क्या पता अब वे बहकावे में आयें या न आयें इस लिए अब की बार लोगों ने सोच कि कुछ और आजमाया जाये |
इस लिए उन्होंने किसी बाबा को अपनी एक ऊँगली उपर उठाते देख लिया अब पता नही बाबा ने वह ऊँगली उपर क्यों उठाई थी यह तो रहस्य अब भी बना हुआ है क्यों कि रहस्य को रहस्य ही रहने देना चाहिए वरना गडबड हो सकती है देश में दंगे पनप सकते हैं कुछ पर साम्प्रदायिक होने का आरोप आसानी से लगया जा सकता है इस लिए इसे रहस्य बनाये रखने में ही भलाई है |परन्तु लोगो को जो कुछ काली दास जी की भांति ऊँगली का मतलब समझ आया वह बड़ा सार्थ सिद्ध हुआ बस फिर क्या था उन्हें अपने मन मुताबिक वस्तु जो मिल गई जिस का अर्थ हुआ कि बस एक सुपर हाई कमान यानि बस एक हाई कमान के इर्द गिर्द घूमों उसी के गुण गन करो ,उसी की चमचा गीरी में हद से भी आगे बढ़ जाओ इस से चाहे देश भाद में जाये समाज की ऐसी तैसी हो धर्म का सत्यानाश हो राजनीति वेश्या बन जाये या जो होना है होता रहे चाहे लोगों को रोटी मिले या न मिले ,बेशक किसान आत्म हत्या करें व्यापरी कर्ज में डूब कर फांसी खा ले ,लोग भूखे मर जाएँ देश का सारा धन विदेश में चला जाये यानि कुछ भी हो जाये बेशक सब भाड़ में चला जाये कानून नाम की कोई चीज बचे या न बचे इस सब से आप को क्या लेना देना पर आप बाबा की ऊपर उठी एक ऊँगली को देखते हुए उस के अर्थ को ठीक से समझते हुए बस एक है कमान को के गुण गन में लगे रहो उस में कटी भी कमी नही आने दो इसी सिद्धांत पर अडिग रहो इसी एक की सेवा में सब मेवा और फल मान सम्मान धन दौलत सब कुछ मिल जायेगा बस फिर क्या था इसी से प्रेरित हो कर अब लोगों ने इसी एक उठी ऊँगली वाले और सिर पर कपड़ा बांध कर रहस्य छुपाये बाबा जी को पूरे देश में प्रचारित कर दिया |यही बाबा पूरे देश में छ गये इन बाबा जी ने सभी देवी देवताओं को बुरी तरह से पछाड़ दिया अब सब जगह इन्ही की फोटो ,मूर्ती इन्ही के गीत संगीत ,नाच गाना ,धूम धडाका और पूजा आरती शुरू हो गई |
अब देखना यह है कि लोग इन्हें भी कब तक झेलते हैं और आने वाले समय में किस देवता की तलाश या अविष्कार करते हैं मुझे लगता है शायद नये देवता की तलाश हो भी चुकी है मुझे इस के कुछ २ संकेत मिल भी गये हैं क्यों कि जहाँ न पंहुचे रवि वहाँ २ मैं तो पंहुच ही सकता हूँ क्यों कि मैं भी तो बहुत पंहुची चीज हूँ |क्यों कि अब तकनीक का जमाना है रद्दी कागजो में चिपके रहने का जमाना गया और न ही अब मोती २ पोथी पढने का किसी के पास समय है इस लिए अब तो तकनीकी देवता देवता की आवश्यकता है और वह भी कम से कम समय में काम करने वाले देवता की |
इस लिए अब तकनीकी देवता का अविष्कार लोगों ने कर भी लिया है बेशक आप अभी उस के महातम यानि महत्व से अनजान हों चलो पर हमारी संस्कृति सब का भला चाहने की है इस लिए आप को भी इस का नाम बताये देता हूँ क्यों कि इस के प्रचार प्रसार से मुझे भी पुन्य लाभ प्राप्त होगा इस लिए आप भी ध्यान से सुन लो इस का नाम है -एस एम् एस देवता यह सब कामनाएं पूर्ण करता है यह आप का जो सब से प्रिय काम किसी को फंसने को होता है वह भी करवा सकता है लाटरी निकवा सकता है इस की कृपा से चुपचाप सौदे बाजी हो सकती है और किसी को कानो कान खबर भी नही लगती है इस की कृपा से किसी भी शहर में कहीं भी किसी भी समय आप की दिन या रात की मांग पूरी हो सकती है आप की छोटी मोती रोज मर्रा की हर जरूरत पूरी हो सकती है यह आप की हर मनोती बिना समय बर्बाद किये पूरी कर देता है ||
अब आप को इस को मनाने के लिए करना क्या है इसे खुश करने के लिए ज्यादा पापड़ बेलने की भी जरूरत नही है न व्रत रखना है न ही उपवास कर के भूखा मरना है न आरती का झंझट न शोर न शराबा न धूम न धड़ाका न कथान पूजा इसे प्रसन्न करने के बहुत ही सरल उपाय हैं बस करना क्या है रोज की ही तरह जब आप नौ दस बजे सुबह २ जल्दी से उठे तो उठते ही बिना बेड टी पिए सब से पहले आप को जगह २ दस बीस एस एम् एस करने पड़ेंगे इन्हें आप नियमित त्रिकाल संध्या की भांति बिना भूले याद कर के करना पड़ेगा पर यदि जरूरी हाजत हो रही हो तो उसे निबटा ले नही तो गडबड हो जाएगी इस में समझौता मत करना |वैसे इस के समय का भी कोई बंधन नही है खाते पिटे सोते बैठते उंघते जागते मुस्कराते ,रोते पिटे खिसियाते डांट दिखाते और जब भी चाहे मन मर्जी समय और सुविधा के अनुसार कभी भी कर सकते हैं और आआगे अपने मित्रों से भजें के लिए जरूरी कह देब कि आप ने यदि इसे अपने दस मिर्तों को भेजा तो आप हर काम सफल हो जायेगा |पुलिस आप से कम से कम हप्ता वसूलेगी जे ई से ले कर नेता जी तक आप से कम से कम म्किष्ण मांगेंगे लोग आप कि शिकायत नही करेंगे घर वाली आप से प्रसन्न रहेगी आप कि घर के काम करने वाली कभी आप के घर का काम छोड़ कर नही जाएगी बच्चे आप का काम हल्का कर देंगे वे अपने हिसाब से अपना काम कर लेंगेदफ्तर में आप को बॉस नही डांटेंगे आप जिसे घरवाली से चोरी छुपे मिलते है वह आप को रोज मिलने का प्रयत्न करेंगे आदि २ और यदि आप ऐसा नही करेंगे तो बस फिर आप की खैर नही है सारे काम आप के उलटे हो जायेंगे |
बेशक आप कोई गलत काम करेंगे भी नही तो भी आप पर चार जून की घटना जैसे कहीं भी पुलिस की लाठी पड़ जाएगी बेशक आप खूब ईमानदारी से काम करें फिर भी सरकार आप को किसी न किसी तरह से फंसा ही लेगी आप पर कई तरह के केस बनवा देगी और कुछ नही तो इनकम टेक्स में ही फंसा देगी या किसी गुंडे से ही पीत्वा देगी आप का मकान दुकान कुछ भी बिना बात गिरवा देगी आदि २ |
इस लिए आप से प्रार्थना है कि आप ज्यादा से ज्यादा एस एम् एस भगवान के प्रचार प्रसार में सहभागी बन कर पुन्य लाभ प्राप्त करें अपने सभी उलटे सीधे कामों को आसानी से बना ले और इस लोक में खूब मजे लूटें मरने के बाद की बात छोडो मरने के बाद कौन लौट कर आता है जो तुम्हे बताये कि क्या होता हैपर मरने पर परलोक की गति को आसानी से प्राप्त करें क्यों कि हमारे यहाँ कर्म फल का सिद्धांत तो सर्वोपरी है ही इस लिए एस एम् एस कर के अपने कर्म फलों को खूब अच्छा बनाते हए मजे करें तो सब बोलो - भगवान एस एम् एस जी की जय ||
डॉ. वेद व्यथित
०९८६८८४२६८८

Thursday, December 1, 2011

ओ हिम सुन्दरी !

ओ हिम सुन्दरी !
एक नया नाम दे दिया तुम ने
उस चट्टानी पर्वत को
और तुम्हारे अपनाने से
ख्यात हो गया वह
तुम्हारे नाम से
जिस के कारण ही
पत्थर के बजाय
बन गया वह -
हिमालय या हिमवान ||
ओ हिम सुन्दरी !
तुम ने ही कर दिया उसे रससिक्त
जिस के कारण निसृत हुई
उस के हृदय से
अमृतोपम निर्झरी
जो साक्षात् तुम ही थीं
सोचता हूँ !
यदि तुम नही अपनाती उसे
तो पत्थर ही बना रहता वह
कठोर और तप्त पत्थर
परन्तु तुम ने अपना रूप दे कर
रुपहला बना दिया उसे
बेशक ,
उसे रुपहला बनाये रखने के लिए
तुम और भी सहती रहीं
भयंकर शीत को
ताकि तुम्हारा प्रेमांचल
मिलता रहे उसे निरंतर
फिर भी कहाँ छोड़ा तुमने
अपना स्त्रीत्व व सतीत्व
जिस के कारण मिला उसे शिवत्व
और नत हो गई जगती
उस के प्रति |
ओ हिम सुन्दरी !
धन्य कर दिया तुम ने उसे
क्यों कि
अपना अस्तित्व खो कर भी
प्रकट होती रही तुम
कभी उस के शिवत्व में
कभी अमरत्व में
और कभी जीवन के कण कण में
ओ हिम सुन्दरी ||

Wednesday, November 16, 2011

फिर अंधियारी रात हो गई |

अभी अभी तो दिन निकला था
सूरज अठखेली करता था
पता कहाँ चल पाया मुझ को
इतनी जल्दी साँझ हो गई
दिन बीता सपने सा खाली
फिर अंधियारी रात हो गई ||

दीख रहा था अभी सामने
हाथ बढ़ा कर छूना चाहा
पर माया मृग बन कर खुद को
खुद से दूर बहुत ही पाया
कहाँ कहाँ ढूँढा फिर खुद को
सब कोशिश बेकार हो गई ||

आँखों का विश्वास यदि मैं
कर भी लूं तो नादानी है
बिना बताये कहाँ उलझ लें
वे पीड़ा से अनजानी हैं
उन का क्या वे उलझ २ कर
मुझ को कितनी पीर दे गईं ||

मुस्कानों से दूर रहूँ तो
मरघट सा जीवन लगता है
यदि उलझता मुस्कानों में
नही भेद उन का चलता है
जितना उलझन को सुलझाया
उलझन उतनी और हो गई ||

आखिर तो वे मेरे सपने
साथ कहाँ तक दे पाएंगे
आखिर इन का लिए सहारा
कितने से दिन कट पाएंगे
फिर भी जीवन की अभिलाषा
सांस सांस की आस हो गई ||

Sunday, November 13, 2011

हम न लीक बनाई क्यों है

हम न लीक बनाई क्यों है

मौन साधना भंग हुई तो
इस में शब्द कहाँ दोषी हैं
नभ से तारा टूट गिरा तो
इस में वह कहाँ दोषी है

दोष दूसरों को देने की
हम ने लीक बनाई क्यों है ||

आखिर कितनी देर रहे दिन
सूरज को भी ढल जाना है
रात चांदनी भी ढल जाती
और अमावस को आना है

फिर अंधियारे से नफरत की
जाने रीत बनी क्यों है ||

जो भी रंग आकर्षित करते
सारे फीके पड़ जाता हैं
कितने आकर्षित यौवन हो
सारे ढीले पड़ जाते हैं
फिर क्यों बेरंगी सांसों से
दूरी खूब बनाई क्यों है ||

Monday, November 7, 2011

देवताओं का जागना

बन्धुवर निरंतर आप का स्नेह मिल रहा है इसे बनाये रहिये यह व्यंग देवताओं के सोने और जागने के मिथक से जुड़ा है पर आस्तिकता को श्रद्धा पूर्वक नमन करते हए लिखा है
आप का स्नेह इसे भी मिलेगा |


देवताओं का जागना
अच्छे भले देवता लोग सो रहे थे |चारों ओर शांति थी न कहीं शोर न शराबा ,न ढोल न नगाड़ा ,न बाजा न ढोलक ,न हाय न तोबा न वाहनों में भीड़ न सडकों पर भीड़ लोग अपने २ कामों में अच्छे भले लगे हुए थे |जिन्दगी आराम से अच्छी भली चल रही थी |परन्तु जैसे २ देवताओं की नींद टूटने सी लगी लोगों में काना फूसी होने लगी |आखिर एक दिन देव पूरी तरह से जाग गये यानि देवोत्थान हो गया |
देवता क्या जगे ,लगा जैसे अशांति ही जाग गई |लोगों के बहुत सारे काम इसी इंतजार में रुके हुए थे कि कब देवता जगे और कब वे अपने काम शुरू करें जैसे मानो वे कुछ कर ही नही रहे हैं अब न तो वे खा रहे हैं न पी ही रहे हैं न सो रहे हैं न जाग रहे हैं |पर इन में से तो उन्होंने देवताओं के जागने तक एक भी काम नही रोका हुआ था सब काम दिन प्रतिदिन कर रहे थे |कई बार खाते थे कई बार जंगल या दिशा मैदान जाते थे परन्तु ऐसा कौन सा काम था जो वे नही कर रहे थे या जिस पर देवताओं ने पाबंदी यानि प्रतिबन्ध लगाया हुआ था मुझे तो समझ नही आया क्यों कि जब उन के सोते रहने पर खा पी सकते थे जन्म मरण सब हो सकते थे तो फिर देवताओं के जागने का भला किस बात का इंतजार कर रहे थे जो देवताओं के जगे बिना नही हो सकता था |
परन्तु यहाँ के लोग ठहरे डरपोक कि यदि कुछ आवश्यक या बड़े काम देवताओं के सोते हुए कर लिए तो देवताओं की नींद खुलने पर वे नाराज हो जायेंगे और फिर उन की नाराजगी से सूरज नही निकलेगा या धूप नही आएगी जिस के डरके मारे लोग काम बंद कर देंगे परन्तु देवताओं के सोये हुए तो धूप भी खूब अच्छी आती थी वरिश भी होती थी रिम झिम फुहार भी पड़तीं थीं |परन्तु देवताओं के जागने पर तो धूप भी कम हो जाती है सर्दी भी पड़ने लगती है कोहरा छाने लगता है रास्ते बंद होने लगते हैं परन्तु फिर भी देवों के जागने का इंतजार हम सब बड़ी बेसब्री से करते रहते हैं |यह बात अलग है कि हमारे इस डर का फायदा बाहर के लोगों ने खूब उठाया और अब भी उठा रहे हैं |
आखिर जब देवता जाग ही गये तो जैसे भूखा पशु चारे को देखते ही एक दम भागता है ऐसे ही लोग भी उन कामों के लिए भागे जो उन्होंने रोके हुए थे | इन में सब से बड़ा काम था लडके लडकियों की शादी - विवाह का जो जैसे तैसे रोके हुए थे जो शरीफ थे रुके भी पर सब कहाँ रुक सकते थे कुछ इधर उधर हो भी गये जो रह गये तो देवताओं के जागते ही लोगों ने सब से पहला शादी ब्याह का ही शुरू किया कभी जो रुके हुए थे वे इधर उधर भाग भूग न जाये |इस लिए लोगों ने तुरंत शादियाँ शुरू कर दी |
अब क्या था जिधर देखो शोर ही शोर " हाय रब्बा ...हाय रब्बा "गाने कि इतनी हाय तोबा की पूछो मत |जिस का परिणाम यह हुआ कि इन दिनों न तो कोई वेंकट हाल यानि बरात घर या धर्म शाला खाली मिलती है न घोड़ी वाले न बाजे वाले न ही हलवाई और तो और बरातियों का भी टोटा पड़ जाता है जो भी मिलता है औने पाने दाम मांगता है पर इस का फायदा क्या परन्तु फिर भी सिर मुड़वाना पड़ता है |
लोग शादी में प्रीती भोज भी रखते हैंपरन्तु एक ही दिन भला आदमी कितने प्रीती भोज खा सकता है |यदि ये प्रीती भोज अलग २ दिन हों तो भोज खाने का कितना मजा आता माल पर खूब हाथ साफ़ किया जाता परन्तु लोग तो सोचते हैं कि देवों के जागते ही ज्यादा से ज्यादा शादियाँ कर लो जैसे बाद में नम्बर ही नही आएगा या लोग कोई दौड़ जीत लेंगे और तुम पीछे रह जाओगे इस लिए पहले ही दिन लोग होड़ लगा २ कर शादियाँ ब्याह निपटने की फ़िराक में रहते हैं कि कहीं देवता कल ही फिर न सो जाएँ फिर बताओ खाने का मजा कैसे आये परन्तु पैसे तो कई २ जगह जमा करने ही पड़ते हैं परन्तु खाना एक भी जगह ठीक से नही खाया जाता है परन्तु हो क्या सकता है क्यों कि देवता तो अभी २ जागे हैंबस थोड़े दिनों के लिए और लोग हैं कि ऐसे इंतजार करते हैं जैसे देहली के स्टेशन पर बिहार की ओर जाने वाली गाड़ी का भीड़ इंतजार करती है और आते ही जिस पर बुरी तरह टूट पडती है कि कहीं यह छूट न जाये |
अब लोगों को कौन समझाये कि देवता न तो सोते हैं न जागते हैं | वे तो सदा ईश्वर के आधीन काम करते हैं जैसे सूरज यदि सो जाये तो दिन कैसे निकले और रात कैसे हो इसी तरह यदि इंद्र देवता सो जाएँ तो वारिश कैसे हो आदि २ पर ऐसा तो होता नही कि कुछ देवता सो जाएँ और कुछ जागते रहें क्यों कि ऐसा प्रमाण किसी पुराण आदि में नही मिलता है यदि ऐसा हो तो जागने और सोने बाले देवताओं की बारी भी बदल २ आये कि एक बार तुम जागो और दूसरी बार हम जागेंगे परन्तु ऐसा होता नही है |
वैसे लगता है देवता न तो सोते हैं और न ही जागते हैं अपितु लोग ही उन्हें जबरदस्ती सुला देते हैं और फिर अपनी सुविधानुसार जगा लेते हैं इस बीच कई बड़े २ काम उन के सोते २ ही चुप चाप उन्हें बिना बतये या जगाये ही कर भी लेते हैं |अब पता नही देवताओं को इस का पता चलता भी है या नही या मनुष्य चालाकी से पता ही न चलने देते हों |यह भी हो सकता है कि देवता ही सोते हों देवियाँ न सोती हों इसी लिए तो देवताओं के सोने के बाद ही चुपके से मनुष्य देवियों का पूजन कर लेते हैं क्योंकि यदि देवता जागते रहें रहें तो तो भला वे देवियों को क्यों पूजने दें वे भी मनुष्यों से कम थोड़ी हैं जैसे मनुष्य अपनी पत्नी को आगे बढने से प्रसन्न नही होते देवता भी वैसा ही जरूर करते होंगे क्यों कि वे भी तो पुल्लिंग हैं इसी लिए तो लोग देवताओं के सोते हुए ही देवियों को प्रसन्न करने के लिए बहुत से उपाय करते हैं जैसे देवियों के लिए वे कन्या पूजन कर लेते हैं देवियों को खूब हलवा पूरी बना २ कर प्रसाद चढाते हैं रात २ भर देवियों के लिए जागरण करते हैं करवा चौथ , अहोई माता का पूजन और सब से ज्यादा लोगो के लिए महत्व पूर्ण लक्ष्मी देवी का पूजन भी देवताओं के सोते २ ही कर लिया जाता है लक्ष्मी देवी जी के पूजन के लिए तो खूब ताम झाम किया जाता है घर द्वार सब रोशन किया जाता है बिजली की झालरे या लड़ियों से घर बाहर सजाया जात है घी तेल के दिए जलाये जाते हैं खूब रिश्ते नाते दारों को व अडोसी पडौसियों को मिठाइयाँ बांटी और खिलाई जाती हैं |नये २ बढिया २गिफ़्त यानि उपहारों का खोब लेना देना होता है बड़े अफसरों नेताओं के घर इसी बहाने खूब लक्ष्मी बरसती है रिश्वत का खुला खेल इसी बहाने खूब चलता है | इस से आप स्वयम अनुमान लगा सकते हैं कि देवियों का देवताओं से कितना अधिक महत्व है |
अब जब देवियों का खूब पूजन आदि हो चुकता है तब देवताओं को जगाया जाता है क्यों कि अब देवताओं के घर में तो पूरी सेंध लग ही चुकी होती है |फिर देवताओं की खूब प्रशंसा की जाती है कि हे देवताओं जागो हम तो आप के जागने का कितने समय से इंतजार कर रहे हैं कि आप जगे तो हम अपने महत्व पूर्ण काम कर सकें आप के जागने के इंतजार में वे सब काम हम ने आप के लिए ही तो रोक रखे हैं |फिर उन्हें खुश या प्रसन्न करने के लिए तरह २ उपाय किये जाते हैं |शादी ब्याह आदि शुरू कर देते हैं खूब ढोल नगाड़े गाजे बजे बजाने लगते हैं ताकि देवताओं को खूब बहकाया जा सके साथ ही बरात आदि निकल कर भी खूब शोर किया जाता है इस से देवता भी शायद खूब खुश होते होंगे कि ये मनुष्य कितने अच्छे हैं जो हमारे सोये रहने पर कोई काम नही करते हैं अपितु हमारे जागने का इंतजार करते रहते हैं और जब हम जाग जाते हैं तभी अपने काम शुरू करते हैं परन्तु उन्हें क्या पता कि लक्ष्मी देवी जी के पूजन जैसे काम तो उन्होंने देवताओं के सोते २ ही निपटा लिए हैं ताकि उन्हें पता भी न चले और काम भी बन जाये क्यों कि देवताओं पास वैसे है भी क्या असली माल तो देवियों के पास ही होता है जैसे धन - दौलत ,विद्या -बुद्धि ,शक्ति आदि सभी कुछ तो वास्तव में देवियों के पास ही होती है इस लिए लोग चालाकी से देवताओं को सोये हुए ही चुपचाप अपना काम निकल लेते हैं कभी देवता अपनी देवियों को ये सब न देने दें इस लिए मनुष्य चालाकी से देवियों की पूजा पहले ही कर के लक्ष्मी जी से माल अपने कब्जे में कर लेते हैं |फिर उस में से ही थोडा बहुत खर्च कर के देवताओं को सस्ती २ सी चीजों से ही खुश कर देते हैं उन के पूजन के लिए मिष्ठान के बजाय सस्ते २ से मूली सिंघाड़े जंगली बेर खेत से तोड़ कर लए गये गन्ने आदि से पूजन कर के उन्हें खुश कर देते हैं जब की देवियों के लिए खूब माल बनाते हैं घर सजाते हैं |
अब पता नही यह बात देवताओं को कब पता चलेगी या लोग उन्हें पता भी चलने देंगे या नही या वे देवताओं को यूं ही सुला जगा कर a बहका कर चुप चाप लक्ष्मी आदि का पूजन करते रहेंगे चलो देवी देवता तो अपने आप भी सोते जागते रह सकते हैं पर मनुष्य पता नही कब जागेंगे वैसे देश की परिस्थियों को देखते हुए अब तो उन्हें जाग ही जाना चाहिए |
डॉ वेद व्यथित
अनुकम्पा -१५७७ सेक्टर ३
फरीदाबाद १२१००४
०९८६८८४२६८८

Wednesday, November 2, 2011

हम नई लीक बनाई क्यों है

हम ने लीक बनी क्यों है

मौन साधना भंग हुई तो
इस में शब्द कहाँ दोषी हैं
नभ से तारा टूट गिरा तो
इस में वह कहाँ दोषी है

दोष दूसरों को देने की
हम ने लीक बनाई क्यों है ||

आखिर कितनी देर रहे दिन
सूरज को भी ढल जाना है
रात चांदनी भी ढल जाती
और अमावस को आना है

फिर अंधियारे से नफरत की
जाने रीत बनी क्यों है ||

जो भी रंग आकर्षित करते
सारे फीके पड़ जाता हैं
कितने आकर्षित यौवन हो
सारे ढीले पड़ जाते हैं
फिर क्यों बेरंगी सांसों से
दूरी खूब बनाई क्यों है ||

Sunday, October 23, 2011

मित्रों आप सभी के लिए दीपोत्सव पर हार्दिक मंगल कामनाएं करता हूँ कृपया स्वीकार कर के अनुग्रहित करें
मन दीप सजाया है
दीवाली आई है
खुशियों का उजाला है ||
--------------------
दीपों का उत्सव है
तुम्हें खुशियाँ खूब मिलें
मेरा ऐसा मन है ||
--------------------
मन दीपक हो जाये
अंधियारे दूर रहें
उजियारा हो जाये ||
---------------
मन में दीवाली है
दिल दीप जलाया है
उस की उजियारी है ||
---------------------
जब भी वो आयेंगे
अँधेरा नही रहना
दीपक जल जायेंगे ||
---------------------
दीपोत्सव
भारत की महान संस्कृति व परम्परा "असतो मा सद्गमय ,तमसो मा ज्योतिर्गमय ,तथा मृत्योर्मा अमृतं गम्य" की है इन तीनो सूत्रों में भारतीय संस्कृति का पूरा दर्शन समाया हुआ है |सत्य की प्रतिष्ठा जीवन का आधार रहा है |सत्य के लिए यहाँ इतिहास में सर्वस्व होम करने की अनेकों घटनाये मिलती हैं |यही हमारा इतिहास बोध है |राजाओं का वंश क्रम हमारा इतिहास बोध नही है |अपितु ऋषियों का त्याग राजाओं का वैराग्य जैसे राजा शिवी राजा हरिश्चन्द्र राजा विक्रमादित्य आदि के म्हण कार्य ही हमारे इतिहास का गौरव हैं |यह इतिहास बोध पीढ़ी डॉ पीढ़ी हमारे समाज में रचता बसता आ रहा है |इन्ही सूत्रों का विस्तार ही प्रकारांतर से और प्रतीकात्मक रूप से इन पर्वों व उत्सवों का स्वरूप है |इन्ही उत्सवों में ही एक महत्व पूर्ण उत्सव है - दीपोत्सव , जो तमस यानि हर प्रकार की की बुराइयों पर ज्ञान या प्रकाश का प्रसार है |प्रकाश रूप है अग्नि का या अग्नि का प्रतिफल है - प्रकाश |विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ वेदों में सब से पहले अग्नि के मंत्र मिलते हैं |बाद में ईश की प्रार्थना है अर्थात संसार के एक महत्व पूर्ण महत्त्व अग्नि की उपासना इस देश की महान परम्परा रही है |वह विभिन्न अवसरों पर भैगोलिक परिस्थितयों के अनुसार होती रही है |और सम्पूर्ण विश्व में इस का प्रसार व प्रचार भारत से हुआ है |वह चाहे पारसी धर्म हो या अन्य मत सभी में इस तत्व का महत्व भारत के कारण प्रतिपादित है |
बात सीधी २ यदि दीपोत्सव या दीपावली की करें तो यह भी अग्नि के उपासना का ही उत्सव है इसी लिए दीपोत्सव की विभिन्न प्रकार से मनाने की परम्परा रही है इस में कुछ अनुचित तथ्य भी पता नही कैसे सम्मलित होते चले गये यथा राम के अयोध्या लौटने पर दीपावली मनाई गई तब से परम्परा चली परन्तु काल गणना के अनुसार इस पर्व से पूर्व ही श्री राम के अयोध्या लौटने का समय है श्री राम कथा का मूल स्त्रोत वाल्मीकि रामायण इस बात की पुष्टि करती है |
मूल बात तो तमस से प्राणी के संघर्ष की है |उस पर विभिन्न माध्यमों से विजय प्राप्त करने की है जो वास्तव में दीपोत्सव है |तमस यानि हर प्रकार की बुरे हर प्रकार का पेदूष्ण हर प्रकार की युगानुरूप अनैतिकताएं ये सभी तमस हैं |इन सब के विरूद्ध संघर्ष के उपरांत की स्थिति ही वास्तविक दीपोत्सव है |
यह दीपोत्सव निरंतर प्रकाश की मांग करता है |हम ने माटी का दिया जलया ,छत की मुंडेर पर रखा पूजा में रखा ,हर स्थान पर रखा पर वह अँधेरे से कितनी देर तक संघर्ष कर पायेगा |दो घंटे चार घंटे परन्तु अँधेरा तो फिर भी बना रहा अँधेरे का अस्तित्व नही मिटा पाया और मिटेगा भी नही |प्रकाश के आने से कुछ समय के लिए `बेशक अँधेरा समाप्त होगया पर उस का अस्तित्व मिटता नही अस्तित्व बना रहता है अँधेरे अस्तित्व कभी समाप्त नही होता असल में तो यह संघर्ष ही दीपोत्सव है |इस तमस को समाप्त करना ही दीपावली है |
परन्तु यह माटी के बने घी तेल या विद्युत् प्रकाश अव्लियों से कैसे सम्भव है |उस के लिए सदाचरण जरूरी है |उल्लू की सवारी पर सवार लक्ष्मी विलास के साधन तो देंगी पर तमस नही मिटा पाएंगी |उस के लिए सुन्न महल में दियरा {दीपक }बालना जरूरी है तब झिलमिल २ झलकेगा नूर जो प्रकाश से भरपूर रहेगा |तब सन्न में नूर चमकेगा तो अनंत दीपोत्सव आ जायेगा |फिर माटी का दिया नही अंतर का दीवला प्रज्ज्वलित हो जाएगा |तब दीपोत्सव मनेगा ऐसे दीपोत्सव को आनन्दमय बनाएं आनन्द से दीपोत्सव मनाएं |
बात यहाँ समाप्त नही हुई है |लोक प्रसिद्ध कहावत है शास्त्रं सिद्धे लोक विरुद्धे न चरनियम व चर्नियम अर्थात जो लोक में प्रचलित है उस के विरुद्ध आचरण भी उचित नही है |सब ओर दीपों की जगमगाहट हो और आप केवल अपने अंदर की दीपावली ढूंढ रहें हों , बेशक ,परन्तु लोकाचार हेतु आप को भी चीन देश निर्मित लड़ियाँ लगनी पड़ेंगी ,दीपक जलाने ही पड़ेंगे परन्तु इस के पीछे भी महान भारतीय सांस्कृतिक वैज्ञानिक कारण हैं क्यों किकोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व हम दीप स्थापना अवश्य करते हैं कार्तिक मास की अमावश्या को व तदोपरांत तो आने वाला समय तमस भरा ही है तो यह सब उस आने वाले तमस से संघर्ष की तैयारी समझो |वर्षा ऋतू कालोपरांत प्रक्रति में उत्पन्न कित पतंगों को दूर करने के लिए रखे हुए वस्त्रादि में उत्पन्न बैक्टेरिया आदि से निपटने के लिए तथा आने वाले समय में सूर्य की कम ऊर्जा व इस कारण उत्पन्न कुछ नकारात्मक ऊर्जा से निपटने के लिए यानि सब ओर सकारात्मक ऊर्जा यानि पोसिटिव एनर्जी के प्रसार हेतु दीपक ही एक महत्व पूर्ण सस्ता व सुलभ साधन है |इस के लिए लक्ष्मी आने भने ही सही वहाँ तदीया जलते हैं परन्तु सोचो लक्ष्मी के आगे वो भीउन के वाहन उल्लू के समक्ष दीया आखिर सोचो जिस को रौशनी भाती नही उसी के समाने भी दिया जलाया जा रहा है पर जलाना है और यहाँ तक की लक्ष्मी जी से ले कर घूरे यानि कूढ़े के ढेर पर भी दिया रखते हैं या जहाँ भी कहीं अँधेरा कोना है हर उस कोने तक प्रकाश प्रकाश यानि सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार हम दीपोत्सव के भने करते हैं ताकि नकारात्मक ऊर्जा से बचा जा सके |
फिर दूसर कारण बौद्धों के साधना के प्र्भावोत्प्न्न तन्त्र साधना भि९ तमस कहती है यह सब उस के अनुकूल भी प्रतीत होता है |श्रीम बिज मन्तर की साधना का भी उपयुक्त समय है |परन्तु कुछ मिथक अज्ञानता के कारण बिना बात भी समाज में प्रचलित हो गये जैसे जुआ खेलना बताऊ कहाँ लिखा है यह सब |यह सब धर्म के नाम पर या परम्परा के नाम मिथ्या चार है |ऐसे ही लोगों का विश्वाश है रात को लक्ष्मी जी आएँगी वे रात को घर के दरवाजे खुले छोड़ कर सो गये लक्ष्मी जी तो आईं नही पर चोर घर में रखी जो थोड़ी बहुत लक्ष्मी थी उसे भी ले गये |
इस लिए जरूरी है उत्सव की भावना को समझना अपनी सीमाओं को जानते हुए ही उत्सव मनाना जिस से उस का भरपूर आनन्द प्राप्त हो सके
मैं इस दीपोत्सव के अवसर पर आप सब को हार्दिक मंगल कामनाएं प्रदान करता हूँ आप सब का मंगल हो शुभ हो कृपया इसे स्वीकार कर के मुझे अनुग्रहित करें |

Monday, September 19, 2011

अमर बलिदानी मोहन चंद शर्मा के बलिदान दिवस पर नम आँखों से श्रद्धांजली

अमर बलिदानी मोहन चंद शर्मा के बलिदान दिवस पर नम आँखों से श्रद्धांजली


मोहन चंद गये ही क्यों थे आतंकी से लड़ने को
भारत माता के चरणों में जीवन अर्पण करने को
ऐसे ऐसे प्रश्नों की यदि छूट मिलेगी शासन से
कौन चलेगा यहाँ देश हित जीवन अर्पण करने को ||

मेरी नही चिता पर मेले यहाँ कहीं लग पाएंगे
गोली सीने पर खाई है फिर भी जाँच बिठाएंगे
बेशर्मी की हद हो गई आतंकी सम्मानित हैं
अगर देश पर मर जाओगे तो भी प्रश्न उठाएंगे ||

बहुत २ सारे वादे तो किये चिता पर जायेंगे
पर जैसे ही चिता बुझेगी दिए भुला वे जायेंगे
फिर उन के पीछे पीछे फिरने में जूती टूटेगी
अमर शहीदों के घर वाले दर दर ठोकर खायेंगे ||

दर. वेद व्यथित
०९८६८८४२६८८

Thursday, September 8, 2011

ये सर्जना के क्षण तुम्ही को तो समर्पित हैं |

तुम्हीं को तो समर्पित हैं |
ये सर्जन के क्षण

नींद आँखों में लिए
पलकें न होती बंद
चित्र कितने आ रहे हैं
सामने क्रम बद्ध
चित्र भी हूँ तूलिका भी
मैं सर्जक भी हूँ

इस सर्जन के ही लिए
सब कुछ समर्पित है ||

मलय सी शीतल पवन
जो छो रही तन और मन
ये छुअन की चेतना
करती है हर्षित मन
हर्ष के क्षण मिले कितने
बहुत ही तो कम

ये सुखद से अल्प क्षण
तुम को समर्पित हैं

एक संदेशा जो आया
अर्थ गहरे हैं
उसी गहरे अर्थ के
अनुवाद कितने हैं
जो तुम्ही समझे
न कोई दूसरा समझा

लाख कोशिश रही
कुछ तो कहूँ तुम को
शब्द ही पर अर्थ को
पहचानते कब हैं
शब्द को पहचन लें
वे अर्थ कितने हैं

अर्थ जिन को मिल गये
वे शब्द अर्पित हैं ||

Sunday, August 21, 2011

jai sri krishn

भगवान का ही कार्य है आज सत्य की विजय के लिए किये गये उन के कार्य को गौण बना कर भगवान की एक अनुचित छवि प्रस्तुत कर रहे हैं ये लोग जब कि भगवान ने बाल काल से आज योगिराज भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य दिवस है अत: भगवान के प्रति श्रद्धा निवेदन करना हर भारतीय का कर्तव्य है यह श्रद्धा उन के मानवता के प्रति कए गये कार्यों के प्रति समर्पण भाव से किये गये कार्य ही हैं इस लिए उन के चरित्र को बदनाम करने वाले तथाकथित कुछ भागवत कथा वाचकों द्वारा जिस प्रकार बिगाड़ा जा रहा है उस का प्रतिकार भी ही अन्याय का विरोद्ध किया था और प्रत्येक मनुष्य को धर्म युद्ध के लिए तत्पर होने को कहा था तथा धर्म के लिए बलिदान देना ही जिन्होंने धर्म बताया था आज वैसी ही परिस्थिति हैं
जिस के लिए हम को तत्पर रहना ही होगा नही तो अधर्म सब तरफ बढ़ते २ पूरी पृथ्वी पर छा जाएगा आओ भगवान को नमन करते हुए अधर्म के नाश के लिए आगे बढ़ें ||

Sunday, July 31, 2011

त्रि पदी

भूले कब जाते हैं
जो याद बहुत आते
वे खूब सताते हैं |

जो खूब सताते हैं
वे याद बहुत आते
पर भूले जाते हैं ||

कैसे उन को भूलूँ
हैं साँस वह मेरी
कैसे उन को भूलूँ ||

भूलों को जरा कह दो
वे याद रहें मुझ को
ये बात उन्हें कह दो ||

यह बात जरूरीहै
यह याद रहेगी ही
यह भूल ही ऐसी है ||

कुछ भूलें मीठी हैं
इन्हें भूल नही सकते
वे हर पल मीठी हैं ||

वह बात अभी भी है
वह भूल नही भूली
वह याद अभी भी है ||

भूलों को नही भूलें
फिर भूल नही होगी
कहे को उन्हें भूलें ||

भूलों को यदि भूलें
फिर भूल करेंगे हम
उन को न कभी भूलें ||

धोड़ा सा अंतर है
यादों और भूलों में
पर अंदर दोनों हैं ||

भूलों को भूल गये
यह बात नही जमती
क्यों खुद को भूल गये ||

इस मन के झरोखे में ||
यादों के झरोखे में
कुछ भूल तो होंगी ही

Sunday, July 24, 2011

चौपदे

भूलो राम राज की बातें ये ही अपना नारा है
घपलिस्तान बनायेंगे हम यही हमारा नारा है
अन्ना ,बाबा तो बेचारे यूँ ही खुद मर जायेंगे
बेवकूफ ये जनता है हम इस को नाच नचाएंगे ||

अन्ना जी क्या याद नही है पांच जून की घटना
अच्छी तरह हमे आता है मुंह को बंद करना
नही भूलना पांच जून को फिर दोहरा सकते हैं
शासन कैसे करना है ये हम को नही बताना ||

आजादी का जश्न मनाओ ये किस ने रोका है
पर सत्ता न हाथ लगेगी ये केवल धोखा है
सत्ता पर तो केवल और केवल अधिकार हमारा
बाक़ी कुछ भी करो और हम ने किस को रोका है ||

अब के लाल किले से जब झंडा फहराया जायेगा
उस के बाद बहुत सी बातों को फिर दोहराया जायेगा
पर मंहगाई और आतंकी घटना कम न होंगी
इसी तरह से देश खूब यूं ही लुटवाया जायेगा ||

मन्तर मैंने पढ़े और बिल में तुम हाथ लगा लो
घोटालों की हिस्से दारी चुपचाप पंहुंचा दो
बोलोगे तो पता तुम्हे है हम क्या कर सकते हैं
कुछ दिन मुंह पर अंगुली रख कर जेल में मौज उड़ा लो ||

पिछले सालों की भांति ही पन्द्रह अगस्त मनेगा
उसी भांति ही लाल किले पर झंडा भी फहरेगा
पर जिस अंतिम व्यक्ति कि गाँधी ने बात कही थी
शायद वो बेचारा तो अब दूर भी नही दिखेगा

Friday, July 22, 2011

चौपदे

भूलो राम राज की बातें ये ही अपना नारा है
घपलिस्तान बनायेंगे हम यही हमारा नारा है
अन्ना ,बाबा तो बेचारे यूँ ही खुद मर जायेंगे
बेवकूफ ये जनता है हम इस को नाच नचाएंगे ||

अन्ना जी क्या याद नही है पांच जून की घटना
अच्छी तरह हमे आता है मुंह को बंद करना
नही भूलना पांच जून को फिर दोहरा सकते हैं
शासन कैसे करना है ये हम को नही बताना ||

आजादी का जश्न मनाओ ये किस ने रोका है
पर सत्ता न हाथ लगेगी ये केवल धोखा है
सत्ता पर तो केवल और केवल अधिकार हमारा
बाक़ी कुछ भी करो और हम ने किस को रोका है ||

अब के लाल किले से जब झंडा फहराया जायेगा
उस के बाद बहुत सी बातों को फिर दोहराया जायेगा
पर मंहगाई और आतंकी घटना कम न होंगी
इसी तरह से देश खूब यूं ही लुटवाया जायेगा ||

मन्तर मैंने पढ़े और बिल में तुम हाथ लगा लो
घोटालों की हिस्से दारी चुपचाप पंहुंचा दो
बोलोगे तो पता तुम्हे है हम क्या कर सकते हैं
कुछ दिन मुंह पर अंगुली रख कर जेल में मौज उड़ा लो ||

पिछले सालों की भांति ही पन्द्रह अगस्त मनेगा
उसी भांति ही लाल किले पर झंडा भी फहरेगा
पर जिस अंतिम व्यक्ति कि गाँधी ने बात कही थी
शायद वो बेचारा तो अब दूर भी नही दिखेगा

Tuesday, July 12, 2011

फिर भी प्यासी प्यास रह गई

फिर भी प्यासी प्यास रह गई

बहुत बार बादल छाये हैं
बहुत बार वर्षा आई है
बहुत बार भीगा होगा मन
फिर भी प्यासी प्यास रह गई |
बहुत रात आँखों में बीतीं
बहुत सजाये स्वप्न रंगीले
सुबह हुई तो बिखर गए वे
रोज अधूरी आस रह गई |
बहुत कहा जो भी मन में था
बहुत सुना जो कहा उन्होंने
कहते सुनते गई जिन्दगी
फिर भी आधी बात रह गई |
कहाँ मिला जो भी मन में था
जो भी मिला नही मन भाया
फिर भी चलती रही जिन्दगी
मन की मन में बात रह गई ||

Monday, July 11, 2011

गठ्बन्धन

गठ्बन्धन की मजबूरी है चाहे देश बेच खाएं
गठ्बन्धन की मजबूरी है जानें कितनी भी जाएँ
गठ्बन्धन के कारण तो तुम देश का सौदा कर दोगे
ऐसा क्या ये गठ्बन्धन है मन मर्जी जो कर लोगे

Friday, July 8, 2011

दिल किरच किरच टूटे

दिल किरच किरच टूटे और टूटता ही जाये
बाक़ी बचे न कुछ भी फिर भी धडकता जाये
कहने को साँस चलती रहती खुद ब खुद ही
ये ही नही है काफी बस साँस चलती जाये
मौसम की बात छोडो अब खेत ही कहाँ हैं
खेतों में खूब जंगल लोहे का बनता जाये
तड़पन को कौन पूछे कितना भी दिल तडप ले
जब तक चले हैं सांसे बेशक तडपता जाये
ये भी हर भरा था जो ठूंठ सा खड़ा है
किस को पडी है बेशक मिट्टी में मिलता जाये
पाया नही जो चाहा अनचाहा खूब पाया
दुनिया में कब हुआ है जो चाहें मिलता जाये
अब बहुत हो चुका है सूरज का तमतमाना
अब तो गरज के बदरा रिमझिम बरसता जाये |

Friday, June 10, 2011

मेरे घाव यूँ न छेड़ो

मुझे नींद आ रही है मेरे घाव यूँ न छेड़ो
सपने न टूट जाएँ मेरी नींद यूँ न छेड़ो |
बरसात कब हुई है मुरझा रहीं हैं कलियाँ
गाओ न गीत भीगा मल्हार यूँ न छेड़ो |
दिल में कसक हुई है कुछ टीस सी हुई है
इस टीस को न पूछो इस दिल को यूँ न छेड़ो |
भीगे हैं पत्ते कलियाँ मन भीग २ जाता
आँखों में जो हैं सपने वे स्वप्न यूँ न छेड़ो |
मेरे मन की बात छोडो क्या बोलना है बोलो
मेरे मन में क्या बसा है मेरे मन को यूँ न छेड़ो |
जो भी कहा है तुम से तुम ने कभी न माना
मुझ को यही है शिकवा वो बात यूँ न छेड़ो |
जब २ भी धूप आई साया मिला न कोई
अब धूप भा गई है ये धूप यूँ न छेड़ो ||

Wednesday, June 1, 2011

जरूरी है

जरूरी है सभी दुर्गन्ध हटा दी जाये
कूढा है जहाँ आग लगा दी जाये
थोडा नुकसान सही ये तो सहना होगा
जरू री है बहुत दुनिया संवारी जाये ||

दुनिया को यह बात बता दी जाये
लगनी है जहाँ आग लगा दी जाये
बहुत शूल उपज आये हैं सभी राहों में
अब फूलों की वहाँ पौध लगा दी जाये ||

प्यार से पत्थर भी पिघल जायेगा
चट्टान तो क्या आसमां हिल जायेगा
प्यार की ताकत को जरा पहचानो
प्यार से अमृत सा बरस जायेगा ||

प्यार कोई धूल नही जो यूं ही उड़ा दी जाये
प्यार कोई फूल नही जो भेंट चढ़ा दी जाये
प्यार अनमोल है कीमत ही नही इस की
ये कोई वस्तु नही जिस की बोली लगा दी जाये ||

Friday, May 27, 2011

अच्छे दिन फिर से आयेंगे

अच्छे दिन फिर से आयेंगे

मन में जैसे भाव रहेंगे
वैसे चित्र उभर आयेंगे

जीवन की बाजी हारी तो
दुनिया में अँधियारा होगा
दिन में सूरज के रहते भी
रात अमावश जैसा होगा

फिर मत कहना अंधियारे तो
अपनी ताकत दिख लायेंगे ||

बेशक पतझड़ आ जाती है
पत्ते मुरझा कर गिर जाते
फिर भी वृक्ष खड़ा रहता है
हृदय हिन सा सीना ताने

क्योंकि आशा लिए हुए है
कोमल पत्ते फिर आयेंगे ||

बेशक खूब बवंडर आयें
बेशक धरती भी हिल जाये
कितनी विपदाएं भी आ कर
अपना ध्वंस नृत्य दिखलायें

फिर भी जीवन की बगियाँ में
सुमन बहुत से खिल जायेंगे ||

आशा और निराशाओं के
जीवन में कितने क्षण आते
दुःख और सुख की वे दोनों ही
रेखाएं अंकित कर जाते

फिर भी तो आशा रहती है
अच्छे दिन फिर से आयेंगे ||

Tuesday, May 24, 2011

गीत

गीत
राह सूझती नही
बहुत उलझा पथ है
ये मर्यादाएं हैं या
केवल उन का भ्रम है
मैं खड़ा देखता रहा
चलूँ तो किस पथ में |

कुछ राह चुनीं
देखीं परखी
कुछ दूर गया
आगे जा कर देखा
तो कुछ और मिला
अब वापिस लौटूं
या आगे कुछ और चलूँ
अब इस ही पथ में |

ऐसे तो राहें बहुत
और जीवन थोडा
किस २ को परखूँ
किस पर कितने
कोस चलूँ
कोई तो राह बची हो
शेष जहाँ मानवता हो
वह राह कठिन से कठिन
कठिन अग्नि पथ हो
मैं चल लूँगा जैसे भी होगा
उस ही पथ में ||

Wednesday, May 18, 2011

ग्रीष्म ऋतू की त्रिपदी

त्रि-पदी हिंदी के लिए नया छंद है मैंने नेट पर पहले सर्दी कि त्रिप्दियाँ प्रकाशित कि थीं जिन का मित्रों ने भरपूर स्वागत किया था व आशीर्वाद दिया था इसी कड़ी में ग्रीष्म ऋतू पर कुछ त्रिपदी प्रस्तुत है

ग्रीष्म ऋतू की त्रिपदी

क्यों इतना जलते हो
थोडा तो जरा ठहरो
क्यों राख बनाते हो

ये आग ही तो मैं हूँ
यदि आग नही होगी
तो राख ही तो मैं हूँ

अपनों ने ही सुलगाया
क्या खूब तमाशा है
नजदीक में जो आया

दिल में क्यों लगाई है
ये और सुलगती है
ऐसी क्यों लगाई है

ज्वाला भड़कती है
आँखों की चिंगारी
दिल खूब जलती है

ये सर्द बना देगी
इस आग को मत छूना
तिल तिल सा जला देगी

क्या क्या न जलाएगी
इस आग को मत छेड़ो
ये मन को बुझाएगी

इस आग को मत छेड़ो
यह दिल में सुलगती है
इस को मत छेड़ो

अंगार तो बुझता है
कितना भी जला लो तुम
वह दिल सा बुझता है

हर आँख में होती है
ये आग तो ऐसी है
ये सब में होती है

जलना ही मिला मुझ को
मैं तो अंगारा हूँ
कब चैन मिला मुझ को

जल २ के बुझा हूँ मैं
बस आग को पिया है
उसे पिता रहा हूँ मैं

मुझे यूं ही सुलगने दो
मत तेज हवा देना
कुछ तो जी लेने दो

सब आग से जलते हैं
कुछ को वो जलती है
कुछ खुद को जलते है

क्यों आग से घबराना
जब जलना ही था तो
क्यों उस को नही जाना

हाँ आग बरसती है
यह जेठ दुपहरी ही
सब आग उगलती है

क्यों दिल को जलते हो
ये इकला नही जलता
क्यों खुद को जलते हो

मरना भी अच्छा है
तब ही तो जलता हैं
जलना भी अच्छा है

धुंआ भी उठने दो
अंगार बनेगा ही
धीरे से सुलगने दो

यह आग न खो जाये
दिल में ही इसे रखना
यह रख न हो जाये

यह आग है खेल नही
दिल जैसी सुलगती है
इसे सहना खेल नही

Sunday, May 15, 2011

त्रि पदी

यह हिंदी काव्य की नई विधा है
यह हाइकू नही है यह तीन पंक्तियों की रचना है
इस में रिदम भी है
थोड़े से शब्दों में काव्य का चमत्कार व रस दोनों की अनुभूति होती है
मेरे ऐसी त्रि पदी देश विदेश में प्रकाशित हो चुकी हैं हो सकता है आप को भी पसंद आ जाये ये प्रचलित क्षणिका नही हैं पर निश्चित ही क्षणिका से भी छोटी विधा है जो क्षणिका नही तो और क्या है
कृपया आप चाहें तो विषय के अनुसार इन्हें कोई क्रम अवश्य देने की कृपा करें व जो भी उपयोगी प्रतीत हों कृपया उपयोग कर लें अन्ता अनर्गल समझ कर छोड़ दें
वेद व्यथित

दीवार से मत कहना
वो सब को बता देगी
ये बूढों का कहना
<>
गम अपने छुपा रखना
अनमोल बहुत हैं ये
ये कीमती हैं गहना
<>
दिल खोल के मत रखना
वो राज चुरा लेंगे
कुछ पास नही बचना
<>
जब हाथ ठिठुरते हैं
तब मन के अलावों में
दिल भी तो जलते हैं
<>
ये आग ही धीमी है
दिल और जलाओ तो
ये आग ही सीली है
<>
चूल्हे की सिकी रोटी
अब मिलती कहाँ है माँ
तेरे हाथों की रोटी
<>
सरसों अब फूली है
देखो तो जरा इस को
किन बाहों में झूली है
<>
रिश्ते न जम जाएँ
दिल को कुछ जनले दो
वे गर्माहट पायें
<>
नदियों के किनारे हैं
हम मिल तो नही सकते
पर साथी प्यारे हैं
<>
मीठी सी बातें थी
गन्ने का रस जैसी
वे ऐसी यादें थीं
<>
ये प्यार की कीमत है
सब कुछ सह कर के भी
मुंह बंद किये रहना
<>
फूलों का अर्थ नही
वे फूल से होंगे ही
पर फूल का अर्थ यही
<>
फूलों ने बताया था
नाजुक हैं बहुत ही वे
कुछ झूठ बताया था
<>
दिल की क्यों सुनते हो
ये बहुत सताता है
इस की क्यों सुनते हो
<>
कहते दिल पागल है
इसे समझ नही आती
सच में ये पागल है
<>
दो राहें जाती हैं
मैं किस पर पैर रखूं
वे दोनों बुलातीं हैं
<>
ज्वाला भडकाती है
आँखों की चिंगारी
दिल खूब जलाती है
<>
क्यों आग से घबराना
जब जलना ही था तो
क्यों उस से को नही जाना
<>
ये आग न खो जाये
दिल में ही इसे रखना
ये राख न हो जये
<>
यह आग है खेल नही
दिल इस से जलता है
इसे सहना खेल नही
<>
मन मन्दिर तो है ही
क्यों कि तुम इस में हो
ये मन्दिर तो है ही
<>
आँखों ही आँखों में
जो बात कही उन से
वो बात है चर्चों में
<>
एक दिया जलता है
सो जाते हैं सब पंछी
दिल उस का जलता है
<>
आँखों में समाई है
कोई और नही देखे
तस्वीर पराई है
<>
यादों का सहारा है
यह उम्र की नदिया का
एक अहं किनारा है <>
यह धूप है जड़ों की
इसे ज्यादा नही रुकना
लाली है गालों की
<>

आँखों में समाई है
क्यों फिर भी नही आती
ये नींद पराई है
<>
एक सुंदर गहना है
इसे मौत कहा जाता
ये सब ने पहना है
<>
यह जन्म का नत अहै
इसे मौत कहा जाता
यह लिख कर आता है
<>

Tuesday, May 10, 2011

कुछ नही बदलता है

पतझड़ ,वसंत ,
सर्दी गर्मी व बरसात
सभी कुछ आता है
हर बार अपनी ही तरह
परन्तु हम ही उसे
करते हैं कम या अधिक
अपने २ मन की
तराजू पर तोल २ कर
कभी कोयल की कूक को सुंदर बता कर
कभी बसंत के पीले रंग को
अपने दुःख से मिला कर
परन्तु न तो मौसम बदलता है
अपना रंग ,अपना मिजाज
और न ही अपना क्रम
अपितु हम ही बदल जाते हैं
और रंगते रहते हैं
अपने ही रंगों में
फूलों को ,भंवरों को ,तितलियों को
बादलों को ,शीत को और ताप को

Sunday, May 8, 2011

व्‍यथित 'अन्‍तर्मन '

गुल्लक
राजेश उत्‍साही की यादों,वादों और संवादों की

मेरी कविताएं 'गुलमोहर' मेंऔर आवारगी 'यायावरी' में पढ़ें।
SATURDAY, MAY 7, 2011

96...व्‍यथित 'अन्‍तर्मन '

डॉ. वेद ‘व्‍यथित’ जी से मेरा पहला परिचय साखी ब्‍लाग पर हुआ था। वहां उनकी कविताएं प्रकाशित हुईं थीं। आदतन मैंने अपनी टिप्‍पणी की थी। मुझे याद है मैंने लिखा था ,वेद जी अपनी कविताओं में आत्‍मालाप करते नजर आते हैं। टिप्‍पणी थोड़ी तल्‍ख थी, पर उन्‍होंने मेरी बात को बहुत सहजता से लिया था। मैं उनका तभी से मुरीद हो गया।


पिछले दिनों मैंने गुल्‍लक में सुधा भार्गव जी पर एक टिप्‍पणी लिखी थी और उनकी कविताओं की किताब का जिक्र करते हुए कुछ कविताएं भी दी थीं। संयोग से सुधा जी और वेद जी एक-दूसरे से पहले से परिचित थे, पिछले दिनों दिल्‍ली में उनकी मुलाकात हुई तो मेरी चर्चा भी निकल आई। वेद जी ने अपनी हाल ही में प्रकाशित कविताओं का संग्रह अर्न्‍तमन मुझे कूरियर से भेजा और आग्रह किया कि मैं अपनी प्रतिक्रिया दूं।

संग्रह के पहले पन्‍ने पर उन्‍होंने लिखा है, ‘सहृदय,सजग साहित्‍यकार,समर्थ समीक्षक,बेबाक आलोचक व मेरे अभिन्‍न मित्र राजेश उत्‍साही को सादर भेंट।’ जब आपको ऐसे विशेषणों से नवाजा जाता है तो आप अचानक ही सजग हो उठते हैं, आपको उन पर खरा उतरने की कोशिश भी करना पड़ती है।

ईमानदारी से कहूं तो वेद जी के संग्रह की कविताएं पढ़ते हुए मैंने यह कोशिश की है। संग्रह में छोटी-बड़ी कुल मिलाकर 80 कविताएं हैं। वेद जी ने संग्रह की भूमिका में लिखा है कि, ‘ये कविताएं स्‍त्री-विमर्श पर हैं। लेकिन मैंने चलताऊ स्‍त्री विमर्श के नारे को इनमें कतई नहीं ढोया है। स्‍त्री विमर्श शब्‍द आते ही लगने लगता है – शोषित,अबला,सताई हुई,बेचारी दबी कुचली स्‍त्री या हर तरह से हारी हुई या जिस तरह साहित्‍यकारों ने उसे इससे भी ज्‍यादा नीचे दिखाया जाना ही स्‍त्री विमर्श माना है,परन्‍तु मेरा ऐसा मानना नहीं है। ऐसा कहना स्‍त्री के प्रति एक प्रकार का अन्‍य है।'

ज्‍यादातर कविताओं में वेद जी अपनी बात पर अडिग नजर आते हैं। पर आत्‍मालाप वाली बात मुझे यहां भी नजर आती है। वे अपनी अधिकांश कविताओं में स्‍त्री से बतियाते नजर आते हैं। पर उनका बतियाना इतना सहज है कि उसमें कोई आडम्‍बर या लिजलिजापन नजर नहीं आता । आइए कुछ उदाहरण देखें-
तो क्‍या
मैं यह मानूं
कि जो मैंने सुना है
वह ही कहा है तुमने
यदि हां तो
बस उसकी स्‍वीकृति में
मात्र हां भर दो
(स्‍वीकृति)
कवि स्‍त्री के प्रति इतना प्रतिबद्ध है कि वह ना सुनने के लिए भी तैयार है बिना किसी शिकायत के। वह आशावान है-
अस्‍वीकृति भले हो भी
तो भी मुझे विश्‍वास है
कि वह अस्‍वीकृति हो ही नहीं सकती
क्‍योंकि कठोर नहीं है
तुम्‍हारा हृदय
(विश्‍वास)
स्‍त्री का यह रूप वेद जी को केवल स्‍त्री में नहीं प्रकृति में भी दिखाई देता है-
मिट्टी के नीचे
कितने भी गहरे
चले जाएं बेशक बीज
तो भी नष्‍ट नहीं होते हैं वे
धरती मां अपनी गोद में
दुलारती रहती है उन्‍हें
(प्‍यार व दुलार)
पुरुष होने के नाते कहीं-कहीं वे अपराध बोध से भर उठते हैं। लेकिन वे इसे स्‍वीकारने में हिचकिचाते नहीं हैं-
और मैं अपने अहम् को
बचाए रखने के लिए
कभी बना तुम्‍हारा देवता
कभी स्‍वामी और
कभी परमेश्‍वर
(तुम्‍हारे प्रश्‍न)
कितने अपराधबोध ने
ग्रस लिया था मुझे
जब तुम्‍हारी निरीहता को
अपना अधिकार मान लिया था मैंने
(पुरुषत्‍व)

वेद जी स्‍त्री के जितने आयाम हो सकते हैं उन सबकी बात करते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि उनकी दृष्टि कितने सूक्ष्‍म अवलोकन कर सकती है। ऐसे अवलोकन करने के लिए धीरज तो चाहिए होता है, धीरज ऐसा जो किसी स्‍त्री के धीरज की तुलना में ठहर सके। ऐसा मन भी चाहिए जो स्‍त्री के मन की थाह पाने की न केवल हिम्‍मत रखता हो बल्कि जुर्रत भी कर सके। वेद जी इन कसौटियों पर खरे उतरते हैं । अपनी कविताओं में वे स्‍त्री की नेहशीलता,स्‍त्री की हंसी, उसके हृदय, उसकी क्षमाशीलता, उसकी सहनशीलता, उसकी नियति, उसके समर्पण, उसके मौन, उसके विश्‍वास, उसके संघर्ष, उसकी शक्ति, उसकी तपस्‍या, उसके धीरज, उसके सम्‍पूर्ण व्‍यक्तित्‍व और अस्तित्‍व की बात करते हैं।

कविताएं सहज भाषा में हैं, उन्‍हें पढ़ते हुए अर्थ समझने के लिए शब्‍दों में उलझना नहीं पड़ता है। बिम्‍बों का वेद जी ने भरपूर उपयोग किया है, पर वे भी गूढ़ या अमूर्तता की हद तक नहीं हैं। इन कविताओं को पढ़ना सागर की गहराई में उतरने जैसा है। गहराई में जाने पर आपको ढेर सारे मोती नजर आते हैं। इन मोतियों की चमक से आपकी आंखें चौंधिया जाती हैं। आप तय नहीं कर पाते हैं कि कौन-सा मोती उठाएं। क्‍योंकि सभी एक से बढ़कर एक हैं। इस संग्रह की हर कविता अपने आप में एक मोती है, लेकिन इन्‍हें एक साथ देखकर इनकी चमक आपस में इतनी गड्ड-मड्ड हो जाती है कि आप किसी एक को भी अपनी स्‍मृति में नहीं रख पाते। बहरहाल वेद जी ‘अन्‍तर्मन’ में तो बस ही जाते हैं।
वे कहते हैं-
मुझे सुनने में क्‍या आपत्ति है
तुम सुनाओ
मुझे देखने में क्‍या आपत्ति है
तुम दिखाओ
परन्‍तु जरूरी है
इसे देखने,सुनने और बोलने में
मर्यादा बनी रहे
हम दोनों के बीच
(मर्यादा)
0 राजेश उत्‍साही
पुनश्‍च: भाई सतीश सक्‍सेना ने याद दिलाया कि व्‍यथित जी का ब्‍लाग भी है,शुक्रिया। यह रही उसकी लिंक http://sahityasrajakved.blogspot.com
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Saturday, May 7, 2011

आज भगवान कृष्ण भक्त महा कवि सूर दास जी की जयंती है

आज भगवान कृष्ण भक्त महा कवि सूर दास जी की जयंती है
भगवान के बाल स्वरूप की सुंदर झाकियां जिस मोहक ढंग से संत सूर दास जी ने काव्य में व्यक्त की हैं विश्व के किसी भाषा के साहित्य में ऐसा वर्णन देखने को नही मिलता
इस के साथ सात्विक प्रेम यानि श्रृंगार वर्णन में भी कवि सिद्ध हस्त है
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
विश्व का सर्वाधिक प्रख्यात बाल गीत है
आओ हम इस महान संत कवि को नमन करें
डॉ. वेद व्यथित

समुद्र वसने देवी ...... मदर दे

कई दिनों से मदर दे का बहुत शोर मच रहा है क्योंकि यह विदेश से आई हुई जूठन है जिसे चाट कर कुछ लोग अपने को सौभाग्य शाली बनने का प्रयत्न कर रहे हैं
मेरा उन से निवेदन है कि भारत में या हिन्दू संस्कृति में प्रत्येक दिन मात्र दिवस है
१ क्योंकि यहाँ कई माँ नही होती
२जो होती हैं वे सब पूज्य होती हैं जैसे भारत माता, पृथ्वी माता ,गौ माता ,स्त्री यानि मात्री शक्ति या देवी माता सभी पूजनीय हैं
हम प्रात: काल सर्व प्रथम पृथ्वी माता को प्रणाम करते हैं पद स्पर्श क्ष्मस्व्मे .......
हमारे यहाँ मात्र देवो भव सर्व प्रथम आता है बाद में पिता व आचार्य आते हैं
अत: हम तो प्रत्येक दिन माँ के लिए श्रद्धा निवेदन करते हैं एक दिन नही जो एक दिन करते हैं वे या तो भारतीय नही है या उन्हें जूठन चाटने की बीमारी है
अत; आओ नियमित अपने माता पिता की सेवा में संलग्न रहने का वृत्त लें
क्यों कि लिखा है
प्रात काल उठ कैरघुनाथ ,मत पिता गुरु नावैन्ही माथा
डॉ. वेद व्यथित

Thursday, May 5, 2011

रास्ते

रास्ते

रास्तों के साथ
कहाँ तक चलोगे आखिर
क्योंकि रास्ते
खत्म नही होते हैं कभी
जैसे कहा गया है कि
भोगों को हम नही भोगते हैं
अपितु भोग ही हमें
भोग लेते हैं
ऐसे ही रास्ते
कभी खत्म नही होते
अपितु हम ही
खत्म हो जाते हैं
उन के खत्म होने से पहले ||

Wednesday, May 4, 2011

आधुनिक

हमें पूरा भरोसा होता है
अपनी सिद्धता का
यानि अपने ज्ञान और अनुभव का
परन्तु जल्दी ही
टूटने होने लगता है वह
हमारे अपने छोटों के ही सामने
फिर वे समझने लगतेंहैं
खुद को समझदार
परन्तु जल्दी ही टूट जाता है
उन का भी भ्रम
और वे सिद्ध या अनुभवी ही
हो जाते हैं पुराने
यानि आउट डेटिड
अर्थात बीते जमाने के
जो नही है अब आधुनिक या माडर्न ||

Tuesday, May 3, 2011

नया पुराना

नया पुराना


जिन्हें फिर से तोड़ेंगी
आने वाली पीढियां वे सोचते हैं
हम ने तोड़ दीं रूढ़ियाँ
और बना दिया नये नियम
उत्तम और सर्वोत्तम
परन्तु यह सोचना
बड़ी भूल है हमारी
क्यों कि
यही नियम ही तो बनेंगे
रूढ़ियाँ
और यही नियम बन जायेंगे
पुरानी परम्पराएं
पुरानी और दकियानूसी कह कर ||

Saturday, April 30, 2011

प्रतिबद्धता

समय की प्रतिबद्धता कैसे कहोगे
जब समय के अश्व चलते हैं निरंतर
सूर्य नभ में कब रहा है थिर हमेशा
और पूर्णिमा रही है कब निरंतर

पर समय तो चाल अपनी चल रहा है
यही है प्रति बद्धता उस की निरंतर |

ज्वार के कितने बवंडर उठ खड़े थे
दूर मीलों तक नही जा कर रुके थे
लग रहा था छोड़ गहराई उठा है
जब किनारे दूर सागर के हुए थे

पर समन्दर शीघ्रता से लौट आया
यही है प्रति बद्धता उस की निरंतर |

गर्जना कर कर के वर्षा खूब की थी
जल मग्न करने को जागी भूख उस की
प्रलयकारी जल बहुत उस ने गिराया
वही रीते हाथ हो कर अब खड़ा है

स्वच्छ अपना रूप फिर उस ने दिखाया
यही है प्रति बद्धता नभ की निरंतर |

सुबह सूरज की किरण हर रोज आती
साँझ अपनी लालिमा हर दिन दिखाती
रात को तारे निरंतर जगमगाते
रोज प्रात: काल पक्षी चहचहाते

बिन रुके पृथ्वी धुरी पर घूमती है
यही है प्रतिबद्धता उस की निरंतर |

द्वंद जीवन में नये हर रोज आते
हृदय में वे शूल सा आकर चुभाते
मगर खुशियाँ भी कभी आती तो हैं
जो बहुत जल्दी से कितनी दूर जाती हैं

यही क्रम जीवन में होता है निरंतर
यही है प्रति बद्धता उस की निरंतर ||

Thursday, April 28, 2011

मेरा मन

मेरा मन
हमारा नाम ले कर भी तुम्हें अच्छा नही लगता
हमारी बात करना भी तुम्हे अच्छा नही लगता
हमारी एक भी खूबी तुम्हें अच्छी नही लगती
बता दो और क्या है जो तुम्हें अच्छा नही लगता |

मेरी आदत पुरानी है नही छूटेगी कैसे भी
मेरी कसमे पुरानी हैं नही टूटेंगी कैसे भी
बहुत मजबूर हूँ खुद भी बदलना चाहता हूँ मैं
परन्तु क्या करूं आदत नही छूटेगी कैसे भी |

तुम्हारे प्यार ने मुझ को नई राहें दिखाई हैं
तुम्हारे प्यार ने मेरी नई साँसे चलाई हैं
तुम्हारा प्यार ही मकसद है मेरी सांस चलने का
तुम्हारे प्यार ने मुझ को नई ज्योति दिखाई है |

चलो अच्छा है मन मेरा तुम्ही ने तो मिलाया है
कहाँ पर था वह जाने उसे वापिस बुलाया है
तुम्ही ने तो कहा उस को घरौंदे और मत ढूँढो
वही तो एक मंजिल ही जिस तुमने बताया है |

चलो अच्छा है तुमने ही यह खुद ही बताया है
चलो अच्छा है तुमने ही यह खुद ही बताया है
मुझे मालूम है धडकन हमारी एक ही तो है
तुम्हारा दिल है मेरे पास ये तुमने बताया है ||

Tuesday, April 26, 2011

लोक पाल बिल

लोक पाल के बनने से ऐसा हजूर डर क्या है
काले धन को खोने का ऐसा हजूर डर क्या हैं
जेल वेल की नौबत ही कब आ पायेगी इस से
बनने कब दोगे तुम इस को फिर हजूर डर क्या है ||

रिश्वत खोरी घोटालों से हडपी जो माया है
देने की बारी आएगी तुम ने जो पाया है
हाथी के आने पर कुत्ते शोर बहुत करते हैं
इसी तरह गद्दार देश के भी भौं २ करते हैं ||

कथनी करनी में अब कितना अंतर देख रहे हो
दिखने में ईमान दार हो सब कुछ देख रहे हो
इसी लिए क्या तुम चरणों के इतने दास बने हो
पकड़े रखो चरण इन्ही से ओहदे पर पंहुचे हो ||

जिस की थाली में खायाहै उस में छेद किया है
जिस का साथ दिया उस का ही बंटा ढार किया है
बिना बात के पांव फटे में देने में माहिर हो
षड्यंत्रों में फंसा किसी को भी बदनाम किया है ||

पहले तो नेता जी के ये आगे खोल खड़े थे
उस के बाद बड़े भईयाके पीछे खूब पड़े थे
दो भाइयों के बीच मुकदमे बाजी भी करवाई
अब न लोक पाल बन जाये यह सुपारी पाई ||

Monday, April 25, 2011

उन्नति या अवन्ती

बहुत मिश्किल है
यह तय करना कि
हम कर रहे हैं
उन्नति या अवन्ती
दिन प्रति दिन
क्योंकि दोनों ही
महत्व पूर्ण हैं अपने आप में
महत्व पूर्ण ही नही
अर्थ हीन और अर्थवान भी हैं
क्योंकि जिस उन्नति ने
बाजारीकरण कर दिया है
हमारे रिश्तों का हमारे सम्बन्धों का
हमारी सम्वेदनाओं का
तो क्या वह उन्नति है या अवन्ती
प्रश्न तो यह है
इस का उत्तर
मैं तुम से पूछता हूँ
जरा सोच कर उत्तर देना
कि उन्नति अवन्ती है
या अवन्ती उन्नति ||

Saturday, April 23, 2011

क्रौंच वध

क्रौंच वध

पहली बार तो नही हुआ था
पृथ्वी पर क्रौंच वध
परन्तु उस की पीड़ा को
शायद पहली ही बार
अनुभव किया गया था
जिस से बह चली थी
करुणा की अजस्र धारा
जो प्लावित होती ही रही
क्यों कि उस ने नही क्या था दावा
दूसरों को द्रवित करने का
अपितु कवि स्वयम द्रवित हो गया था
उस पीड़ा से
जिस से प्रादुर्भूत हुए
महा काव्य मानवता के ||

Thursday, April 21, 2011

समय

समय बदलेगा तो
क्या कुछ नही बदलेगा
निश्चित बदलेगा सब कुछ
समय अपने साथ साथ बदल देता है
पूरी की पूरी हवा को
इसी लिए तुम भी बदल जाना
समय के साथ साथ
तभी होगा तुम्हारा भी स्वागत
बदलते समय के साथ
क्योंकि यदि तुम बदले तो
लोग तुम्हें भी
बदलते समय का साथी मान कर
पहना देंगे फूलों की मालाएं
तुम्हारे भी उपर करेंगे
फूलों की वर्षा
इसी लिए बने रहना
समय के साथ
उस के कंधे से कंधा
मिला कर चलते रहना
देखना पिछड़ मत जाना
नही तो तुम्हे पीछे छोड़
समय निकल जायेगा
बड़ी तेजी से आगे ||

Wednesday, April 20, 2011

बड़ी विजय

जिन्दगी की
जिस महत्व पूर्ण लड़ाई को
आज जीत लिया है तुम ने
क्या उसे ही कल
हार नही जाओगे
शत प्रतिशत इसी तरह
इसी युद्ध स्थल पर
इन्ही हथियारों से
तब हार करकैसा अनुभव करोगे
क्या आज की विजयी मुद्रा जैसा
नही ,
परन्तु उस का अनुभव तो तभी होगा
जब हार कर
भावी पीढ़ी के समक्ष
निरुतर निरादेश या
मौन खड़े होंगे
परन्तु तब भी बच सकते हो
तुम अपनी हार से
विजयी पीढ़ी को अपना
आशीष दे कर
तब विजयी हो जाओगे तुम
यह ही विजयी बनाएगा तुम्हे
तुम्हारी हार के बाद ||

Monday, April 18, 2011

गीत मत गाओ

गीत मत गाओ सभी कुछ ठहर जाता है
गीत मत गाओ ये दरिया बहक जाता है
गीत को सुन कर परिंदा लौट आता है
गीत को सुन कर उड़ाने भूल जाता है
रोकना चाहो समय को तुम सुरीली तन से
पर समय तो और भी कुछ दूर जाता है
दर्द में भीगे हुए फाहे रखो मत घाव पर
घाव इस से और ज्यादा गहर जाता है
ये सुरीली तन तो नश्तर चुभोती है
तन मत छेड़ो वो उड़ना भूल जाता है
जब नदी ही ठहर जाती है रवानी छोड़ कर
फिर उसे बादल संदेशा आ सुनाता है ||

बेमौसम बरसात और किसान

राजा ये प्रताप तुम्हारा आंधी बादल आयें हैं
फसल पड़ी है बीच खेत के क्यों ये कहर बरपाए हैं
इंतजार था फसल पकेगी कर्ज सभी चुक जायेंगे
पर सब आशा धरी रह गई क्यों ओले बरसायें हैं

तुम तो फाटक बंद बंद कर चाय पकोड़े खाते हो
दालानों में कुर्सी रख कर कितनी मौज मनाते हो
पर किसान का हृदय डूबता फसल खड़ी खलिहान में
मौसम हुआ सुहाना कह कर उस को और चिढाते हो

भारत का दुर्भाग्य बड़ा है सुधि ले कौन किसान की
पेट भर रहा जो जन जन के सुनता कौन किसान की
कर्ज बोझ से दब कर टेढ़ी कमर हो गई यौवन में
पकी फसल पर ओले पड़ गये सुधि ले कौन किसान की

बहुत तेज बारिश ने गेहूं बीच खेत में भिगो दिया
जो सपना देखा था उस ने बीच खेत में डुबो दिया
अब क्या होगा कर्जदार का कर्ज सूद बढ़ जायेगा
बिन आंसू के हृदय फटेगा कौन उसे सहलाएगा ||

Tuesday, April 12, 2011

धीरज आखिर टूट गया

और छुपाता दर्द हृदय में अब कितना
दर्द हृदय की सब सीमायें लांघ गया

कितने ज्वार उठे और कितने लौट गये
कितने मोती तट बंधों पर बिखर गये
गहराई सागर की फिर भी गहरी थी
बेशक कितने झंझा आ कर चले गये
पर धरती की पीर न सागर समझ सका
बिन समझे तूफ़ान मचा कर लौट गया

बहुत रोकता रहा गर्जना कर कर के
आखिर तो वो हृदय ही था टूट गया
कितना रोका कहाँ रूका वो रोके से
तट बंधों का धीरज आखिर टूट गया
और धरा भी कहाँ रोकती अंतर को
इतने ज्वार उठे कि अंतर भीग गया

रूपहला आकर्षण कितना मोहक था
उस के बाद अमा भी देखी भूल गया
फिर फिर भूख जगी किरणें जब जब आईं
किरणों का आकर्षण तम को भूल गया
पर पूर्णिमा बाद अमावश आती ही
पूर्णिमा को देख अमा को भूल गया ||

Monday, April 11, 2011

भगवान श्री राम

भगवान श्री राम के जन्मोत्सव पर आप सब को हार्दिक शुभकामनायें
मैं इस अवसर पर प्रार्थना करता हूँ कि देश से दुष्टों का विनाश हो सब सुखी व सम्पन्न हूँ राम राज्य की स्थापना हो उस के लिए हम सब मिल कर काम करें

मुक्तक

किस ने देखा राम ह्र्दय कि घनीभूत पीड़ा को

कह भी जो ने सके किसी से उस गहरी पीड़ा को

क्या ये सब सेवा के बदले मिला राम के मन को

आदर्शो पर चल कर ही तो पाया इस पीड़ा को||



मन करता है राम तुम्हारे दुखका अंश चुरा लूं
पहले ही क्या कम दुख झेले कैसे तुम्हे पुकारू

फ़िर भी तुम करुणाके सागर बने हुये हो अब भी

पर उस करुणा में कैसे मै अपने कष्ट मिला दू||



किस से कह्ते व्यथा राम मन जो उन के उभरी

जीवन लीला कैसे २ आदर्शों मे उलझी
इस से ही तो राम २ है राम नही कोइ दूजा

बाद उन्होके धर्म आत्मा और नही कोइ उतरी||



दो सान्सो के लिये जिन्दगी क्या २ झेल गई थी

पर्वत से टकरा सीने पर क्या २ झेल गई थी

पर जब आसू गिरे धरा बोझिल हो उन से डोली
वर्ना देवी सीता जैसी क्या २ झेल गई थी

Thursday, April 7, 2011

अब क्या होगा

अब क्या होगा

सम्वेदन शून्य हो गया मनुज अब क्या होगा
शासन का डर रह नही गया क्या होगा
पुलिस खड़ी है मूक बनी पिटने के डर से
गुंडे बदमाश घुमते खुले आम अब क्या होगा

पुलिस किसी को कहती है कि रुक जाओ
वो कहता है गाड़ी के आगे आओ
और कुचल कर आसानी से जाता है
ये कैसा कानून जरा तो बतलाओ

रोके पुलिस किसी शातिर अपराधी को
फोन मिला कर देता वो अधिकारी को
छोडो किस को रोका ये तो अपना है
फिर सैल्यूट मरता वो अपराधी को

कुछ भी कर लो जब बेशर्मी पर आये हैं
भ्रष्टाचार नही रोकेंगे चुन कर आये हैं
नही चलेगा गाँधी का उपवास यहाँ
अंग्रेजों से ही तो हम सत्ता पायें हैं

एक हजारे क्या सौ २ भी भूखे मर लें
जन्तर मन्तर पर बेशक वे हल्ला कर लें
और समर्थन कर ले बेशक इन का कोई
हम क्यों फंदा अपने गल में खुद ही धर लें

Monday, April 4, 2011

वायु और जल

मित्रो इस से पहले प्रकाशित "जल और वायु "कविता को मित्रों का बड़ा स्नेह व आशीष मिला परन्तु मेरा निवेदन है कि इस कविता की दूसरी पूरक कविता है" वायु और जल "ये दोनों कविताये एक दूसरे की पूरक हैं मुझे आशा है इसे भी आप का पूर्वत स्नेह प्राप्त होगा

वायु और जल

निर्बाध एकाकी मंथर गति से बहते २
वायु क्यों तीव्र हो उठती है
क्यों कि उसे भी तो चाहिए
कोई सहचर
उस की भी तो कुछ
इच्छाएं बलवती होती हैं
वह भी चाहती है
सुकोमल किसलयों को सहलाना
फूलों को छूना ,गंध को पीना
जल से शीतल हो जाना
और अपने मनोवेगों को
रोकने के लिए सामर्थ्यवान
विशाल वन का आलिंगन करना
नही तो प्रचंड हो उठती है वह
तब पगलाई सी हो कर
धराशाही कर देती है वह
बड़े २ मर्यादित शिखरों को
ऊंची २ अट्टालिकाओं के ध्वजों को
बड़े २ वट जैसे विशाल वृक्षों को
या जो भी सामने आये उस को
क्योंकि उसे भी तो चाहिए
अपने संवेग का उत्तर
उस का समाधान और उस का आदर ||

Saturday, April 2, 2011

जल तथा वायु

वायु के छूने मात्र से
उद्वेलित हो उठता है जल
कितनी ही तरंगे
उठने लगतीं हैं उस के मन में
और कभी २ तो
अपनी सीमाएं तोड़ कर भी
निकल पड़ता है वह
या इस से भी अधिक
दुनिया को डुबोने चल देता है वह
अपना आप खो कर
परन्तु अच्छा नही है यह सब
मर्यादा बनी रहे जल की
बेशक छू ले उसे वायु
सिरहन तो होगी ही
सहनी भी पड़ेगी
परन्तु तोडना मर्यादा को भी तो
नही कहा जा सकता है उचित
तब प्रश्न करता है जल
क्या उचित है
मर्यादा में बंधे रहना ही
या तोड़ते जाना उचित है घेरों को
या स्थापित कर दी जाएँ
नई सीमायें
उत्तर चाहता है जल
निरंतर आप से मुझ से यानि
हम सब से ||

Thursday, March 31, 2011

उपलब्धि के सफ़र मे ………………चर्चा मंच

आइये दोस्तों आज आपको एक और ब्लोगर दोस्त से मिलवाती हूँ जानते तो आप सभी हैं .
ये हैं हमारे ब्लोगर दोस्त ........डॉक्टर वेद व्यथित जी
साहित्य सर्जक----
ये इनका ब्लॉग है इस पर तो ये लिखते ही रहते हैं .
डॉक्टर वेद व्यथित जी ने एम् ए हिंदी , पी एच डी कर रखी है . ना जाने कितने ही विषयों पर शोध किया , कितने ही कवि सम्मेलनों में सम्मान प्राप्त किया , रेडियो पर कार्यक्रम दिए. उनकी कहानी कवितायेँ , वार्ताएं प्रसारित हुई. उनके अनेक काव्य संग्रह , उपन्यास आदि प्रकाशित हो चुके हैं .

वेद जी ने बड़े स्नेह के साथ मुझे अपना काव्य संग्रह भेजा जिसके लिए मैं उनकी हार्दिक आभारी हूँ क्योंकि इतना उत्तम संग्रह पढने के बाद तो मैं खुद को बेहद प्रब्फुल्लित महसूस कर रही हूँ कि उन्होंने मुझे इस काबिल समझा और स्वयं अपने आप मुझे ये पुस्तक उपलब्ध करवाई.

अभी अभी मैंने वेद जी लिखित काव्य संग्रह 'अंतर्मन' पढ़ा . जैसा नाम वैसी ही अभिव्यक्ति. हर पुरुष के अंतर्मन की बात का जैसे कच्चा चिटठा खोल कर रख दिया हो. स्त्री के प्रति पुरुष दृष्टिकोण का जीता जागता उदाहरण है ----अंतर्मन ! पुरुष कैसे अंतर्मन में स्त्री के गुण दोषों, त्याग, तपस्या का अवलोकन करता है , कैसे स्त्री के अंतर्मन में उपजी पीड़ा को महसूस करता है उसको कविताओं में इस तरह उतारा है जैसे स्त्री के मन का दर्पण हो. वेद जी की दृष्टि में स्त्री और पुरुष दो पृथक अस्तित्व होते हुए भी एक दूसरे के पूरक हैं, सहभागी हैं , सहचर हैं और उसी में उनकी पूर्णता है. जब दो धाराएं साथ साथ चलें तो थोड़ी बहुत भिन्नता तो पाई जाती है मगर जब एक हो जायें तो अभिन्न हो जाती हैं . इसी अनेकता में छिपी एकता को दर्शाने का प्रयत्न किया है .
स्त्री के नेह, मौन , हँसी , उसके ह्रदय के ज्वार, क्षमादयिनी रूप हरेक को ऐसे बांधा है कि पढने बैठो तो उठने का मन नही करता. हर कविता एक बेजोड़ नमूना है उत्कृष्ट लेखन शैली और परिपक्वता का.

वेद जी डरते हैं स्त्री के मौन को तोड़ने से , उसे अपना अपराध मानते हैं क्योंकि स्त्री मन में दबी सुलगती बरसों की दग्ध ज्वाला जब अपना प्रचंड वेग धारण करेगी तो सैलाब आ जाएगा और शायद तब वो क्षमा ना कर पाए .....जबकि अब तक वो एक पात्र के सामान ज़िन्दगी जी रही है. हर कविता स्त्री के मनोभावों का जीता जागता चित्रण है. किसी एक कविता के बारे में कुछ कहना दूसरी के साथ अन्याय जैसा लगता है . पूरा काव्य संग्रह बेजोड़ कविताओं का संग्रह है. स्त्री का स्नेह , दुलार , विश्वास, उसके प्रश्न उत्तर , पुरुष का अहम् सबका जीवंत चित्रण करने में सक्षम हैं.

जो उनसे संपर्क करना चाहें किताब प्राप्त करने के लिए इस नंबर व पते पर संपर्क कर सकते हैं -----
अनुकम्पा १५७७ सेक्टर ३
फरीदाबाद-------१२१००४
ph: 0129-2302834
09868842688
०९८६८६७५५७३

Tuesday, March 29, 2011

क्रिकेट

क्रिकेट २ शोर मच रहा किरकेट क्या भगवान हो गया
देश निठल्ला करने का ही ये सारा सामान हो गया
छोड़ काम बाक़ी के सारे बस किरकेट की पूजा कर लो
जैस किरकेट किरकेट न हो असन,वसन आवास हो गया ||

किरकेट गंगा मैया बन गई खूब नहाओ
किरकेट सारे तीरथ हो गए जा कर आओ
घर को फूंको देख तमाशा मौज मनाओ
देख २ कर किरकेट भैया सब चीजों से ध्यान हटाओ ||

भूलो घोटाले विदेश में रखा पैसा भूल भी जाओ
रिश्वत खोरी संसद तक में इन बातों को भूल भी जाओ
इन से क्या लेना देना है बस किरकेट पर ध्यान लगाओ
ताली पीटो सीटी मरो बस तुम किरकेट में खो जाओ ||

अख़बारों को मिला राग है किरकेट २ ही बस गाओ
टी वी चैनल पर खबरों में केवल किरकेट ही दिखलाओ
झगड़े टंटे में क्या रखा क्यों सरकारी पोल दिखाओ
जिस का पैसा मिलता तुम को तुम केवल उन के गुण गाओ ||

Sunday, March 27, 2011

मन

यह मन ही तो था
जो बार २ आलोड़ित होता रहा
सागर की भांति
कभी घृणा ,कभी प्यार
कभी द्वेष ,कभी स्नेह
और कभी विष तो कभी अमृत
प्रकट होता रहा उस में
या छीजता रहा शैने: २ चाँद की नाईं
रजत उज्ज्वलता बिखेरता हुआ
और कभी २ कली सा
धूप में खिल कर
मुरझाता रहा
क्योंकि आखिर यह मन ही तो था
अस्थिर ,चंचल ,वेगवान और प्रयत्नशील भी
कुछ और होने के लिए
परन्तु होता कैसे
अपनी अस्थिरता और चंचलता के कारण
और बना रहा बस केवल मन ||

Thursday, March 24, 2011

अपनी औकात

नही जरूरत रिश्वत है खोरी की जाँच करने की
वो तो बात पुरानी है सत्ता उस से कब्जाने की
नया घोटाले ही क्या कम हैं इन पर हल्ला कम है क्या
तुम को छूट मिली है कितनी इन पर शोर मचाने की ||

चोरों को संरक्षण दे कर भी सत वादी बने हुए
सौ २ चूहे खा कर के भी हज जाने पर अड़े हुए
घोटाले और गडबड का अपना इतिहास पुराना है
फिर भी हम सौगंध उठाने की जिद पर है अड़े हुए ||

हम तो कठपुतली हैं भइया खूब नचाये नाचेंगे
है नकेल जिस के हाथों में चरण उसी के चापेंगे
पद की शोभा ही क्या कम है जिस पर शोभित हैं भइया
हम तो मैया के कूकर हैं पूंछ हिला कर नाचेंगे ||

Friday, March 18, 2011

सभी मित्रों को सत्ता के विरूद्ध प्रहलाद के संघर्ष में विजयी होने पर मनाई होलिका उत्सव की हार्दिक बधाई आओ इसे आगे बढाये और अन्याय से संघर्ष कर होलिका दहन करें

Tuesday, March 15, 2011

होली

ननुआ ने तो भंग चढाई धोती फाडी ललुआ ने
कर रुमाल धुतिया के भइया ताल लगाई कलुआ ने
दिल्ली चौंकी सब जग चौंका खूब सुनाई दिगिया ने
बड़ी मम के गिर चरणों में धोक लगाई मनुआ ने ||

चीनी मिल रही पांच रूपया कडुआ तेल मुफ्त में है
दाल मिल रही दो दो रूपया रोटी संग मुफ्त में है
कैसा सुंदर राज है भइया होली खूब मनाओ जी
हाथों को मलते रह जाओ लाली खूब मुफ्त में है ||

गौरी को s m s भेजा आओ रंग बरसायें
बिन पानी के नीले पीले सारे रंग बरसायें
पहले मैं भेजूंगा मैसिज फिर तुम भी भिजवाना
अब के s m s की होलो फोन में खूब मनाये ||

भाभी ने देवर को भेजा sms का गुलाल
देवर ने भाभी पर डाला फोन में रंग गुलाल
होली के सब रंग बिखर गये हुए न शर्ट खराब
न देवर ने कोड़े खाए गाल न हुए गुलाल ||

जमाने बदल गए हैं बहाने बदल गये हैं
दुनिया बदल गई है गाने बदल गए हैं
दिल भी बदल गया है दीवाने बदल गये हैं
बस फर्क है कि इतना खत sms में बदल गये हैं ||

मिस काल कर रहे हैं संदेश भेजते हैं
ई मेल से ही प्यारा सा खत भेजते हैं
अब यंत्र ही साधन इस पर प्यार निर्भर
इस यंत्र से ही अपना वो प्यार भेजते हैं

Saturday, March 12, 2011

गुलाबी ठंड

ठंड बहुत कड़ाके की पडी थी |अब भी याद है |पर अब धीरे २ कम हो गई |पर जैसे ही कम होने लगी तो लोगों ने सत्ता से उतरे नेता की भांति ही ठंड से भी परिहास यानि मजाक करना शुरू कर दिया उसी ठंड से जिस के चलते यानि जिस के प्रकोप से इन के दांत आपस में कड कडातेथे जो ठंड के कारण महीनों नहाते ही नही थे और तो और मुंह नही चेहरा भी पूरा नही धोते थे बस मुंह ही यानि नाक तक होंठ ही पौंछकर काम चला लेते थे |कई २ गर्म स्वेटर ,जर्सी ,इनर ,पेंट के नीचे भी गर्म पजामी ,मफलर टोपी ,गर्म दस्ताने ,दो २ जुराब एक के उपर एक पहन कर रहते थे परन्तु अब वे ही ठंड को नाम रख रहे हैं |क्या गुलाबी ठंड पड़ रही है |देहात में इस ठंड को ही जाड़ा कहते हैं यानि गुलाबी जाड़ा |
ठंड तो ठीक है पर यह समझ में नही आया कि यह ठंड गुलाबी कैसे हो गई |यूं तो मुझे कलर ब्लाइंड नेस है जिस के कारण कई बार पत्नी मेरी सब के सामने खूब हंसी उड़ाती है और कभी २ तो डांट भी पिलाती हैं क्यों कि उन के लिए कई तरह के लाल पीले नीले रंग होते हैं और भी इन के आलावा कई मिश्रित रंग भी होते हैं जिन की पहचान मेरे लिए बहुत बड़ी परीक्षा होती है जैसे महरूम ,कोका कोला काफी रंग संतरी नारंगी जमीनी अंगूरी गेन्हूआ बादामी तोतई काई रंग आदि२ पता नही क्या २ कौन २ सी खाने और पीने की चीजों के आलावा पता नही क्या २ चीज के नाम पर रंगों के नाम रखे होते हैं इन में देसी ही नही विदेसी वस्तुएं भी शामिल हैं |
हमें छोटी कक्षा में मास्टर जी ने सात रंग ही पढाये थे जो मुझे मास्टर जी के बताये फार्मूले के अनुसार अब भी अच्छी तरह रटे हुए हैं फार्मूला था बेनिआहपीनाला यानि बेंगनी ,नीला ,हर ,पिला ,नारंगी नीला और लाल ये ही सात रंग इंद्र धनुष में होते हैं परन्तु इन में ये वस्तुओं के नामों के रंग तो नही थे ये कहाँ से आ गये परन्तु प्रसन्नता इस बात की होती है कि हमारे यहाँ महिलाएं कितनी अन्वेषक यानि खोजी होती हैं कि बस पूछो मत वे धन्य हैं वे महान हैं जिन्होंने इतने रंगों का अविष्कार कर लिया कि किसी भी वस्तु को नही छोड़ा और तो और भगवान के नाम के रंग भी बना लिए जैसे श्याम रंग कृष्ण रंग आदि २ उन की यह खोजी प्रवृति बड़ी महत्व पूर्ण है अपनी इस प्रवृति के कारण ही वे आसानी से सास बहू या बहू सास या पड़ोसन के साथ लड़ने या मेल मिलाप के कारण स्वयम खोज लेती हैं उन की यह खोजी प्रवृति ही दो अनजान महिलाओं को आपस में तुरंत जान पहचान बढ़ाने में सहायता करती है जब कि दो पुरुषों को जान पहचान बनाने में बहुत दिन लग जाते हैं |
मोहल्ले में कोई नया किरायेदार या कोई नया व्यक्ति आ कर रहने लगे तो सब से पहले महिलाएं ही उस से जान पहचान या मेल झोल बढ़तीं हैं फिर उन का एक दूसरे के घर आना जाना शुरू होता है उस के बाद स्वाभाविक बच्चों में दोस्ती होने लगती है उस के भी कई महीने बाद जा कर पुरुषों में महिलाएं ही जान पहचान करवातीं हैं और यदि नवागुंतक की पत्नी सुंदर या खूब सूरत हो तो पुरुषों की जान पहचान करवाने में महिलाये बहुत समय लगा देतीं हैं और उस के बाद जल्दी ही तू तू मैं मैं के कारणों की खोज भी शुरू कर देतीं हैं
ओहो ये तो बात कहीं और ही चली गई बात तो ठंड की चल रही थी परन्तु ठंड भी तो स्त्री लिंग है इसी लिए स्वाभाविक बात उधर स्त्रियों पर चली गई क्यों कि कहते हैं जो भी शब्द कोष में जो भी सुंदर शब्द है वह स्त्री लिंग शब्द ही है पुरुष तो कर्कश कठोर व कटु होते ही हैं जब कि स्त्रियाँ तो प्यार , दुलार व ममता की प्रति मूर्ती होती ही हैं परन्तु उन की खोजी प्रवृति तो महान है ही इसी लिए हल्की ठंड को भी गुलाबी ठंड बनाने की खोज इन्होने ही की हो यानि जिस ठंड में न तो सूरज देवता के दर्शन होते थे न ही धूप निकलती थी न ही बिस्तर छोड़ने को मन करता था और न मुंह ही धोने को पर वही ठंड कम क्या हुई उसे ही इन्होने गुलाबी बना दिया होगा एक कारण और भी हो सकता है कि शायद किसी ने गुलाबी रंग की ऊन का स्वेटर बनाना शुरू किया हो |
पर लगता है ऐसा है नही हर बात के लिए महिलाओं को ही दोषी ठहराने की बात बिलकुल गलत है जब की वे तो पुरुषों की क्या २ गलत बात को सहन कर लेतीं है इस गुलाबी नाम के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि किसी मनचले ने अपनी प्रेमिका को छेड़ने के लिए या बुलाने के लिए या उस का नाम गुलाबो या गुलाबी रखने के लिए ठंड का प्रकारांतर से ठंड का सहारा लिया हो क्यों कि ठंड कम होने से न तो धूप का रंग बदलता है और न ही हवा का वे तो वैसे के वैसे ही रहते हैं अपितु धीरे २ धूप कडक हो जाती है और हवा भी तेज चलने लगती है परन्तु इस से ठंड कैसे गुलाबी हो गई यह बात बड़ी गंम्भीर है इतना ही नही जैसे २ ठंड गुलाबी होने लगती है लोग फाग गाना शुरू कर देते हैं यानि अब फाल्गुन मास शुरू हो जाता है परन्तु फाल्गुन के फ अक्षर का भी गुलाब के ग अक्षर से कोई लेना देना नही है जो यह मान लें कि फाल्गुन के चलते ही ठंड को गुलाबी कहने लगते हैं यह बात भी गुलाबी ठंड के लिए नही जमीं |फाल्गुन मास की एक बात और है कि इस समय खेतों में सरसों के पीले २ फूल खिल जाते हैं सरसों के खेत दूर २ तक पीले रंग में रंगे दिखाई देते हैं चारों ओर पीला २ वातावरण दिखाई देने लगता है पर इस कारण तो ठंड को गुलाबी के स्थान पर पीली ठंड कहना चहिये था पर लोग पीली ठंड के बजाय कहते गुलाबी ठंड हैं |
एक बात और हो सकती है कि इस समय गुलाब खिलने लगते हैं तो शायद इस कारण ही ठंड को गुलाबी कहना शुरू किया हो परन्तु मुझे लगता है ऐसी बात भी नही है इस मैसम में गुलाब ही क्यों अन्य कितने ही प्रकार के फूल खूब खिलते है देश के राष्ट्र पति भवन का उद्यान भी तो केवल गुलाब के कारण नही अपितु सभी प्रकार के फूलों के खिलने के कारण साधारण जनता के लिए दर्शनार्थ खोल दिया जता है परन्तु गुलाबी ठंड से तो इस का भी कोई दूर तक लेना देना नही है |
अब और क्या कारण हो सकते है परन्तु कोई सारे कारण खोजना मेरी ही जिम्मेदारी थोड़ी है लेखक होना कोई दुनिया के सारे कारण खोजना थोड़ी है कुछ फर्ज तो पाठक या साधारण जनता का भी तो बनता है कि वह लेखक को सहयोग करे उस के लिखे को पढ़े और जो रह जाये उसे या तो लेखक को बताये या खुद खोज कर वह लेखक हो जाये पर आज हो यह रहा है कि कोई लेखक को तो पढ़ता ही नही है और न ही कुछ किसी लेखक को बताता है अपितु बिना औरों को पढ़े या बताये बिना ही लेखक बन जाना चाहता है इस लिए हो सकता है किसी ऐसे लेखक ने ही ठंड को गुलाबी बना दिया हो कि उस ने तो कह दिया अब तुम जानो बाक़ी कारण तुम खुद खोजते फिरो |
परन्तु मैं इतना कह सकता हूँ कि या मेरी यह खोज तो महत्वपूर्ण हो ही सकती है कि इस ठंड को गुलाबी बनाने में किसी लेखक का नही अपितु किसी कवि का काम जरूर होगा क्योंकि कवि ही ऐसे २ उलटे सीधे कारनामे करते रहते है जैसे पृथ्वी को दुल्हन बना देंगे आसमान को उस की चूनर बना देंगे समुद्र को उस का वसन बना देंगे पहाड़ों को विष्णु पत्नी पृथ्वी के स्तन बना दिए तो हो सकता है जरूर किसी ऐसे कवि ने ही इस ठंड को भी गुलाबी बना दिया होगा इस में अब कोई संदेह की गुंजायश नही लगती तो आओ गुलाबी ठंड का आनन्द लें क्यों कि यही आनन्द तो जीवन का अर्थ है |

Friday, March 11, 2011

जैसे उड़ जहाज कौ पंछी

जैसे उड़ जहाज कौ पंछी

कहाँ कहाँ न गया मेरी आश का पंछी
कहीं सुबह तो कहीं रात हो गई उस की ||
बहुत ही दूर के दरिया समन्दरों को देखा
कोई पर्वत कोई घटी नही हुई उस की ||
कहीं भी देख हरे बाग जब उतरने लगा
जिन्दगी जाल में फंसने लगी तभी उस की ||
हवा के साथ खूब ऊँचा उड़ा था तो मगर
उसी ने छीन ली ताकत तमाम ही उस की ||
बहुत जो दूर था अच्छा लगा तो लेने गया
नही था दूर जो नजर पडी थी उस की ||
आना ही था आखिर जहां से उड़ वो गया
और कोई ठौर समन्दर में नही थी उस की ||

Friday, March 4, 2011

वर्तमान

वर्तमान

नया उजागर हो रहा घोटाला हर रोज
फिर भी मुस्का कर वह देतें हैं हर पोज
शर्म नाम की चीज से उनका क्या सम्बन्ध
बेशर्मी से कर रहे सत्ता का वे भोग

लूट २ कर देश का धन रख आते विदेश
कंगला करने पर तुले ये गद्दार अनेक
क्यों कि उन को मिल गया लूट तन्त्र का राज
कैसे आगे चलेगा यहाँ राज और काज

बिका मिडिया कर रहा द्रोही के गुणगान
जितना जिस का धन मिला उतना उस का गान
रेट सभी के तय हुए यशोगान अनुसार
जिधर दिखी थाली परात उधर रात भर नाच

भगवा गली हो गई यह वैटिकन राग
जय चन्दों की देश में रही सदा भरमार
भारत वासी थक चुके सुन २ के ये बात
समय आगया है यहाँ युवा शक्ति अब जाग

कब तक ऐसीं चलेंगी दिग्गी जैसी चाल
गिरे हुए जमीर के लोगों की भरमार
बस मैडम को खुश करें चाहे जो हो जाय
देश धर्म से क्या उन्हें देश भाड़ में जाय

Monday, February 14, 2011

मन की बात बताएं क्या

मन की बात बतायं क्या
तुम को मीत बनाएं क्या
मन के घाव हरे कितने
तुम को इन्हें दिखाएँ क्या
मजबूरी मेरी अपनी
तुम को उसे बताएं क्या
फटा चीथड़ा और फटा
अब उस को सिलावायें क्या
घर में कितने दाने हैं
तुम को इन्हें बताएं क्या
दिल मेरा किस उलझन में
तुम को यह बताएं क्या
कितनी बार बताया जो
फिर से वही बताएं क्या
दिल में जो भी है मेरे
तुम को उसे जताएं क्या
जो अपनापन भूल गये
अपना उन्हें बताएं क्या ??

Friday, January 28, 2011

गलना ,सूखना व जलाना

कभी गलाने के लिए पानी
सुखाने के लिए हवा
जलाने के लिए ईंधन
और लीपने के लिए माटी
जुटते २ पल पल
गलती रही जिन्दगी
सूखती रही जिन्दगी
जलती रही जिन्दगी
और सिमटती रही जिन्दगी
धीरे धीरे पल पल
और यूं ही होता रहा सवेरा
कभी खूब दिन चढ़े
कभी पौ फटे
कभी उस से भी पहले
कभी बहुत पहले
फिर समाप्त हुआ
शाम, रातऔर सुबह का अंतर
क्यों कि अभी और भी था
गलना ,सूखना और जलना |

Wednesday, January 26, 2011

उलझन

जीवन के बेहिसाब
उलझे हुए तन्तुओं को
बार २ सुलझाने पर भी
छोर हाथ नही आता है
कई बार लगता है कि
अब तो छोर मिल ही जायेगा
इस जटिलता का
परन्तु वह और भी
गहराई में जा कर खो जाता है
और हाथ आती है
फिर जीवन की वही निराशा
परन्तु अब यह कोई नई बात
नही रह गई है
यही तो होता रहा है बार २
और फिर वही एक उम्मीद की
नई किरण फूटती है हर बार
परन्तु अंत उसी अँधेरे में होता है उस का
शायद यही सत्य हो गया है जिन्दगी का
उन्ही उलझे तन्तुओं में उलझे रहना
छोर को ढूंढना, ढूंढते ढूंढते
स्वयम उसी में खो जाना
फिर उसे उसी तरह आगे के लिए छोड़ जाना
उलझा का उलझा हुआ ही
वैसा का वैसा ही||
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Tuesday, January 18, 2011

आग को न छेड़ो

यूं साँस लम्बी ले कर इस घाव को न छेड़ो
दिल और जल रहा है इस आग को न छेड़ो
मुरझा गई है अब वो यूं ताप सहते सहते
दिल दुःख रहा है इस का इस पाँख को न छेड़ो
दर्पण की भांति टूटा ये दिल चटख चटख कर
टूटा है जिस से ये दिल उस बात को न छेड़ो
दिल में किरच चुभी है वो दर्द कर रही है
दुखता है इस से ये दिल इस कांच को न छेड़ो
ये सांस चल रही है इसे यूं ही चलने देना
यह बीच में रुके ना इस साँस को न छेड़ो
कितना घना अँधेरा कुछ भी न सूझता है
मेरे हाथ में है दीया इस हाथ को न छेड़ो
कहने को क्या कहूं मैं बाक़ी बचा ही क्या है
जाने दो रह गई जो उस बात को न छेड़ो

Monday, January 17, 2011

जीवन की परीक्षा

हरेक बच्चा नही आता है
कक्षा में प्रथम
और हरेक का दूसरा या तीसरा
स्थान भी नही आता है कक्षा में
तो क्या इस का मतलब है
प्रत्येक बच्चे को नही होता है
आसानी से अपना पाठ याद
जैसे युधिष्ठिर को लग गये थे
दो शब्द याद करने में वर्षों वर्ष
और बालक मोहन दास भी
नही आया था कक्षा में प्रथम
परन्तु क्या दोनों को
कहा जा सकता है बुद्धू ,कमजोर
या ऐसा ही कोई शब्द
कदापि नही
तो फिर जीवन की परिभाषा
मात्र शाब्दिक रटंत परीक्षा
नही हो सकती
और न ही यह बना सकती है
कबीर ,सूर और मीरा
जिन्होंने जीवन की चादर को
बेदाग ओढा और बिना परीक्षा दिए ही
उत्तीर्ण हो गये कठिन परीक्षा में

Wednesday, January 12, 2011

तुम्हारा मन

तुम्हारे मन में
असामयिक मेघों की भांति
उमड़ते घुमड़ते प्रश्नों का ऊत्तर
इतना सरल नही था
क्योंकि वे अर्जुन का विषाद नही थे
गांधारी का पुत्र मोह भी कहाँ था उन में
तथा उस का सत्य की विजय का
आशीष भी नही थे वे
क्योंकि वे तो
प्रतिज्ञाओं की श्रंखला में आबद्ध
कृत्रिम सत्यान्वेष्ण को
ललकारने की स्वीकृति भर चाहते थे
ताकि दुःख की बदली से झर कर
निरभ्र हो जाएँ
और खून से आंसुओं की
धारा से प्लावित कर दें
उन उत्तरों को
जो बोझ की भांति
धर दिए हैं
जबर दस्ती
दहकते कलेजे पर

Saturday, January 8, 2011

सूरज और हवा

सूरज की उत्साह हीनता से
ठंडा होता गया सब कुछ
ठिठुरता सा ,जमता सा और निष्प्राण सा
परन्तु सहचरी वायु का संचरण
बनाएगा इसे शनै: २ प्राणवान
इसी से होता जायेगा यह
धीरे २ प्रखर और तेजवान
आज का मद्धिम सूर्य