Sunday, November 28, 2010

घोटाला महिमा

बेशर्मी की हद हो गई बेईमान सम्मानित हैं
करें देश की बात यदि जो वे होते अपमानित हैं
चुप्पी साधे ढोंग कर रहे हरीश चन्द्र बन जाने का
पोल खुल गई घोटालों की कोर्ट में ये प्रमाणित हैं

चोरी की है तो की ही है बोलो तुम क्या कर लोगे
जो भी लूटा पचा गए वो बोलो तुम क्या कर लोगे
चोरी और सीना जोरी की आदत यह पुरानी है
सत्ता पर काबिज हैं अब वो बोलो तुम क्या कर लोगे

घोटालों का लम्बा सा इतिहास तुम्ही से जुड़ा हुआ
चोर २ मौसेरों का है आपस में सम्बन्ध हुआ
तेल , खेल हो या तू जी हो ऐसे कितने घोटाले
इन सब का है इस शासन से सीधा सा सम्बन्ध हुआ

Monday, November 22, 2010

दिल्ली ....नही ,,,,मुन्नी ...दिल्ली बदनाम हुई

पहले बदनाम दिल्ली बदनाम हुई परन्तु लोगों नेशोर मचा दिया कि दिल्ली को ऐसे बदनाम नही होने देंगे क्योंकि उन्हें दिल्ली की बदनामी मंजूर नही थी |उन्हें यह अच्छा नही लगा कि दिल्ली बदनाम हो |इस लिए दिल्ली को बदनामी से बचाने के लिए बदनाम हो गई मुन्नी |मुन्नी ने दिल्ली की बदनामी अपने सिर पर ले ली |फिर क्या था मुन्नी की बदनामी जो मशहूर हुई बस पूछो मत देश का हर प्रान्त जिला नगर और गली मोहल्ले तक मुन्नी की बदनामी की धूम मच गई |
कहीं भी कोई छोटा मोटा सा कार्यक्रम भी आयोजित हो और भला मुन्नी की बदनामी न हो यह कैसे हो सकता है जैसे मन्त्रों के बिना हवन नही हो सकता ,दीपक के बिना आरती नही हो होती ,सूरज के बिना धूप नही होती चाँद के बिना चांदनी नही होती सर्दी के बिना बर्फ नही पडती पानी बिना झरने नही झरते और गुंडों के बिना झगड़े नही होते महिलाओं के बिना बातें नही होती नेताओं के बिना बदमाशी नही होती ऐसे ही भला मुन्नी की बदनामी को गए या बजाये बिना भला कोई कार्यक्रम कैसे सम्पन्न हो सकता है |
अब लोगों में मुन्नी की बदनामी की चरों ओर फ़ैल रही ख्याति से बड़ी ईर्ष्या या जलन होने लगी पर इस में ईर्ष्या की क्या बात हुई यह तो नसीब अपना अपना लोग धर्म क्रम करते २ बूढ़े हो २ कर मर भी जाते हैं जिन्दगी भर लगे रहते हैं कीर्तन कर २ के पड़ोसियों का जीना हराम कर देते हैं ,रात २ भर जागरण कर २ के सब की नींद उदय रहते हैं या देश सेवा में पूरा जीवन लगा देते हैं आदि २ तो भी उन्हें ऐसी मुन्नी की बदनामी जैसी ख्याति भला कहाँ मिल पाती है जो मुन्नी की बदनामी को मिली मिली क्या पूरे जहाँ में यह बदनामी खूब प्रख्यात व कुख्यात हो गई |
मुन्नी की बदनामी की ख्याति लोगों से देखी नही गई उन्हें उस से जलन होने लगी तो उन्होंने सोचा क्यों न उस की इस बदनामी को भुनाया जाये या इस ख्याति को अपने लिए कैसे इस्तेमाल किया जाये |इस लिए उन्होंने मुन्नी की बदनामी का सहारा ले कर फिर दिल्ली को बदनाम करने का बीड़ा उठाया और और उन्होंने इस के लिए मुन्नी की जगह फिर से दिल्ली शब्द लगा दिता और फिर वही पुराना राग बजाना शुरू कर दिया "दिल्ली बदनाम हुई कोंम्वेल्थ तेरे लिए "और दिल्ली की इस बदनामी को बिजली तरंग चालित त्वरित डाक सेवा यानि ईमेल यत्र तत्र सर्वत्र बड़ी सहजता पूर्वक प्रेषित कर दिया जिस के परिणाम स्वरूप फिर से मुन्नी की जगह दिल्ली बदनाम हो गई
पर इस में लोगों को कोई नई बात नजर नही आई जो मुन्नी की बदनामी में है क्योंकि बेचारी दिल्ली तो यूं ही समय पर बदनाम होती ही रही है उस की यह बदनामी आज से नही है अपितु प्राचीन युगों से है हर युग में हर काल में दिल्ली बदनाम हुई है दिल्ली को बदनाम करने के लिए सश्कों या राजनेताओं ने क्या नही किया चाहे मुसलमान आक्रान्ता हों चाहे विदेशी गोरे अंग्रेज या फिर उन के बाद के काले अंग्रेज किसी ने भी इस में कोई कोर कसर बाक़ी ही छोड़ी
जब विदेशी आक्रान्ता आये तो उन्होंने दिल्ली को खूब लूटा लूटा ही नही कत्ले आम तक खूब किया और यहाँ तक कि दिल्ली को दिल्ली भी नही रहने दिया कहीं और दूर दिल्ली बनाने की बहुत कोशिश की सब कुछ उजड़ गया कहते हैं जो चल नही स्क्लते थे उन्हें हठी के पैर से बंधवा दिया ताकि वे दूसरी जगह बनाई गई दिल्ली में जा कर बस जाएँ परन्तु डाल नही गल सकी क्योंकि दिल्ली तो दिल्ली ही थी भला दूसरी जगह दिल्ली कैसे बन जाती तो फिर उन्हें उलटे पैर वापिस दिल्ली ही लौटना पड़ा और दिल्ली को ही दिल्ली बनाना पड़ा परन्तु सबसे ज्यादा नुकसान उठाया बेचारी दिल्ली ने और भी सश्कों ने दिल्ली की मानवतावादी संस्कृति को नष्ट करने में कोई कसर नही छोड़ी उन्होंने मन्दिर तोड़े बल्कि यहाँ तक कि धर्म गुरूओं तक का शीश तक कटवा दिया सुंदर कन्याओं को मीणा बाजार के बहाने उठवा दिया जाता था यही नही ऐसे कितने ही घिनोने काम उन्होंने किये और उस के बाद मरने पर भी जगह २ जमीन में गढ़ कर जमीन घेर ली |
कुछ समय तक तो इन की खूब चली पर हमेशा सूरज सिर पर नही रहता शाम को डूबता ही है ऐसे ही इन का सूरज भी डूबा और अंग्रेज का सूरज उदय हो गया फिर उन्होंने दिल्ली को खूब बदनाम किया दिल्ली पर पूरा कब्जा कर लिया जसे गाँव का साहूकार कर्ज दे कर कर लेता है फिर उसे अपनी मिल्कीयत बना कर ऐश आराम शुरू कर देता है वैसे ही अंग्रेजों ने किया पर वे भी भूल गये कि भला बदनाम चीज भी आज तक किसी कि हुई है आखिर उन्हें भी जाना पड़ा सत्ता का ह्स्तान्त्र्ण हुआ वे अपने जैसों को दिल्ली सौंप कर यहाँ से आधी रात में ही खिसक गए
उन के बाद उन के उत्तराधिकारियों ने बाक़ी कसर पूरी करनी शुरू की जो अब तक जरी है पिछला इतिहास तो आप को पता ही होगा वैसे पता कोई नही रखता सब भूल जातें हैं आपात काल जैसी घटनाओं को तक को भी जब लोग भूल गए तो फिर इतिहास में तो बहुत पुराने मुर्दे गढ़े हुए हैं उन्हें कौन उखड़ेगा इतनी फुर्सत भला किस को है पर एक बात है कि लोग तजा २ मामलों को तो खूब चाट की तरह चटखारे ले ले कर मजे लेते हैं जैसे कोम्न्वेल्थ या और उस के बाद के नए २ घोटाले जिन पर खूब हो हल्ला हो रहा है अंदर भी बाहर भी क्योंकि ऐसी तजा २ चीजें तो कुछ दिन याद कर रख ही लेते हैं बाक़ी तो दिल्ली वालों को भूलने की पक्की बीमारी है प्याज तक पर तो जोश आया था पर जब सब चीजे ही मंहगी हो गई तो वे प्याज को भला क्यों याद रखते इसी लिए वे फिर दिल्ली कि बदनामी को भूल कर मुन्नी की बदनामी पर आगये जिस का जादू अपने देश में ही नही विदेश तक में सिर चढ़ कर बोल रहा है

Sunday, November 21, 2010

देहली के ब्लोगर सम्मेलन की रपट

देश की राजधानी और राजधानी के दिल कनाट प्लेस में आयोजोत अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स सम्मेलन में बहुत ही सार्थक सम्वाद हुआ विदेशी धरती पर भारतीयत ,भारतीय भाषा व भारतीय सांस्कृतिक चेतना का तकनीकी माध्यमों द्वारा अलख जगा रहे भाई समीर लाल समीर ने अपने बीज व्यक्तव्य में विशेष रूप से उठाया कि ब्लोगर्स को सार्थक सम्वाद के महत्व को समझ कर आगे बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए और यह भी आवश्यक है कि बिना जड़ के उत्पन्न विवादों को ब्लोगर्स इतना महत्व दे देते हैं कि विवाद जिस के विषय में है उसे पता ही नही होता और पूरी दुनिया में धुंआ उठ जाता है जिस से सम्बन्ध है उसे मेल भेजा नही जाता अपितु अन्य लोगों को भेज कर विवाद खड़ा कर दिया जाता है जब सम्बन्धित व्यक्ति को भेज दिया जाये तो विवाद खड़ा ही न हो उस के बाद विवाद खड़ा हो जाता है लोग खेमे बाजी शुरू कर देते हैं उन्होंने कहा ब्लॉग जगत को इस से बचना चाहिए और हमे सार्थक सम्वाद पर जोर देना चाहिए उन का अपना सर्वाधिक देखा जाने वाला ब्लॉग उडन तश्तरी इस का सार्थक उदाहरन है
इस के अतिरिक्त उन का हर नये ब्लोगर को प्रोत्साहन देना उन के ब्लॉग पर टिपन्नी देना देना भी बड़ी बात है
समारोह में प्रख्यात पत्रकार बालेन्दु दधिची ने ब्लॉग तकनीक पर अपना शोध पत्र पड़ा उन्होंने अधिक से अधिक लोग ब्लॉग से कैसे जुड़े इस के विषय में भी विस्तार से बताया तथा अपनी इस से सम्बन्धित सुंदर व सार्थक रचना का पाठ भी किया
समारोह में विभिन्न स्थानों से आये ब्लोगर्स ने अपनी बात रखी एक दूसरे से परिचय हुआ अपने २ अनुभव सांझे किये भाई अविनाश वाचस्पति इस के सूत्रधार रहे वे ब्लोगर्स परिवार को समय २ पर एकत्रित करते ही रहते हैं ,साधुवाद

Wednesday, November 10, 2010

नव गीतिका

झूठ के आवरण सब बिखरते रहे
साँच की आंच से वे पिघलते रहे
खूब ऊँचें बनाये थे चाहे महल
नींव के बिन महल वे बिखरते रहे
हाथ आता कहाँ चंद उन को यहाँ
मन ही मन में वे चाहे मचलते रहे
ओस की बूँद ज्यों २ गिरी फूल पर
फूल खिलते रहे और महकते रहे
देख ली खूब दुनिया की रंगीनियाँ
रात ढलती रही दीप बुझते रहे
हम जहाँ से चले लौट आये वहीं
जिन्दगी भर मगर खूब चलते रहे
जैसे २ बढ़ी खुद से खुद दूरियां
नैन और नक्श उन के निखरते रहे

Thursday, November 4, 2010

दीपोत्सव की शुभकामनायें

प्रकाश पर्व ज्योतित करे हमारा मन हमारा घर हमारा राष्ट्र इस के साथ ही सभी मित्रों को ज्योति पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
आप को शुभकामनाओं के साथ काव्य की अपनी नई विधा त्रि पदी भी भेंट करने का मन है कृपया स्वीकार करें

मन दीप सजाया है
दीवाली आई है
खुशियों का उजाला है

मन दीपक हो जाये
अंधियारे दूर रहें
उजियारा हो जाये

दीपों का उत्सव है
तुम्हें खुशियाँ खूब मिलें
ऐसा मेरा मन है

मन दीपक हो जाये
खुशियों से भरे झोली
सब खुशियाँ मिल जाएँ
डॉ.वेद व्यथित
09868842688
email -dr.vedvyathit@gmail.com
http://sahityasrajakved.blogspot.com