राजा ये प्रताप तुम्हारा आंधी बादल आयें हैं
फसल पड़ी है बीच खेत के क्यों ये कहर बरपाए हैं
इंतजार था फसल पकेगी कर्ज सभी चुक जायेंगे
पर सब आशा धरी रह गई क्यों ओले बरसायें हैं
तुम तो फाटक बंद बंद कर चाय पकोड़े खाते हो
दालानों में कुर्सी रख कर कितनी मौज मनाते हो
पर किसान का हृदय डूबता फसल खड़ी खलिहान में
मौसम हुआ सुहाना कह कर उस को और चिढाते हो
भारत का दुर्भाग्य बड़ा है सुधि ले कौन किसान की
पेट भर रहा जो जन जन के सुनता कौन किसान की
कर्ज बोझ से दब कर टेढ़ी कमर हो गई यौवन में
पकी फसल पर ओले पड़ गये सुधि ले कौन किसान की
बहुत तेज बारिश ने गेहूं बीच खेत में भिगो दिया
जो सपना देखा था उस ने बीच खेत में डुबो दिया
अब क्या होगा कर्जदार का कर्ज सूद बढ़ जायेगा
बिन आंसू के हृदय फटेगा कौन उसे सहलाएगा ||
2 comments:
मन दुखी हो गया।
भावपूरित रचना।
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