अब क्या होगा
सम्वेदन शून्य हो गया मनुज अब क्या होगा
शासन का डर रह नही गया क्या होगा
पुलिस खड़ी है मूक बनी पिटने के डर से
गुंडे बदमाश घुमते खुले आम अब क्या होगा
पुलिस किसी को कहती है कि रुक जाओ
वो कहता है गाड़ी के आगे आओ
और कुचल कर आसानी से जाता है
ये कैसा कानून जरा तो बतलाओ
रोके पुलिस किसी शातिर अपराधी को
फोन मिला कर देता वो अधिकारी को
छोडो किस को रोका ये तो अपना है
फिर सैल्यूट मरता वो अपराधी को
कुछ भी कर लो जब बेशर्मी पर आये हैं
भ्रष्टाचार नही रोकेंगे चुन कर आये हैं
नही चलेगा गाँधी का उपवास यहाँ
अंग्रेजों से ही तो हम सत्ता पायें हैं
एक हजारे क्या सौ २ भी भूखे मर लें
जन्तर मन्तर पर बेशक वे हल्ला कर लें
और समर्थन कर ले बेशक इन का कोई
हम क्यों फंदा अपने गल में खुद ही धर लें
7 comments:
behad samvedansheel kavita.. kavi dharm nibha rahe hain aap !
दुख तो यही है पर यही हो रहा है।
होगा कुछ परिवर्तन तो होगा ...विश्वास पर दुनिया कायम है
वक्त सब हालात बदल देता है दिल का दर्द बखूबी उजागर किया है।
Bahut katu sataye ujagar kiye hain aapne. kavi apni lekhni se inklaab la sakta hai chahe vo utsah jaga kar, krodh jaga kar ya himmat dekar kiya jaye...aap apni lekhni se inklaab laa rahe hain.
bahut achcha likhe hain.
PRANAM !
SUNDER RACHNA SUNDER BHAAV .
SADHUWAD!
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