वायु के छूने मात्र से
उद्वेलित हो उठता है जल
कितनी ही तरंगे
उठने लगतीं हैं उस के मन में
और कभी २ तो
अपनी सीमाएं तोड़ कर भी
निकल पड़ता है वह
या इस से भी अधिक
दुनिया को डुबोने चल देता है वह
अपना आप खो कर
परन्तु अच्छा नही है यह सब
मर्यादा बनी रहे जल की
बेशक छू ले उसे वायु
सिरहन तो होगी ही
सहनी भी पड़ेगी
परन्तु तोडना मर्यादा को भी तो
नही कहा जा सकता है उचित
तब प्रश्न करता है जल
क्या उचित है
मर्यादा में बंधे रहना ही
या तोड़ते जाना उचित है घेरों को
या स्थापित कर दी जाएँ
नई सीमायें
उत्तर चाहता है जल
निरंतर आप से मुझ से यानि
हम सब से ||
4 comments:
जल तो सीमाओं में बँध जाता है, वायु नहीं बँधती।
क्या उचित है
मर्यादा में बंधे रहना ही
या तोड़ते जाना उचित है घेरों को
या स्थापित कर दी जाएँ
नई सीमायें
उत्तर चाहता है जल
Vicharniy, must be considered. Thanks for an out standing post.
संसार असीमित है पर सीमाएं निश्चित हैं जो आवश्यक हैं संतुलन के लिए ।कभी नैसर्गिक नियमों के अनुरूप और कभी हमारे कारण सीमाएं टूटती हैं । विचारोत्तेजक रचना । धन्यवाद ।
गहन विचारणीय प्रश्न...बहुत सुन्दर रचना..नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!
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