Thursday, May 5, 2011

रास्ते

रास्ते

रास्तों के साथ
कहाँ तक चलोगे आखिर
क्योंकि रास्ते
खत्म नही होते हैं कभी
जैसे कहा गया है कि
भोगों को हम नही भोगते हैं
अपितु भोग ही हमें
भोग लेते हैं
ऐसे ही रास्ते
कभी खत्म नही होते
अपितु हम ही
खत्म हो जाते हैं
उन के खत्म होने से पहले ||

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

भोगों में स्वाहा होने के पहले, अपना पंथ खोज ले हम।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विचारणीय रचना ..

vandana gupta said...

सच कहा…………सार्थक रचना।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सही कही।