ओस की बूंदों में भीगे हैं पत्ते कलियाँ फूल सभी
प्यार से छींटे मार गया है जैसे कोई अभी अभी
अलसाये से नयन अभी भी ख्वाबों में खोये से हैं
बेशक आँख खुली है फिर भी टूटा कब है ख्वाब अभी
दिन कितने अच्छे होते थे रातें खूब उजाली थीं
पर लगता है जैसे गुजरी हंसों की सी पांत अभी
कितनी सारी बातें बरगद की छाया में होतीं थीं
उन में शायद ही होंगी तुम को कोई याद अभी
खेल खेलते खूब रूठना तुम को जल्दी आता था
फिर कैसे मैं तुम्हे मनाता क्या ये भी है याद अभी
कैसे भूलूँ वे सब बातें बहुत बहुत कौशिश की है
पर मुझ को वे कहाँ भूलतीं सब की सब हैं याद अभी
1 comment:
पहली बार आपके व्लाग पर आया और सुंदर रचना पढने को मिली , बधाई
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