Wednesday, August 4, 2010

नव गीतिका

तुम्हारी याद में मैंने बहुत आंसू लुटाये हैं
वही मोती बने हैं रात भर वो जगमगाते हैं
तुम्ही ने जो कहे दो बोल मीठे प्यार के मुझ से
ये पक्षी चाव से उन को ही हर पल गुनगुनाते हैं
तुम्हे मेरा पता है जानते हो हाल तुम सारा
पपीहा बादलों कोही उसे गा कर सुनते हैं
तुम्हारी गंध चन्दन सी हमेशा पास रहती है
उसे दिल में बसा कर फूल दुनिया में लुटाते हैं
जहाँ से तुम गुजरते हो धूल अनमोल हो जाती
उसे चन्दन समझ कर लोग माथे पर लगाते हैं
तुम्हारे नेह की वरिश यह अमृत की बूँदें हैं
इन्ही बूंदों से अपनी प्यास सब चातक बुझाते हैं
तुम्हे कैसे लगा ये हिम शिखिर इतने निठुर होंगे
यही तो नेह के मीठी बहुत नदियाँ बहाते हैं
बहुत जो दूर से आते भरोसा क्या करें उन का
वे पाखी कुछ समय के बाद वापिस लौट जाते हैं
अँधेरा कब अच्छा उदासी ही वह देता
सुभ सूरज निकलता है कमल सब खिलखिलाते हैं
कभी देखा सुना न आज तक ऐसा किया क्या है
व्यथित की बात क्या ऐसी जिसे सब को बताते हैं

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