Thursday, August 5, 2010

देश कीवर्तमान व्यवस्था पर कुछ मुक्तक

पत्थर बजी करें सडक पर और पुलिस को पीट रहे
जिस में खाते छेड़ उसी में करें देश को लूट रहे
फिर भी मौन साध कर चुप हो देख रहे हैं नेता
कैसी बेशर्मी क्या ऐसे भाग्य हमारे फूटे

berujgari ka hl क्या ye ptthar बाज़ीhota
kitna paisa मिला केंद्र से उस का क्या २ होता
मांगे कौन हिसाब देश के कैसे दुर्दिन आये
जितना मुंह में भरें रात दिन और भी छोड़ा होता

आखिर कब तक इसी तरह इज्जत लुटवाई जाएगी
बेरहमी से सम्म्पति कब तक जलवाई जाएगी
कोई तो सीमा होगी ये ऐसे कब तक होगा
गद्दी पर बैठे गद्दारों कभी शर्म क्या आएगी

क्यों न करते सख्त एक्शन ऐसी क्या मजबूरी
इज्जत लूट रहे आतंकी उन कि मर्जी चलती
हाथ पे हाथ धरे रहने से क्या वे राजी होंगे
सख्ती से शासन चलता है बात न ऐसे बनती

कश्मीर में कुछ कहते हैं दिल्ली जबां दूसरी
इसी दोहरे पन की आदत इन की कहाँ छूटती
ऐसी २ मक्कारी से बज नही ये आते
कैसी मक्कारी करते है क्यों न हमे दीखती

कुछ न ठेका लिया देश में हिन्दू को मितावाएंगे
बीके मिडिया कर्मी मिल कर कोर्स में ये गायेंगे
रोजी रोटी है इन की ये यही एक चिंता है
अपनी माँभी गली दे खुद ही खुश हो जायेंगे

बाहर आँख दिखा कर ये फिर चरणों में गिर जाते
जा कर मैडम के चरणों में बकरी से मिमियाते
अभी दान के लिए तरीके इन को सारे आते
सत्ता की खतिर ये गुंडे हिजड़े से बन जाते

शायद भारत के कर्मोंका भग्य विधाता रूठ गया
लगता है उन्नति का सूरज यहाँ अचानक डूब गया
गुंडा गर्दी लूट डकैती ये सब की सब आम हुई
कहाँ देश में अब शाशन है गुंडा शासन खूब हुआ

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