Wednesday, August 11, 2010

नव गीतिका

बेशक तूने दुनिया देखी
पर पहले खुद को तो देख
क्या रखा है उन महलों में
पहले अपने घर को देख
देख इया होगा जग सारा
पर अपनी दुनिया तो देख
क्या बतलाऊँ तुझ को रे मन
सब कुछ अपने अंदर देख
कितनी दूर देख पायेगा
केवल अपनी जद में देख
कितना ऊँचा उड़ पायेगा
पहले इन पंखों को देख
करने को कुछ भी तू कर ले
पर करने से पहले देख
क्या २ मैंने शं कर लिया
मेरे इन जख्मों को देख
ये बातें तो ठीक नही हैं
देख रही है दुनिया देख
क्या कहना है तुम को उन से
पहले अपने दिल में देख
पैर बढ़ाना तब आगे को
पहले अपनी चादर देख
बड़ी बात कहने से पहले
नीला अम्बर सिर पर देख
यों तो कुछ भी खले बेशक
पर उस का मतलब तो देख
व्यथा तो दुनिया देती ही है
व्यथित यहाँ पर ये मत देख

1 comment:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत सुन्दर! उचित विश्लेषण करती रचना