Friday, October 1, 2010

टूटे सपने

टूटे हुए सपनों को
आखिर कब तक कोशिश करोगे
जोड़ने की
मान क्योंन्ही लेते कि
स्वप्न ही तो थे वे
जो टूट गये ,
टूट कर बिखर गये
कांच के टुकड़ों की भांति
जिन्हें समेटने में भी
लहुलुहान हो जायेंगे हाथ
इसी लिए सावधानी रखना
उन्हें फैकने में भी
और भूल जाना बाहर फैंक कर
बेशक याद आये उन की चमक
उन की रंगीनियाँ या उन का आकर्षण
पर टूट कर बिखर ही गया जब सब कुछ
तो जरूरी है उन्हें भूलना
लहुलुहान होने से बचने के लिए
हृदय को आघात से
बचाए रखने के लिए

13 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कांच के टुकड़ों की भांति
जिन्हें समेटने में भी
लहुलुहान हो जायेंगे हाथ
इसी लिए सावधानी रखना
उन्हें फैकने में भी
और भूल जाना बाहर फैंक कर

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...काश यूँ भूला जा सके

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

बाऊ जी,
नमस्ते!
सार्थक सन्देश!
आगे बढ़ जाना ही ज़िंदगी है....
आशीष
--
प्रायश्चित

vandana gupta said...

बिल्कुल सही बात कही है……………सार्थक अभिव्यक्ति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/19-297.html

यहाँ भी आयें .

Kailash Sharma said...

पर टूट कर बिखर ही गया जब सब कुछ
तो जरूरी है उन्हें भूलना
लहुलुहान होने से बचने के लिए
हृदय को आघात से
बचाए रखने के लिए......

बहुत ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति.....

Kailash Sharma said...

पर टूट कर बिखर ही गया जब सब कुछ
तो जरूरी है उन्हें भूलना
लहुलुहान होने से बचने के लिए
हृदय को आघात से
बचाए रखने के लिए......

बहुत ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति.....

M VERMA said...

टूटे हुए तो बिखर जाते हैं और जब बिखर जाते हैं तो चोट पहुँचाते हैं

monali said...

Aage badh jana behtar hai magar mushkil bhi.. sundar rachna...

Udan Tashtari said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति!

वाणी गीत said...

टूटकर बिखरते भी बहुत लहुलुहान कर जाते हैं ...
ख्वाब शीशे से नाजुक जो होते हैं ...
हृदयस्पर्शी कविता ...
आभार ..!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब .... सच है टूटे सपनों को ले कर बैठना ठीक नही ... पर भूलना भी तो आसान नही ... गहरी रचना ...

http://anusamvedna.blogspot.com said...

टूटे हुए सपनों को
आखिर कब तक कोशिश करोगे
जोड़ने की
मान क्योंन्ही लेते कि
स्वप्न ही तो थे वे
जो टूट गये ,


बहुत सुंदर रचना .....टूटे हुए सपनों को भूलना बहुत ही जरूरी होता है वरना इनकी किरचिया बहुत तकलीफ देती है ....