Saturday, October 2, 2010

बड़ी भूख

बड़ी भूख

बहुत भूखी होती है भूख
भूख से तो बहुत बड़ी भी
और डरावनी भी |
भूख जैसी हो कर भी a
कहाँ तृप्ति होती है उस की
बहुत कुछ निगल कर भी
निरंतर जलने वाली आग की तरह
जो बिना धुएं के
जलती है निरंतर
और जला कर
बनती है राख ही नही बर्फ भी
बर्फ भी ऐसी कठोर कि
पिघलती ही नही है जो
अनेकों ताप और शाप सह कर भी
अपितु बढती जाती है निरंतर
आखिर रोकना तो पड़ेगा ही इसे
बर्फ या राख बनने से पहले

No comments: