भगवान श्री सीता राम जी
किस ने देखा राम हृदय की घनीभूत पीड़ा को
कह भी जो न सके किसी से उस गहरी पीड़ा को
क्या ये सब सेवाके बदले मिला राम के मन को
आदर्शों पर चल कर ही तो पाया इस जीवन को
राम तुम्हारा हृदय लेह धातु से अधिक कठिन है
पिघल सका न किसी अग्नि से ऐसी मणि कठिन है
आई होगी बाढ़ हृदय में आँसू धरके होंगे
शायद आँख रुकी न होगी बेशक हृदय कठिन है
मन करता है राम तुम्हारे दुःख का अंश चुरा लूं
पहले ही क्या कम दुःख झेले कैसे तुम्हे पुकारूँ
फिर भी तुम करुणा निधन ही बने हुए हो अब भी
पर उस करुणा में कैसे में अपने कष्ट मिला दूं
किस से कहते राम व्यथा मन में जो उन के उभरी
जीवन लीला कैसे कैसे आदर्शों में उलझी
इस से ही तो राम राम हैं राम नही कोई दूजा
बाद उन्हों के धर्म आत्मा और नही कोई उतरी
दो सांसों के लिए जिन्दगी क्या क्या झेल गई थी
पर्वत से टकरा सीने पर सब कुछ झेल गई थी
पर जब आंसू गोरे धरा बोझिल हो उन से डोली
वरना सीता जैसी देवी क्या क्या झेल गई थी
डॉवेद व्यथित
http://sahityasrajakved.blogspot.com
2 comments:
वाह... अतिसुन्दर ,हृदयहारी रचना...वाह !!!
मुग्ध और नतमस्तक कर लिया आपकी इस सुन्दर रचना ने...
आनंद आ गया पढ़कर...
आभार...
rnjna ji aap ki shridyta ko nmn hardik aabhar
dr ved vyathit
Post a Comment