नोटों की माला का कैसा नया चलन अब आया है
भूखों की रोटी छिनी है कैसा खेल दिखाया है
पर मूर्ख वे लोग खुदी हैं जो ऐसे लुट जाते हैं
जात पांत के नाम पै कैसा २ नाच दिखाते हैं
माला तो है खूब उजागर कुछ लेते बिन माला के
सब को रहती पता यहाँ पर ऐसी गड़बड़ झाला के
पर किस की कब कौन कह रहा सब हमाम में नंगे हैं
भूखे मर जायेंगे नेता बिना लिए इस माला के
काश इसी माला में से ही होरी को कुछ मिल जाता
वो भी अपने फटे हल को थोडा सा तो सिल पता
पर ऐसे कैसे हो सकता कहाँ हुई गिनती उस की
रुपया तो केवल उस के इन आकाओं पर जाता है
डॉवेद व्यथित
1 comment:
Sahi kaha aapne....
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