Friday, March 19, 2010

सैनिकों के प्रति

इस से ज्यादा शर्म की और क्या बात होगी जो देश के सैनिकों को अपने मेडल वापिस करने पड़ रहे हैं
देश के उन हजारों सैनिको के प्रति सम्मान पूर्वक मेरे कुछ मुक्तक निवेदन है

सैनिकों के प्रति

सीमाओं पर रात रात भर जो जवान अड़ जाते हैं
अपना सब कुछ छोड़ देश के लिए बलि चढ़ जाते हैं
उन बलिदानों की कीमत क्या देश कभी दे सकता है
पर सत्ता में बैठे गूंगे बहरे क्या सुन पाते हैं ?

ऐसी मजबूरी क्यों आई मेडल भी वापिस ले लो
इन से पेट नही भरता है इन को तुम वापिस ले लो
पर दे दो इज्जत मेरी जो देश के लिए लुटाई है
और चाहिए नही मुझे कुछ बेशक जीवन भी ले लो

यदि जवानो के संग में भी ऐसे ही बतियोगे
राजनीति के ओ दुमछल्लो क्या गुल और खिलाओगे
यदि इसे अपमान मिलेगा फिर कैसे जीवन देगा
सैनिक के इस त्याग बिना तुम चैन से न सो पाओगे

जय जवान का नारा ही तब बेमानी हो जायेगा
जब जवान सत्ता के कारण अपना मान गंवाएगा
क्या रह जाएगी कीमत छाती पर लटके मेडल की
जब वो रोटी की भी खातिर दरदर ठोकर खायेगा

डॉ.वेद व्यथित
http://sahityasrjakved.blogspot.com
email -dr.vedvyathit@gmail.com

3 comments:

मुनीश ( munish ) said...

I share ur concerns and i thank u for raising the issue through ur touching poem.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सत्ता में सभी गूंगे और बहरे बैठे हैं या फिर सत्ता उन्हें गूंगा और बहरा बना देती है. सटीक.

Unknown said...

जब सता गद्दारों के हाथ में हो तो और क्या उमीद सकते है