इस तरह तू हवा की वकालत न कर
देख , दुनिया की ऐसे अदावत न कर
आसमाँ से तेरी दोस्ती क्या हुई
सोच अपनों की ऐसे खिलाफत न कर
चाँद तारों की ऐसे खिलाफत न कर
धूप सूरज की ऐसे खिलाफत न कर
ठीक है तेरी दौलत की गिनती नही
क्या पता है समय का दिखावट न कर
हाथ में तेरे बेशक है ताकत सही
गैब से थोडा डर तू शरारत न कर
प्यार के बोल मीठे हैं अनमोल हैं
और इस के सिवा तू लिखावट न कर
जान ले तेरे प्रीतम की मूरत है क्या
छोड़ दे और चीजें इबादत न कर
5 comments:
सुन्दर गीत..
बहुत सुन्दर्।
आसमाँ से तेरी दोस्ती क्या हुई
सोच अपनों की ऐसे खिलाफत न कर
xxxxxxxx
ठीक है तेरी दौलत की गिनती नही
क्या पता है समय का दिखावट न कर
xxxxxxxx
प्यार के बोल मीठे हैं अनमोल हैं
और इस के सिवा तू लिखावट न कर
xxxxxxxx
खास कर ये पंक्तियाँ बेहद ही ख़ूबसूरत और कमाल की लगी. ये गीतिकाएं ग़ज़ल के बेहद करीब हैं.. पर ठीक है इनकी भी अपनी एक परंपरा है.. ! इतनी उम्दा गीतिकाओं के लिए आपका साधुवाद आदरजोग वेद जी ! आभारी हैं हम ! नमन !
बेहतरीन लेखन - सुंदर गीत के लिए आभार
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर
बहुत खूब ...सुन्दर अभिव्यक्ति
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