ढूँढने वे बहाने लगे
उन को हम याद आने लगे ||
कोयलें कूकने क्या लगीं
आम पर बौर आने लगे ||
बात जब भी सताने लगी
वायदे याद आने लगे ||
कच्चे धागे से बंधन थे जो
वो ही दिल को सताने लगे ||
कौन सुनता हमारी यहाँ
जख्म सब ही दिखने लगे ||
बात जब जब भी उन की हुई
जख्म फिर से सताने लगे ||
मन की दूरी कहाँ कम हुई
हम बनावट बढ़ाने लगे |
2 comments:
बहुत ही सुन्दर भावमयी रचना।
यह रचना दिल को छू गयी डॉ साहब ...हार्दिक शुभकामनायें !
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