सर्दी अपना रंग दिखा ही रही है मैंने मित्रों के स्नेह से एक नये छंद त्रि पदी की रचना की है जो पहले भी आप ने मेरे ब्लॉग पर व अन्य स्थानों पर पढ़ा है उसी को आगे बढ़ाते हुए फिर कुछ शीत ऋतू की त्रि पदी लिखी हैं इन्हें भी आप का पूर्वत स्नेह व आशीष मिलेगा |
शीत ऋतू की त्रि पदी
जब आग बुझी होगी
तो बाक़ी बचेगा क्या
बस बर्फ जमीं होगी
ये सर्द बनती है
बर्फीली हवाएं हैं
ये खूब सताती हैं
ये बर्फ तो पिघलेगी
बस दिल को गर्म रखना
मजबूर हो पिघलेगी
ये बर्फ जमाये तो
सांसों को गर्म रखना
जब सर्द बनाये तो
ठिठुरन तो होगी ही
ये बर्फ की मन मानी
पर ये भी पिघलेगी
ये सर्द हवाएं हैं
ये प्यार के रिश्तों को
बस बर्फ बनाएं हैं
क्यों चुप्पी छाई है
इन लम्बी रातों में
क्यों बर्फ जमाई है
कुछ बर्फ पिघलने दो
बस दिल को गर्म रखना
बस दिल को धडकने दो
किस किस को बताओगे
जो बर्फ सी यादें हैं
किस किस को सुनाओगे
यादें कैसे भूलूँ
ये बर्फ सी जम जातीं
उन को कैसे भूलूँ
जब बर्फ जमी होगी
दिल की गर्माहट से
कुछ तो पिघली होगी
यादें पथरीली हैं
वे दिल को जमातीं हैं
ऐसी बर्फीली हैं
ये केश हैं अम्मा के
ये बर्फ के जैसे हैं
बीते दिन अम्मा के
विधवा के आंचल सी
ये बर्फ की चादर है
दुःख की बदली जैसी
3 comments:
किस किस को बताओगे
जो बर्फ सी यादें हैं
किस किस को सुनाओगे
यादें कैसे भूलूँ
ये बर्फ सी जम जातीं
उन को कैसे भूलूँ
अति सुन्दर...
बहुत सुन्दर रचना|
सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद....
satguru-satykikhoj.blogspot.com
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