बरसती नदी तो
उफन ही गई थी
यौवन की ,रूप की और रस की
चार बूँद भर प् कर
और तुम होती गयीं कुछ
अधिक शर्मीली
अधिक संकोची और अधिक सौम्य भी
अपने यौवन के वसंत से रूप के निखर से
उस की सिंग्धता से
और इन सब के महत्व से
कितना अंतर था
तुम में और
उस ओछी सी
उफनती नदी में
1 comment:
भावना की नदी बरसती नदी से कहीं अधिक सौम्य व गम्भीर है |कवि को बधाई है|
सुधा भार्गव
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