Saturday, September 4, 2010

नव गीतिका

किसी घायल परिंदे को नजर अंदाज मत करना
किसी की जिन्दगी से इस तरह खिलवाड़ मत करना |
कहीं कोई तुम्हें गम जिन्दगी का खुद सुनाये तो
जरा दिल से उसे सुनना ,कभी इंकार मत करना |
तुम्हें चाहे कोई देना कभी दो आँख के आँसू
उन्हें लेना वो स्वाति बूँद हैं इंकार मत करना |
कोई प्यासा कभी दो बूँद पानी मांग ले तुम से
उसे जी भर पला देना कभी इंकार मत करना
जहाँ भी शाम हो जाये यदि दे आसरा कोई
उसे स्वीकार कर लेना कभी इंकार मत करना ||

4 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

jnaab doktr ved ji shrmaa apne apni rchnaa men ghayl prinde ki tdp byaan kr khud ke doktr hone kaa ehsas kraa diya he jbki jivnt chitrn ne aapki vednaaon kaa ehsaas kraakr aapko vedon ke prkaash felaane vaala saabit kr diya he . akhtar khan akela kota rajsthnaan

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वाह वेद जी बहुत अच्छी नजम पढने को मिली।
प्रेरणा देने वाली नजम के लिए आपका आभार

श्रद्धा जैन said...

आदरणीय वेद जी
सादर नमस्कार
पिछले कुछ दिन बहुत व्यस्तता रही और थोड़ी तबीयत भी परेशान करती रही इसीलिए साखी पर दी गई आपकी प्रतिक्रिया पर आभार नहीं प्रकट कर सकी .. देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.. गजलों पर आपकी दस्तक ने बहुत हौसला दिया

आपके स्नेह के लिए आभारी हूँ
मेरी कोई बात से आपके मन को ठेस पहुंची हो तो मुझे माफ़ कर दीजियेगा
और अपना स्नेह बनाये रखियेगा

धन्यवाद
श्रद्धा

श्रद्धा जैन said...

Maine aapko mail likhi thi lekin wo pahunch nahi saki .. shayad Id mein kuch problem thi..

shrddha8@gmail.com