यह कतई जरूरी नही है
कि मेरे विषय में
तुम जो सोच रहे हो
वही मुझ से कह भी रहे हो
या जो कह रहे हो
वैसा ही मेरे विषय में मानते भी हो
या जो मानते हो
वह शायद नही कह पा रहे हो
सम्भवत: अपनी शिष्टता के नाते ,
अपनी सहृदयता के नाते या
अपनी चतुरता के नाते या
पता नही ऐसे ही किसी अन्य कारण से
क्योंकि और भी कई कारण हो सकते हैं
तुम्हारे मन और वाणी के
मध्य की दूरी के
और इन दोनों के मध्य
मैं कहाँ हूँ
यह पता कहाँ लगता है
तुम्हारे इन औपचारिक शब्दों से ||
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