Saturday, January 8, 2011

सूरज और हवा

सूरज की उत्साह हीनता से
ठंडा होता गया सब कुछ
ठिठुरता सा ,जमता सा और निष्प्राण सा
परन्तु सहचरी वायु का संचरण
बनाएगा इसे शनै: २ प्राणवान
इसी से होता जायेगा यह
धीरे २ प्रखर और तेजवान
आज का मद्धिम सूर्य

3 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

प्रकृति को लेकर सहचरी के संचरण का सुंदर प्रयोग ...
बहुत खूब ....!!

Satish Saxena said...

सहचरी का साथ हो तो क्या नहीं हो सकता ...
बेहतरीन रचना ! शुभकामनायें !

Narendra Vyas said...

बेहद खूबसूरती से प्रकृति की करवट को चमत्कारित करती रचना ! आभार, सादर नमन !