देश की राजधानी और राजधानी के दिल कनाट प्लेस में आयोजोत अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स सम्मेलन में बहुत ही सार्थक सम्वाद हुआ विदेशी धरती पर भारतीयत ,भारतीय भाषा व भारतीय सांस्कृतिक चेतना का तकनीकी माध्यमों द्वारा अलख जगा रहे भाई समीर लाल समीर ने अपने बीज व्यक्तव्य में विशेष रूप से उठाया कि ब्लोगर्स को सार्थक सम्वाद के महत्व को समझ कर आगे बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए और यह भी आवश्यक है कि बिना जड़ के उत्पन्न विवादों को ब्लोगर्स इतना महत्व दे देते हैं कि विवाद जिस के विषय में है उसे पता ही नही होता और पूरी दुनिया में धुंआ उठ जाता है जिस से सम्बन्ध है उसे मेल भेजा नही जाता अपितु अन्य लोगों को भेज कर विवाद खड़ा कर दिया जाता है जब सम्बन्धित व्यक्ति को भेज दिया जाये तो विवाद खड़ा ही न हो उस के बाद विवाद खड़ा हो जाता है लोग खेमे बाजी शुरू कर देते हैं उन्होंने कहा ब्लॉग जगत को इस से बचना चाहिए और हमे सार्थक सम्वाद पर जोर देना चाहिए उन का अपना सर्वाधिक देखा जाने वाला ब्लॉग उडन तश्तरी इस का सार्थक उदाहरन है
इस के अतिरिक्त उन का हर नये ब्लोगर को प्रोत्साहन देना उन के ब्लॉग पर टिपन्नी देना देना भी बड़ी बात है
समारोह में प्रख्यात पत्रकार बालेन्दु दधिची ने ब्लॉग तकनीक पर अपना शोध पत्र पड़ा उन्होंने अधिक से अधिक लोग ब्लॉग से कैसे जुड़े इस के विषय में भी विस्तार से बताया तथा अपनी इस से सम्बन्धित सुंदर व सार्थक रचना का पाठ भी किया
समारोह में विभिन्न स्थानों से आये ब्लोगर्स ने अपनी बात रखी एक दूसरे से परिचय हुआ अपने २ अनुभव सांझे किये भाई अविनाश वाचस्पति इस के सूत्रधार रहे वे ब्लोगर्स परिवार को समय २ पर एकत्रित करते ही रहते हैं ,साधुवाद
6 comments:
bhut badhiya riport !
bahut der se rapat aaye pandit ji .
bahut sunder rapat hai.
vaah bhayi vah khbr or riport achchi he rohtk blogr mit ki bhi khbr pdi he aese smmeln hona achahiyen taaki logon ko aek dusre se sikhne ka moqaa mile. akhtar khan akela kota rajsthan
अच्छा लगा आपकी रिपोर्ट देखकर एवं आपसे मिलकर.
डॉ. साहब,
नमस्कारम्!
देखिए...मैंने आपको ढूँढ़ लिया न?
आपकी इस रपट से जुड़ा एक संदर्भ मेरे भी ब्लॉग पर आ उभरा है...कितना उचित और कितना अनुचित है आप स्वयं ही देख सकते हैं आकर...हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या...है न? लेकिन उससे पहले इस लिंक पर एक नज़र अवश्य डालें- http://aakharkalash.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html
डॉ. साहब,
नमस्कारम्!
देखिए...मैंने आपको ढूँढ़ लिया न?
आपकी इस रपट से जुड़ा एक संदर्भ मेरे भी ब्लॉग पर आ उभरा है...कितना उचित और कितना अनुचित है आप स्वयं ही देख सकते हैं आकर...हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या...है न? लेकिन उससे पहले इस लिंक पर एक नज़र अवश्य डालें- http://aakharkalash.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html
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