'ज़िंदा ज़ख्म' की नायिका का मूर्त रूप हैं- फ़िरदौस ख़ान
सच वास्तव में यदि सच हो तो वह इस मायावी जगत में जितना सुनना कड़वा होता है उतना उसे कहना या व्यक्त करना होता है.
सच को कहने के लिए पहाड़ जैसा साहस चाहिए, समुद्र जैसी गंभीरता व गहनता चाहिए, नदियों जैसी रवानगी चाहिए और सूरज जैसी प्रखरता व दिव्यता चाहिए तब जाकर कहीं सच कहा जा सकता है.
इसी पथ कीपथिक हैं निर्भीक पत्रकार, लेखिका, शायरा व विचारक तथा चिंतक फ़िरदौस ख़ान जो सच को उजागर करने के लिए अथक परिश्रमशील हैं वे प्रेम, करुणा व सौहार्द के मुरझाते वृक्ष को अपनी लेखनी से सींच रही हैं
उन्हें इसके लिए कुछ लोग नासमझी में 'तसलीमा नसरीन' कहने की गलती कर बैठते हैं, परन्तु वास्विकता तो यह है की फ़िरदौस तसलीमा नहीं हैं वे 'फ़िरदौस' ही हैं क्योंकि फ़िरदौस की शख्सियत उनकी अपनी शख्सियत है वह कुछ और नहीं हो सकतीं वे फ़िरदौस ही हो सकतीं हैं इसीलिए वे फ़िरदौस हैं
हिंदी के एक महान चिंतक व उपन्यासकार आचार्य निशांत केतु जी का उपन्यास है -'ज़िंदा ज़ख्म' उपन्यास की नायिका महजबी ज़ैदी एक पत्रकार हैं. वह पत्रकारिता के धर्म को निभाते हुए सच कहने व लिखने का साहस करती है, सौहार्द व प्रेम के प्रति समर्पित भाव रखती है, विभिन्न कलाओं के प्रति समर्पित है दूसरे मतों व धर्मों के प्रति हार्दिक आदर व सम्मान रखती है.
इस 'ज़िंदा ज़ख्म' की नायिका महजबी का वर्तमान में साक्षात्कार होता है - फ़िरदौस ख़ान के रूप में महजबी की तमाम ख़ासियत या विशेषताएं इस पत्रकार फ़िरदौस ख़ान में मूर्तिमान होकर जीवंत हो रही हैं.
कैसा संयोग है किसी उपन्यास की नायिका का व्यवहार जगत में प्रतिरूप प्राप्त होना यह महज़ संयोग है या उपन्यासकार की भविष्य को संवारने की भविष्य दृष्टि जो फ़िरदौस ख़ान में स्वत: स्फूर्त प्रकट हो रही है
मुझे समझ नहीं आ रहा कि सौहार्द स्थापना के प्रयासों के लिए उपन्यासकार आचर्य निशान केतु जी को साधुवाद दूं या उपन्यास की नायिका की साक्षात् मूरत फ़िरदौस को साधुवाद दूं कि वह किस प्रकार मुसीबतों और कुरीतीयों से टकराकर सौहार्द स्थापना हेतु कृत संकल्प हैं.
निश्चित ही दोनों साधुवाद के पात्र हैं.
फिरदौस मज़हब से ज़्यादा रूहानियत में यक़ीन करने वाली लड़की हैं. उनका यह ध्यातिमक गीत इस बात की मिसाल है. वह खुद कहती हैं- अगर इंसान अल्लाह या ईश्वर से इश्क़ करे तो... फिर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि किसी मस्जिद में नमाज़ पढ़कर उसकी इबादत की है... या फिर किसी मन्दिर में पूजा करके उसे याद किया है...
पिछले साल प्रकाशित फ़िरदौस की किताब ‘गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ भी रूहानियत पर आधारित है. इसमें 55 संतों व फकीरों की वाणी एवं जीवन-दर्शन को प्रस्तुत किया गया है. इसकी ‘प्रस्तावना’ राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री इन्द्रेश कुमार जी ने लिखी है. फ़िरदौस का ज़िक्र करते हुए वे कहते हैं- लेखिका चिन्तक है, सुधारवादी है, परिश्रमी है, निर्भय होकर सच्चाई के नेक मार्ग पर चलने की हिम्मत रखती है.
वेद व्यथित
25 comments:
जी जितना हमने पढ़ा है उस आधार पर हम आप से पूरी तरह से सहमत!
कुंवर जी,
अब तो फिरदौस को पढ़ना ही पढ़ेगा क्योंकि जब आप ऐसा कह रह हैं तो वह वाक्या ही बहादुर है।
firdos ji waqai tareef ke qabil hen.
वेद जी,
अब तो यह उपन्यास पढ़ना ही पड़ेगा !
फ़िरदौस जी, जिस साहस के साथ अपने नेक उद्देश्य में संघर्षरत हैं, उन्हें समाज की नायिका बनने में समय नहीं लगेगा !!
इस लेख के लिए आपको बधाई और फ़िरदौस जी को भी शुभकामनाएं !!!
दोनों को साधुवाद देना निश्चित ही सराहनीयह है।
फिरदौस की कलम पैनी है (जितना कुछ पढा उसके आधार पर)
Firdaus Ji Ke saahity ke Baare Mein Jitna Main Jaanta Hoon, Aapne Lagbhag Vahi Likha Hai, Lekin Ve Isse Zyaada Ek Nekdil Insaan hain, Yah Srf Oopar Waala Hi Jaanta Hai !! Ishwar Unhen Chiraaye De !! Aameen !!
दोनों को साधुवाद देना निश्चित ही सराहनीयह है।
फिरदौस की पत्रकारिता प्रखर दिखती है, सचाई और समानता की पैरोकार है !
वेद जी,
आप भी बधाई के पात्र है जो सचाई के साथ अपने पत्रकार धर्म का पालन कर रहे हैं. पुराने उपन्यास का सही सन्दर्भ में उल्लेख कर इसे पढने की तलब बढ़ा दी है. आप सिर्फ साहित्य प्रेमी नहीं जनहित में इसके प्रचारक भी हैं. शुभकानाएं !!
firdos ji aapke baare men jaankr skhusi hui aapke vichaar or hoslaa qaabil-e-taarif he. akhtar khan akela kota rajasthan. blog akhtarkhanakela.blogspot.com
वेद जी, आप ठीक कहते हैं-
सच वास्तव में यदि सच हो तो वह इस मायावी जगत में जितना सुनना कड़वा होता है उतना उसे कहना या व्यक्त करना होता है.
सच को कहने के लिए पहाड़ जैसा साहस चाहिए, समुद्र जैसी गंभीरता व गहनता चाहिए, नदियों जैसी रवानगी चाहिए और सूरज जैसी प्रखरता व दिव्यता चाहिए तब जाकर कहीं सच कहा जा सकता है.
इसी पथ कीपथिक हैं निर्भीक पत्रकार, लेखिका, शायरा व विचारक तथा चिंतक फ़िरदौस ख़ान जो सच को उजागर करने के लिए अथक परिश्रमशील हैं वे प्रेम, करुणा व सौहार्द के मुरझाते वृक्ष को अपनी लेखनी से सींच रही हैं
उन्हें इसके लिए कुछ लोग नासमझी में 'तसलीमा नसरीन' कहने की गलती कर बैठते हैं, परन्तु वास्विकता तो यह है की फ़िरदौस तसलीमा नहीं हैं वे 'फ़िरदौस' ही हैं क्योंकि फ़िरदौस की शख्सियत उनकी अपनी शख्सियत है वह कुछ और नहीं हो सकतीं वे फ़िरदौस ही हो सकतीं हैं इसीलिए वे फ़िरदौस हैं
@कहत कबीरा...सुन भई साधो
@Atul Mishra
शत-प्रतिशत सहमत
फ़िरदौस जी, बहुत ही नेक काम कर रही हैं
हमारी शुभकामनायें
firdosh ji ek bahout badiya insan hone k sath sath ek umda kism ki jourbalist hai jo ki bahout kam log hote hai.............
फ़िरदौस खान और तस्लीमा नसरीन दोनों ही रूढीवादी ,दकियानूसी और अपने ढंग से अपनी सहुलियत के मुताबिक शरीयत का मतलब निकालकर फ़तवा जारी करने की परंपरा को बढावा देने वाले धर्म के ठेकेदारों की दादागिरी के खिलाफ़ एक बहुत ही मुश्किल किस्म की लडाई लड रही हैं और इस संघर्ष को पढी-लिखी मुस्लिम महिलाओं का दबी जुबान समर्थन भी मिल रहा है। वे अपने मकसद में कामयाबी हासिल करें,इसी सद्भावना के साथ आपका आभार प्रकट करता हूं।
Respected Ved Vyathitji,
I am Ashok Kumar Jyoti.
I was glad to know that you have compared Firdaus Khan with the character "Mahzavi zahidi" from Acharya Nishantketuji's novel "Zinda Zakham". I believe that I am the first reader of the Novel "Zinda Zakham". When we find some one in real life about whom we read in some 'Ficticious Novel' I feel that it is great achievement for a writer.Now I feel that I should meet Firdaus Khan because the boldness and the truthfulness we find in her writing is really a piece of marvel. Earlier I have also read his Novel "Yoshagni" that reflects miseries of the life of a prostitute.And I also feel proud that I have alredy read one hundred stories written by Acharya Nishantketuji.
I also thank the Publisher of all these books "Nirmal Publications" Shahadara, Delhi.
Ashok Kumar Jyoti
(mail Id - (ashok.jyoti@rediffmail.com)
वह उपन्यास तो नहीं पढ़ा परन्तु जितना फिरदौस को पढ़ा है उससे इतना तो कह सकते हैं कि आपने एक शब्द भी अतिशयोक्ति नहीं कहा ..फिरदौस तस्लीमा नसरीन नहीं ..फिरदौस बस फिरदौस है ..
जितना मैं जानती हूँ,उसके आधार पर यही अनुभव..शुभकामनाएं फ़िरदौस को ... वे हमेशा निर्भीक रहें..
बहुत ही हर्ष हुआ यह जान.....कि एक पुस्तक की नायिका यूँ मूर्त रूप में किसी में विद्यमान है. फिरदौस की लेखनी की काबिलियत से तो पूरा ब्लॉग जगत वाकिफ है. कमाल की साफगोई और हिम्मत है उनमे...बहुत ही उम्दा लिखती हैं...वे निरंतर ऐसे ही लिखती रहें....असीम शुभकामनाएं "
जरूर पढना चाहूंगा !
जितना मैंने फिरदौस को पढ़कर जाना , धर्म और जाति से बहुत ऊपर उठकर यह लड़की एक सच्ची मानवी है जिसके मन में सबके लिए प्यार लबालब भरा है !
इस प्यारी सी रचनाकार, कवियत्री को मेरा ससम्मान सलाम !
बेशक मेरी छुटकी का व्यक्तित्व तारीफ़ के लायक तो है ही
मैने सुन रखा है कि सत्य के मार्ह पर चलने वालों की परीक्षा स्वयं भगवान लेते हैं अतः उनको कठिन परीक्षाओं के दौर से गुजरना पडता है, क्योंकि भगवान यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि किसी कमजोर पल मे अपने मार्ग से विचलित होने वाला उनके पास न आ सके और सच्चा भक्त ही उनके सानिध्य का लाभ करे।
फिरदौस भी इस प्रकार की परीक्षाओं से लगातार दो चार हो रही हैं, मैं दृढमत हूँ कि फिरदौस इन परीक्षाओं से इसी प्रकार तप कर बाहर आएगीं जैसे सोना आग मे तप कर कुंदन बन कर बाहर आता है। फिरदौस निश्चित तौर पर तस्लीमा नहीं है, जहाँ तस्लीमा सम्पूर्ण पुरुष वर्ग की विरोधी है, फिरदौस मात्र कठ्मुल्ला पन की विरोधी है, चाहे वो स्त्री करे या पुरुष।
फिरदौस ने कभी भी हिन्दू या मुस्लिम नज़रिये को उतना महत्व नही दिया जितना मानवतावादी दृष्टिकोण को। अतः वो मज़हबी संकुचित दृष्टिकोण वालों के आलोचना का पत्र बनती रहती हैं।
डॉ वेद साधुवाद के पात्र है जिन्होने इस खूबसूरती से एक उपन्यास के बहाने हम सबका ध्यान अपने मध्य उपस्थित वास्तविक नायिका की तरफ खींचा है।
jinda jakhm to nahi padha hai maine par haal hi mein firdaus ji ko padha hai... aaj k tv aur internet yug mein log kahte hai ki sahitya mar raha hai par meri najar mein sahitya amar hai aur kabhi nahi mar sakta... sahitya ke kshetra mein firdaus ji jaisi hasti surya ka roop hai jo nirantar ise ek raushni pradaan karti rahegi... hum to bas nanhe taaron kee tarah hai jo man ke bhaavon ko ulte seedhe shabdon mein thop daalte hai logon k saamne...
वाकई फिरदौस जी के लेखों को पढ़कर तो यही कहा जा सकता है कि वाकई में वे एक प्रखर वक्ता के रुप में अपना लेख लिखती है और यही उनकी खसियतों मेंसे एक है। आवश्यकता है ऐसे लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलकर चलने का।
ईश्वर आप की लेखनी को और प्रखर बनाए
पढ़ने में अच्छा है पर उसे जीवन में कुछ सार्थक कर गुजरने की चाह है। कई बार किसी कथा,कहानी,उपन्यास को पढ़ने के बाद महसूस होता है कि कहानी कुछ अधूरी रह गई. ... शायद 'फिरदौस' के कथानक को कहने का यह प्रभावपूर्ण तरीका ही है. ... बहुत नाम सुना है आपके श्री मुख से उनका अब तो उनको पढ़ना ही पड़ेगा धन्यवाद फ़िरदौस ख़ान" को..
प्रकाशचंद बिश्नोई
vishnoi.pc1989@gmail.com
9967207809
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