Friday, February 5, 2010

Muktak

जो जनता को नाच नचाते उन को गुंडे नचा रहे
ताल एक हो जाये सब की तालीवे सब बजा रहे
सब की मिली भगत होती है नेता अफसर गुंडों की
नये साल में नाच नाच कर ऐसा ही वे बता रहे

नाच नचाना और नाचना ये शासन का सूत्र यहाँ
मंहगाई बस बढती जायेबस ये शासन का सूत्र यहाँ
चीनी अभी और भी मंहगी होगी नेता कहते हैं
नेता गीरी और मंहगाई का है अच्छा सूत्र यहाँ

आतंकी तो भगने ही थे और जेल में क्या करते
क्या बिरयानी खाते खाते वे बेचारे न थकते
अब तक ही क्या किया आप ने आगे भी तुम क्या करते
छूटना तो था ही था उन और प्रतीक्षा क्या करते

क्या साधारण कानूनों से आतंकी रुक सकते हैं
देश द्रोह जैसे मद्दे को को क्या हम खास समझते हैं
इसी लिए ऐसी घटनाएँ खूब सहज घट जाती हैं
क्यों की जल्दी फाँसीअफजल कोभी न दे सकते हैं

3 comments:

Unknown said...

आपने हमरे मन की बात कह दी ।

सुधाकल्प said...

मुक्तक
राजसत्ता और उसकी नीति पर एक तीखा प्रहार है !
सुधा भार्गव

कविता रावत said...

Bahut sahi samyaik rachna.
Soye rajnitikaaron par sateek prahar..
Bahut shubhkamnayne.