Thursday, February 25, 2010

कबीर का कबीर होना

कबीर को कबीर हो जाने दो कबीर यदि कबीर नही हुआ तो क्या होगा महज एक निरक्षर भट्टाचार्य .परन्तु निरक्षर होने पर भिब तो वह निरक्षर नही है कबीर तो अक्षर ब्रह्म का साधक है .यह अक्षर ही तो ब्रह्म है ,यह ब्रह्म ही तो कबीर का राम है जो उस का पिऊ है .उसीपरम पुरुष कि भूरिया या आत्मा है कबर यानि आत्मा और परमात्मा के दर्शन का कबीरी सिधांत प्रकट हो जाने दो .यह परम पुरुष ही तो केवल एक मात्र पुरुष है वहीतो एक मात्र रजा है . यह रजा राम ही तो कबीर का भरतार है कबीर के भरतार का चयन ही तो कबीरी साक्षरता है .यही तो उस की अक्षरताहै उसी कि राज व्यवस्था तो देश का आदर्श है इसी लिए तो रजा राम कि प्रति समर्पित हैं कबीर . इसी का चिन्तन करने वाले जन नायक महात्मा गांधी ने भी इसी कबीरी साक्षरता के आगे अपना मस्तक झुका दिया
वह क्या बात है अक्षर ही कितने थे कबीर कि साक्षरता के बहुत अधिक कहाँ है मात्र ढाई आखर ही तो है जिस में समाई है सम्पूर्ण चेतना सम्पूर्ण ब्रह्मांड और पूर्ण तत्व है जो सम्पूर्णता को आधार दे रहा है यही ढाई आखर .परन्तु जहाँ क्द्न्दित होने लगते हैं ये ढाई आखर कबीर को व्हिंतो खड़ा होना है कबर वहीं तो खड़ा है तभी तो वह कबीर है .परन्तु इतना आसन नही है वहाँ खड़ा होना इन अक्षरों को सहेजे रखना इस लिए तो कबीर को कबीर नही होने देता कोई ,वह व्यवस्था भी यह शासन भी .
तभी तो ता चढ़ मुल्ला बंग दे रहा है कि देश से भगा दो कबर को देश निकला दो .उस का सर कलम करो उसे कैद कर दो किसी अज्ञात स्थान पर ले जाओ कलकत्ता में कोई जगह नही है न तो कबीर के लिए न ही कबीरी अबर्त के लिए .यदिकबीर सामने आया तो हंगामा किया जायेगा उस पर हमला कर देंगे कुर्सियां उठा कर मरेंगे एक महिला को भी नही छोड़ेंगे जो भी उस के खिलाफ बन पड़ेगा करेंगे उसे मिटा कर ही दम लेंगे परन्तु कबीर को तो सोने कि जूतियाँ नही चाहियें .उसे कहाँ अच्छे लगे हैं चिनाशुक और तेल फुलेल गली २ की सखी रिझाने के लिए
उस कि झीनी चाद्रिये ही काफी है उस के शरीर को ढांपने के लिए यह भी छीन लो बेशक कबीर से जंजीरों में जकड़ लो बेशक उसे हठी के पैर से बंधकर बेशक खिच्देगा वह राजपथ पर परन्तु नही छोड़ेगा वह अपना कबीर पना नही लेगा तुम्हारा अनुदान तुम्हारी कृपा दृष्टि उसे नही चाहिए उसे नही नचाएगी माया बेशक उस शिव को नचाया ब्रह्मा को नचाता बेशक वह महा ठगनी है परन्तु जरा ठग कर तो दिखाए कबीर को माया उस के ठेंगे पर क्या बिगड़ेगी कबीर का जैसे कोलकत्ता वैसा ही दिल्ली या कशी व मगहर जहाँ भी रहेगा कबीर कबीर ही रहेगा
नही रुकेगा उस का चदरिया बुनना ऐसी चादर जो बेदाग रहेगी जिस में माया का चाटुकारिता का चरण भात होने का ठकुर सुहाती कहने का कोई दाग नही होगा इसी लिए यही चादर ओढ़ कर ही तो वह कबीर रहेगा बेशक सिर में खडाऊं लगे बेशक उस की कितनी ही परीक्षा ली जाये कबीर भागेगा नही वह राम अक्षर का बीज मन्त्र ले कर रहेगा इस धरती का मन्त्र इस ब्रह्मांड का मन्त्र जो सर्वाधार है जगत का माया का जीव का .व्ही तो महा जल है अंतर कहाँ है जल और जल में एक ही तो है इस जल कि एक ही तो जातहै हरिजन कि जात कौन नीच है कौन उंच है कबीर क तो बस एक ही जात पीरी है हरी जन कि जात यही तो मर्म है कबीर का इसी जातिके संरक्ष्ण में तो लाना है चाहता है कबीर सब को देश को दुनिया को .क्यों कि एक ही रह से तो आये हैं हम सब तो कैसे अलग अलग हो गये यही तो कबीर का प्रश्न है कबीर तो व्ही है जिस में दैवत नही है फूटे ही कुम्भ सब जल एक ही जल तो है यानि महाजल यानि वही राम जिस से कबीर कबीर बन सके
इसी लिए समर्पित है कबीर राम के प्रति बेशक वह उस के गले में रस्सी बांध कर उसे कहीं खींच ले जाये कबीर टॉम कूकर है राम का जहाँ राम ले जाये कबीर तो उत जाये कबीर नही भागेगा रस्सी तोड़ कर उसे ठौर कहाँ है दूसरी जहाज का पंछी तो ठिकाना ढूढने जाता है परन्तु दूसरा ठिकाना कोई और है ही नही इसी लिए राम का यह कूकर तो कहीं नही जायेगा वह तो उस के चरणों में ही रहेगा वहीं जियेगा वहीं मरेगा इसी लिए तो वह कबीर हो पायेगा इसी लिए कबीर को कबीर हो जाने दो सुन्न महल में लजा लेने दो दीया नही तोचारो और घिरा रहेगा अँधेरा कुछ भी सूझेगा अच्छे बुरे का अंतर ही पता नही चलेगा इस लिए जरूरी है कबीर होने के लिए सुन्न महल में दिया जलाना ताकि सब कुछ स्पस्ट हो जाये सब भ्रम दूर हो जाएँ और चमक उठे झिलमिल झिलमिल नूर एक नूर जो बस एक ही है बस वही झिलमिल नूर और कबीर हो जाये कबीर बस हो जाने दो कबीर को कबीर
डॉ.वेद व्यथित

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