नही जरूरत रिश्वत है खोरी की जाँच करने की
वो तो बात पुरानी है सत्ता उस से कब्जाने की
नया घोटाले ही क्या कम हैं इन पर हल्ला कम है क्या
तुम को छूट मिली है कितनी इन पर शोर मचाने की ||
चोरों को संरक्षण दे कर भी सत वादी बने हुए
सौ २ चूहे खा कर के भी हज जाने पर अड़े हुए
घोटाले और गडबड का अपना इतिहास पुराना है
फिर भी हम सौगंध उठाने की जिद पर है अड़े हुए ||
हम तो कठपुतली हैं भइया खूब नचाये नाचेंगे
है नकेल जिस के हाथों में चरण उसी के चापेंगे
पद की शोभा ही क्या कम है जिस पर शोभित हैं भइया
हम तो मैया के कूकर हैं पूंछ हिला कर नाचेंगे ||
Thursday, March 24, 2011
Friday, March 18, 2011
Tuesday, March 15, 2011
होली
ननुआ ने तो भंग चढाई धोती फाडी ललुआ ने
कर रुमाल धुतिया के भइया ताल लगाई कलुआ ने
दिल्ली चौंकी सब जग चौंका खूब सुनाई दिगिया ने
बड़ी मम के गिर चरणों में धोक लगाई मनुआ ने ||
चीनी मिल रही पांच रूपया कडुआ तेल मुफ्त में है
दाल मिल रही दो दो रूपया रोटी संग मुफ्त में है
कैसा सुंदर राज है भइया होली खूब मनाओ जी
हाथों को मलते रह जाओ लाली खूब मुफ्त में है ||
गौरी को s m s भेजा आओ रंग बरसायें
बिन पानी के नीले पीले सारे रंग बरसायें
पहले मैं भेजूंगा मैसिज फिर तुम भी भिजवाना
अब के s m s की होलो फोन में खूब मनाये ||
भाभी ने देवर को भेजा sms का गुलाल
देवर ने भाभी पर डाला फोन में रंग गुलाल
होली के सब रंग बिखर गये हुए न शर्ट खराब
न देवर ने कोड़े खाए गाल न हुए गुलाल ||
जमाने बदल गए हैं बहाने बदल गये हैं
दुनिया बदल गई है गाने बदल गए हैं
दिल भी बदल गया है दीवाने बदल गये हैं
बस फर्क है कि इतना खत sms में बदल गये हैं ||
मिस काल कर रहे हैं संदेश भेजते हैं
ई मेल से ही प्यारा सा खत भेजते हैं
अब यंत्र ही साधन इस पर प्यार निर्भर
इस यंत्र से ही अपना वो प्यार भेजते हैं
कर रुमाल धुतिया के भइया ताल लगाई कलुआ ने
दिल्ली चौंकी सब जग चौंका खूब सुनाई दिगिया ने
बड़ी मम के गिर चरणों में धोक लगाई मनुआ ने ||
चीनी मिल रही पांच रूपया कडुआ तेल मुफ्त में है
दाल मिल रही दो दो रूपया रोटी संग मुफ्त में है
कैसा सुंदर राज है भइया होली खूब मनाओ जी
हाथों को मलते रह जाओ लाली खूब मुफ्त में है ||
गौरी को s m s भेजा आओ रंग बरसायें
बिन पानी के नीले पीले सारे रंग बरसायें
पहले मैं भेजूंगा मैसिज फिर तुम भी भिजवाना
अब के s m s की होलो फोन में खूब मनाये ||
भाभी ने देवर को भेजा sms का गुलाल
देवर ने भाभी पर डाला फोन में रंग गुलाल
होली के सब रंग बिखर गये हुए न शर्ट खराब
न देवर ने कोड़े खाए गाल न हुए गुलाल ||
जमाने बदल गए हैं बहाने बदल गये हैं
दुनिया बदल गई है गाने बदल गए हैं
दिल भी बदल गया है दीवाने बदल गये हैं
बस फर्क है कि इतना खत sms में बदल गये हैं ||
मिस काल कर रहे हैं संदेश भेजते हैं
ई मेल से ही प्यारा सा खत भेजते हैं
अब यंत्र ही साधन इस पर प्यार निर्भर
इस यंत्र से ही अपना वो प्यार भेजते हैं
Saturday, March 12, 2011
गुलाबी ठंड
ठंड बहुत कड़ाके की पडी थी |अब भी याद है |पर अब धीरे २ कम हो गई |पर जैसे ही कम होने लगी तो लोगों ने सत्ता से उतरे नेता की भांति ही ठंड से भी परिहास यानि मजाक करना शुरू कर दिया उसी ठंड से जिस के चलते यानि जिस के प्रकोप से इन के दांत आपस में कड कडातेथे जो ठंड के कारण महीनों नहाते ही नही थे और तो और मुंह नही चेहरा भी पूरा नही धोते थे बस मुंह ही यानि नाक तक होंठ ही पौंछकर काम चला लेते थे |कई २ गर्म स्वेटर ,जर्सी ,इनर ,पेंट के नीचे भी गर्म पजामी ,मफलर टोपी ,गर्म दस्ताने ,दो २ जुराब एक के उपर एक पहन कर रहते थे परन्तु अब वे ही ठंड को नाम रख रहे हैं |क्या गुलाबी ठंड पड़ रही है |देहात में इस ठंड को ही जाड़ा कहते हैं यानि गुलाबी जाड़ा |
ठंड तो ठीक है पर यह समझ में नही आया कि यह ठंड गुलाबी कैसे हो गई |यूं तो मुझे कलर ब्लाइंड नेस है जिस के कारण कई बार पत्नी मेरी सब के सामने खूब हंसी उड़ाती है और कभी २ तो डांट भी पिलाती हैं क्यों कि उन के लिए कई तरह के लाल पीले नीले रंग होते हैं और भी इन के आलावा कई मिश्रित रंग भी होते हैं जिन की पहचान मेरे लिए बहुत बड़ी परीक्षा होती है जैसे महरूम ,कोका कोला काफी रंग संतरी नारंगी जमीनी अंगूरी गेन्हूआ बादामी तोतई काई रंग आदि२ पता नही क्या २ कौन २ सी खाने और पीने की चीजों के आलावा पता नही क्या २ चीज के नाम पर रंगों के नाम रखे होते हैं इन में देसी ही नही विदेसी वस्तुएं भी शामिल हैं |
हमें छोटी कक्षा में मास्टर जी ने सात रंग ही पढाये थे जो मुझे मास्टर जी के बताये फार्मूले के अनुसार अब भी अच्छी तरह रटे हुए हैं फार्मूला था बेनिआहपीनाला यानि बेंगनी ,नीला ,हर ,पिला ,नारंगी नीला और लाल ये ही सात रंग इंद्र धनुष में होते हैं परन्तु इन में ये वस्तुओं के नामों के रंग तो नही थे ये कहाँ से आ गये परन्तु प्रसन्नता इस बात की होती है कि हमारे यहाँ महिलाएं कितनी अन्वेषक यानि खोजी होती हैं कि बस पूछो मत वे धन्य हैं वे महान हैं जिन्होंने इतने रंगों का अविष्कार कर लिया कि किसी भी वस्तु को नही छोड़ा और तो और भगवान के नाम के रंग भी बना लिए जैसे श्याम रंग कृष्ण रंग आदि २ उन की यह खोजी प्रवृति बड़ी महत्व पूर्ण है अपनी इस प्रवृति के कारण ही वे आसानी से सास बहू या बहू सास या पड़ोसन के साथ लड़ने या मेल मिलाप के कारण स्वयम खोज लेती हैं उन की यह खोजी प्रवृति ही दो अनजान महिलाओं को आपस में तुरंत जान पहचान बढ़ाने में सहायता करती है जब कि दो पुरुषों को जान पहचान बनाने में बहुत दिन लग जाते हैं |
मोहल्ले में कोई नया किरायेदार या कोई नया व्यक्ति आ कर रहने लगे तो सब से पहले महिलाएं ही उस से जान पहचान या मेल झोल बढ़तीं हैं फिर उन का एक दूसरे के घर आना जाना शुरू होता है उस के बाद स्वाभाविक बच्चों में दोस्ती होने लगती है उस के भी कई महीने बाद जा कर पुरुषों में महिलाएं ही जान पहचान करवातीं हैं और यदि नवागुंतक की पत्नी सुंदर या खूब सूरत हो तो पुरुषों की जान पहचान करवाने में महिलाये बहुत समय लगा देतीं हैं और उस के बाद जल्दी ही तू तू मैं मैं के कारणों की खोज भी शुरू कर देतीं हैं
ओहो ये तो बात कहीं और ही चली गई बात तो ठंड की चल रही थी परन्तु ठंड भी तो स्त्री लिंग है इसी लिए स्वाभाविक बात उधर स्त्रियों पर चली गई क्यों कि कहते हैं जो भी शब्द कोष में जो भी सुंदर शब्द है वह स्त्री लिंग शब्द ही है पुरुष तो कर्कश कठोर व कटु होते ही हैं जब कि स्त्रियाँ तो प्यार , दुलार व ममता की प्रति मूर्ती होती ही हैं परन्तु उन की खोजी प्रवृति तो महान है ही इसी लिए हल्की ठंड को भी गुलाबी ठंड बनाने की खोज इन्होने ही की हो यानि जिस ठंड में न तो सूरज देवता के दर्शन होते थे न ही धूप निकलती थी न ही बिस्तर छोड़ने को मन करता था और न मुंह ही धोने को पर वही ठंड कम क्या हुई उसे ही इन्होने गुलाबी बना दिया होगा एक कारण और भी हो सकता है कि शायद किसी ने गुलाबी रंग की ऊन का स्वेटर बनाना शुरू किया हो |
पर लगता है ऐसा है नही हर बात के लिए महिलाओं को ही दोषी ठहराने की बात बिलकुल गलत है जब की वे तो पुरुषों की क्या २ गलत बात को सहन कर लेतीं है इस गुलाबी नाम के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि किसी मनचले ने अपनी प्रेमिका को छेड़ने के लिए या बुलाने के लिए या उस का नाम गुलाबो या गुलाबी रखने के लिए ठंड का प्रकारांतर से ठंड का सहारा लिया हो क्यों कि ठंड कम होने से न तो धूप का रंग बदलता है और न ही हवा का वे तो वैसे के वैसे ही रहते हैं अपितु धीरे २ धूप कडक हो जाती है और हवा भी तेज चलने लगती है परन्तु इस से ठंड कैसे गुलाबी हो गई यह बात बड़ी गंम्भीर है इतना ही नही जैसे २ ठंड गुलाबी होने लगती है लोग फाग गाना शुरू कर देते हैं यानि अब फाल्गुन मास शुरू हो जाता है परन्तु फाल्गुन के फ अक्षर का भी गुलाब के ग अक्षर से कोई लेना देना नही है जो यह मान लें कि फाल्गुन के चलते ही ठंड को गुलाबी कहने लगते हैं यह बात भी गुलाबी ठंड के लिए नही जमीं |फाल्गुन मास की एक बात और है कि इस समय खेतों में सरसों के पीले २ फूल खिल जाते हैं सरसों के खेत दूर २ तक पीले रंग में रंगे दिखाई देते हैं चारों ओर पीला २ वातावरण दिखाई देने लगता है पर इस कारण तो ठंड को गुलाबी के स्थान पर पीली ठंड कहना चहिये था पर लोग पीली ठंड के बजाय कहते गुलाबी ठंड हैं |
एक बात और हो सकती है कि इस समय गुलाब खिलने लगते हैं तो शायद इस कारण ही ठंड को गुलाबी कहना शुरू किया हो परन्तु मुझे लगता है ऐसी बात भी नही है इस मैसम में गुलाब ही क्यों अन्य कितने ही प्रकार के फूल खूब खिलते है देश के राष्ट्र पति भवन का उद्यान भी तो केवल गुलाब के कारण नही अपितु सभी प्रकार के फूलों के खिलने के कारण साधारण जनता के लिए दर्शनार्थ खोल दिया जता है परन्तु गुलाबी ठंड से तो इस का भी कोई दूर तक लेना देना नही है |
अब और क्या कारण हो सकते है परन्तु कोई सारे कारण खोजना मेरी ही जिम्मेदारी थोड़ी है लेखक होना कोई दुनिया के सारे कारण खोजना थोड़ी है कुछ फर्ज तो पाठक या साधारण जनता का भी तो बनता है कि वह लेखक को सहयोग करे उस के लिखे को पढ़े और जो रह जाये उसे या तो लेखक को बताये या खुद खोज कर वह लेखक हो जाये पर आज हो यह रहा है कि कोई लेखक को तो पढ़ता ही नही है और न ही कुछ किसी लेखक को बताता है अपितु बिना औरों को पढ़े या बताये बिना ही लेखक बन जाना चाहता है इस लिए हो सकता है किसी ऐसे लेखक ने ही ठंड को गुलाबी बना दिया हो कि उस ने तो कह दिया अब तुम जानो बाक़ी कारण तुम खुद खोजते फिरो |
परन्तु मैं इतना कह सकता हूँ कि या मेरी यह खोज तो महत्वपूर्ण हो ही सकती है कि इस ठंड को गुलाबी बनाने में किसी लेखक का नही अपितु किसी कवि का काम जरूर होगा क्योंकि कवि ही ऐसे २ उलटे सीधे कारनामे करते रहते है जैसे पृथ्वी को दुल्हन बना देंगे आसमान को उस की चूनर बना देंगे समुद्र को उस का वसन बना देंगे पहाड़ों को विष्णु पत्नी पृथ्वी के स्तन बना दिए तो हो सकता है जरूर किसी ऐसे कवि ने ही इस ठंड को भी गुलाबी बना दिया होगा इस में अब कोई संदेह की गुंजायश नही लगती तो आओ गुलाबी ठंड का आनन्द लें क्यों कि यही आनन्द तो जीवन का अर्थ है |
ठंड तो ठीक है पर यह समझ में नही आया कि यह ठंड गुलाबी कैसे हो गई |यूं तो मुझे कलर ब्लाइंड नेस है जिस के कारण कई बार पत्नी मेरी सब के सामने खूब हंसी उड़ाती है और कभी २ तो डांट भी पिलाती हैं क्यों कि उन के लिए कई तरह के लाल पीले नीले रंग होते हैं और भी इन के आलावा कई मिश्रित रंग भी होते हैं जिन की पहचान मेरे लिए बहुत बड़ी परीक्षा होती है जैसे महरूम ,कोका कोला काफी रंग संतरी नारंगी जमीनी अंगूरी गेन्हूआ बादामी तोतई काई रंग आदि२ पता नही क्या २ कौन २ सी खाने और पीने की चीजों के आलावा पता नही क्या २ चीज के नाम पर रंगों के नाम रखे होते हैं इन में देसी ही नही विदेसी वस्तुएं भी शामिल हैं |
हमें छोटी कक्षा में मास्टर जी ने सात रंग ही पढाये थे जो मुझे मास्टर जी के बताये फार्मूले के अनुसार अब भी अच्छी तरह रटे हुए हैं फार्मूला था बेनिआहपीनाला यानि बेंगनी ,नीला ,हर ,पिला ,नारंगी नीला और लाल ये ही सात रंग इंद्र धनुष में होते हैं परन्तु इन में ये वस्तुओं के नामों के रंग तो नही थे ये कहाँ से आ गये परन्तु प्रसन्नता इस बात की होती है कि हमारे यहाँ महिलाएं कितनी अन्वेषक यानि खोजी होती हैं कि बस पूछो मत वे धन्य हैं वे महान हैं जिन्होंने इतने रंगों का अविष्कार कर लिया कि किसी भी वस्तु को नही छोड़ा और तो और भगवान के नाम के रंग भी बना लिए जैसे श्याम रंग कृष्ण रंग आदि २ उन की यह खोजी प्रवृति बड़ी महत्व पूर्ण है अपनी इस प्रवृति के कारण ही वे आसानी से सास बहू या बहू सास या पड़ोसन के साथ लड़ने या मेल मिलाप के कारण स्वयम खोज लेती हैं उन की यह खोजी प्रवृति ही दो अनजान महिलाओं को आपस में तुरंत जान पहचान बढ़ाने में सहायता करती है जब कि दो पुरुषों को जान पहचान बनाने में बहुत दिन लग जाते हैं |
मोहल्ले में कोई नया किरायेदार या कोई नया व्यक्ति आ कर रहने लगे तो सब से पहले महिलाएं ही उस से जान पहचान या मेल झोल बढ़तीं हैं फिर उन का एक दूसरे के घर आना जाना शुरू होता है उस के बाद स्वाभाविक बच्चों में दोस्ती होने लगती है उस के भी कई महीने बाद जा कर पुरुषों में महिलाएं ही जान पहचान करवातीं हैं और यदि नवागुंतक की पत्नी सुंदर या खूब सूरत हो तो पुरुषों की जान पहचान करवाने में महिलाये बहुत समय लगा देतीं हैं और उस के बाद जल्दी ही तू तू मैं मैं के कारणों की खोज भी शुरू कर देतीं हैं
ओहो ये तो बात कहीं और ही चली गई बात तो ठंड की चल रही थी परन्तु ठंड भी तो स्त्री लिंग है इसी लिए स्वाभाविक बात उधर स्त्रियों पर चली गई क्यों कि कहते हैं जो भी शब्द कोष में जो भी सुंदर शब्द है वह स्त्री लिंग शब्द ही है पुरुष तो कर्कश कठोर व कटु होते ही हैं जब कि स्त्रियाँ तो प्यार , दुलार व ममता की प्रति मूर्ती होती ही हैं परन्तु उन की खोजी प्रवृति तो महान है ही इसी लिए हल्की ठंड को भी गुलाबी ठंड बनाने की खोज इन्होने ही की हो यानि जिस ठंड में न तो सूरज देवता के दर्शन होते थे न ही धूप निकलती थी न ही बिस्तर छोड़ने को मन करता था और न मुंह ही धोने को पर वही ठंड कम क्या हुई उसे ही इन्होने गुलाबी बना दिया होगा एक कारण और भी हो सकता है कि शायद किसी ने गुलाबी रंग की ऊन का स्वेटर बनाना शुरू किया हो |
पर लगता है ऐसा है नही हर बात के लिए महिलाओं को ही दोषी ठहराने की बात बिलकुल गलत है जब की वे तो पुरुषों की क्या २ गलत बात को सहन कर लेतीं है इस गुलाबी नाम के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि किसी मनचले ने अपनी प्रेमिका को छेड़ने के लिए या बुलाने के लिए या उस का नाम गुलाबो या गुलाबी रखने के लिए ठंड का प्रकारांतर से ठंड का सहारा लिया हो क्यों कि ठंड कम होने से न तो धूप का रंग बदलता है और न ही हवा का वे तो वैसे के वैसे ही रहते हैं अपितु धीरे २ धूप कडक हो जाती है और हवा भी तेज चलने लगती है परन्तु इस से ठंड कैसे गुलाबी हो गई यह बात बड़ी गंम्भीर है इतना ही नही जैसे २ ठंड गुलाबी होने लगती है लोग फाग गाना शुरू कर देते हैं यानि अब फाल्गुन मास शुरू हो जाता है परन्तु फाल्गुन के फ अक्षर का भी गुलाब के ग अक्षर से कोई लेना देना नही है जो यह मान लें कि फाल्गुन के चलते ही ठंड को गुलाबी कहने लगते हैं यह बात भी गुलाबी ठंड के लिए नही जमीं |फाल्गुन मास की एक बात और है कि इस समय खेतों में सरसों के पीले २ फूल खिल जाते हैं सरसों के खेत दूर २ तक पीले रंग में रंगे दिखाई देते हैं चारों ओर पीला २ वातावरण दिखाई देने लगता है पर इस कारण तो ठंड को गुलाबी के स्थान पर पीली ठंड कहना चहिये था पर लोग पीली ठंड के बजाय कहते गुलाबी ठंड हैं |
एक बात और हो सकती है कि इस समय गुलाब खिलने लगते हैं तो शायद इस कारण ही ठंड को गुलाबी कहना शुरू किया हो परन्तु मुझे लगता है ऐसी बात भी नही है इस मैसम में गुलाब ही क्यों अन्य कितने ही प्रकार के फूल खूब खिलते है देश के राष्ट्र पति भवन का उद्यान भी तो केवल गुलाब के कारण नही अपितु सभी प्रकार के फूलों के खिलने के कारण साधारण जनता के लिए दर्शनार्थ खोल दिया जता है परन्तु गुलाबी ठंड से तो इस का भी कोई दूर तक लेना देना नही है |
अब और क्या कारण हो सकते है परन्तु कोई सारे कारण खोजना मेरी ही जिम्मेदारी थोड़ी है लेखक होना कोई दुनिया के सारे कारण खोजना थोड़ी है कुछ फर्ज तो पाठक या साधारण जनता का भी तो बनता है कि वह लेखक को सहयोग करे उस के लिखे को पढ़े और जो रह जाये उसे या तो लेखक को बताये या खुद खोज कर वह लेखक हो जाये पर आज हो यह रहा है कि कोई लेखक को तो पढ़ता ही नही है और न ही कुछ किसी लेखक को बताता है अपितु बिना औरों को पढ़े या बताये बिना ही लेखक बन जाना चाहता है इस लिए हो सकता है किसी ऐसे लेखक ने ही ठंड को गुलाबी बना दिया हो कि उस ने तो कह दिया अब तुम जानो बाक़ी कारण तुम खुद खोजते फिरो |
परन्तु मैं इतना कह सकता हूँ कि या मेरी यह खोज तो महत्वपूर्ण हो ही सकती है कि इस ठंड को गुलाबी बनाने में किसी लेखक का नही अपितु किसी कवि का काम जरूर होगा क्योंकि कवि ही ऐसे २ उलटे सीधे कारनामे करते रहते है जैसे पृथ्वी को दुल्हन बना देंगे आसमान को उस की चूनर बना देंगे समुद्र को उस का वसन बना देंगे पहाड़ों को विष्णु पत्नी पृथ्वी के स्तन बना दिए तो हो सकता है जरूर किसी ऐसे कवि ने ही इस ठंड को भी गुलाबी बना दिया होगा इस में अब कोई संदेह की गुंजायश नही लगती तो आओ गुलाबी ठंड का आनन्द लें क्यों कि यही आनन्द तो जीवन का अर्थ है |
Friday, March 11, 2011
जैसे उड़ जहाज कौ पंछी
जैसे उड़ जहाज कौ पंछी
कहाँ कहाँ न गया मेरी आश का पंछी
कहीं सुबह तो कहीं रात हो गई उस की ||
बहुत ही दूर के दरिया समन्दरों को देखा
कोई पर्वत कोई घटी नही हुई उस की ||
कहीं भी देख हरे बाग जब उतरने लगा
जिन्दगी जाल में फंसने लगी तभी उस की ||
हवा के साथ खूब ऊँचा उड़ा था तो मगर
उसी ने छीन ली ताकत तमाम ही उस की ||
बहुत जो दूर था अच्छा लगा तो लेने गया
नही था दूर जो नजर पडी थी उस की ||
आना ही था आखिर जहां से उड़ वो गया
और कोई ठौर समन्दर में नही थी उस की ||
कहाँ कहाँ न गया मेरी आश का पंछी
कहीं सुबह तो कहीं रात हो गई उस की ||
बहुत ही दूर के दरिया समन्दरों को देखा
कोई पर्वत कोई घटी नही हुई उस की ||
कहीं भी देख हरे बाग जब उतरने लगा
जिन्दगी जाल में फंसने लगी तभी उस की ||
हवा के साथ खूब ऊँचा उड़ा था तो मगर
उसी ने छीन ली ताकत तमाम ही उस की ||
बहुत जो दूर था अच्छा लगा तो लेने गया
नही था दूर जो नजर पडी थी उस की ||
आना ही था आखिर जहां से उड़ वो गया
और कोई ठौर समन्दर में नही थी उस की ||
Friday, March 4, 2011
वर्तमान
वर्तमान
नया उजागर हो रहा घोटाला हर रोज
फिर भी मुस्का कर वह देतें हैं हर पोज
शर्म नाम की चीज से उनका क्या सम्बन्ध
बेशर्मी से कर रहे सत्ता का वे भोग
लूट २ कर देश का धन रख आते विदेश
कंगला करने पर तुले ये गद्दार अनेक
क्यों कि उन को मिल गया लूट तन्त्र का राज
कैसे आगे चलेगा यहाँ राज और काज
बिका मिडिया कर रहा द्रोही के गुणगान
जितना जिस का धन मिला उतना उस का गान
रेट सभी के तय हुए यशोगान अनुसार
जिधर दिखी थाली परात उधर रात भर नाच
भगवा गली हो गई यह वैटिकन राग
जय चन्दों की देश में रही सदा भरमार
भारत वासी थक चुके सुन २ के ये बात
समय आगया है यहाँ युवा शक्ति अब जाग
कब तक ऐसीं चलेंगी दिग्गी जैसी चाल
गिरे हुए जमीर के लोगों की भरमार
बस मैडम को खुश करें चाहे जो हो जाय
देश धर्म से क्या उन्हें देश भाड़ में जाय
नया उजागर हो रहा घोटाला हर रोज
फिर भी मुस्का कर वह देतें हैं हर पोज
शर्म नाम की चीज से उनका क्या सम्बन्ध
बेशर्मी से कर रहे सत्ता का वे भोग
लूट २ कर देश का धन रख आते विदेश
कंगला करने पर तुले ये गद्दार अनेक
क्यों कि उन को मिल गया लूट तन्त्र का राज
कैसे आगे चलेगा यहाँ राज और काज
बिका मिडिया कर रहा द्रोही के गुणगान
जितना जिस का धन मिला उतना उस का गान
रेट सभी के तय हुए यशोगान अनुसार
जिधर दिखी थाली परात उधर रात भर नाच
भगवा गली हो गई यह वैटिकन राग
जय चन्दों की देश में रही सदा भरमार
भारत वासी थक चुके सुन २ के ये बात
समय आगया है यहाँ युवा शक्ति अब जाग
कब तक ऐसीं चलेंगी दिग्गी जैसी चाल
गिरे हुए जमीर के लोगों की भरमार
बस मैडम को खुश करें चाहे जो हो जाय
देश धर्म से क्या उन्हें देश भाड़ में जाय
Monday, February 14, 2011
मन की बात बताएं क्या
मन की बात बतायं क्या
तुम को मीत बनाएं क्या
मन के घाव हरे कितने
तुम को इन्हें दिखाएँ क्या
मजबूरी मेरी अपनी
तुम को उसे बताएं क्या
फटा चीथड़ा और फटा
अब उस को सिलावायें क्या
घर में कितने दाने हैं
तुम को इन्हें बताएं क्या
दिल मेरा किस उलझन में
तुम को यह बताएं क्या
कितनी बार बताया जो
फिर से वही बताएं क्या
दिल में जो भी है मेरे
तुम को उसे जताएं क्या
जो अपनापन भूल गये
अपना उन्हें बताएं क्या ??
तुम को मीत बनाएं क्या
मन के घाव हरे कितने
तुम को इन्हें दिखाएँ क्या
मजबूरी मेरी अपनी
तुम को उसे बताएं क्या
फटा चीथड़ा और फटा
अब उस को सिलावायें क्या
घर में कितने दाने हैं
तुम को इन्हें बताएं क्या
दिल मेरा किस उलझन में
तुम को यह बताएं क्या
कितनी बार बताया जो
फिर से वही बताएं क्या
दिल में जो भी है मेरे
तुम को उसे जताएं क्या
जो अपनापन भूल गये
अपना उन्हें बताएं क्या ??
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