Thursday, March 20, 2014

वर्त्तमान माहौल पर कुछ कहने का प्रयत्न  है 

फिर से उड़ने लगे हैं झंडे फिर से नारे बाजी 
फिर से होने लगी है मिल कर वोट की सौदेबाजी 
कहीं बिकेगा  वोट नोट में और कहीं मनमानी   
जिस से किस्मत बन जायेगी कुछ लोगों की अच्छी।। 

महंगाई और भ्रष्ट  आचरण जैसे मुद्दे छोड़े 
जाय देश भाड़ में सब ने इस से नाते तोड़े 
हल हो जाये अपना मतलब बाकी नाते तोड़े   
क्या सारे सुख अमर शहीदों ने इस नाते  छोड़े।।

बनजाएगी पुन: वही  सरकार दुबारा वैसी 
जैसे जनता लुटी अभी तक और लुटेगी वैसी 
कौन कहे अब एक दूसरे से सब एक तरह  हैं 
लूटना तो जनता को है बस सब के सब ऐसे है।.

क्यों लुटती जनता इस का उत्तर आसान नही है 
कैसे मिटे गरीबी यह उत्तर आसान नही है 
जब तक होगी सौदेबाजी वोट बिकेगा यूं ही 
तब तक तो इस का उत्तर  इतना आसान नही है।.

काठ की हांड़ी कुछ ठेकेदारों की चढ़ जाती है 
पहन के खादी क्या पूछो बस उन की बन आती है 
वोट की खातिर गांधी जी का नाम खूब रटते हैं 
उस गांधी के  छपे नोट से ही मदिरा  आती है।.

राजनीति में आये थे तो चार रूपपली कब थी 
जनता की सेवा के बदले मेवा खूब हड़प ली 
अब तो बड़े आदमी हैं वे और बड़े हैं नेता 
प्रजातंत्र के राज तंत्र की कैसी कैसी करनी।।

बात यह उन लोगों की है जिन पर नही मजूरी 
फिर भी भारत  रोज रोज करता है नई तरक्की
पर  ये उन्नति कुछ हाथों तक सीमित हो जाती है 
जब की आधी आबादी ही भूखी सो जाती है।. 

दल कोई भी हो मैं दल का पैरोकार नही हूँ 
दल के दलदल से जो उपजा खरपतवार नही हूँ 
सच को कहना सच को लिखना मेरा धर्म रहेगा 
कलम बेच कर कुछ भी लिख दूं वो किरदार नही हूँ।।
डॉ वेद  व्यथित 
09868842688 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जब धूल छटेगी तब पता चलेगा कि क्या हुआ था?

vedvyathit said...

bndhu prvin ji hardik aabhar