फिर भी प्यासी प्यास रह गई
बहुत बार बादल छाये हैं
बहुत बार वर्षा आई है
बहुत बार भीगा होगा मन
फिर भी प्यासी प्यास रह गई |
बहुत रात आँखों में बीतीं
बहुत सजाये स्वप्न रंगीले
सुबह हुई तो बिखर गए वे
रोज अधूरी आस रह गई |
बहुत कहा जो भी मन में था
बहुत सुना जो कहा उन्होंने
कहते सुनते गई जिन्दगी
फिर भी आधी बात रह गई |
कहाँ मिला जो भी मन में था
जो भी मिला नही मन भाया
फिर भी चलती रही जिन्दगी
मन की मन में बात रह गई ||
5 comments:
पाने, बढ़ जाने और खो जाने का नाम है जीवन।
बहुत ही उत्कृष्ट रचना है यह. आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
bahut hi bhaav-vibhor kar dene wali rachna.
सशक्त और सार्थक रचना
बहुत बार भीगा होगा मन
फिर भी प्यासी प्यास रह गई |
क्या बात है भाई जी ...! हार्दिक शुभकामनायें आपको !
Post a Comment