Tuesday, July 12, 2011

फिर भी प्यासी प्यास रह गई

फिर भी प्यासी प्यास रह गई

बहुत बार बादल छाये हैं
बहुत बार वर्षा आई है
बहुत बार भीगा होगा मन
फिर भी प्यासी प्यास रह गई |
बहुत रात आँखों में बीतीं
बहुत सजाये स्वप्न रंगीले
सुबह हुई तो बिखर गए वे
रोज अधूरी आस रह गई |
बहुत कहा जो भी मन में था
बहुत सुना जो कहा उन्होंने
कहते सुनते गई जिन्दगी
फिर भी आधी बात रह गई |
कहाँ मिला जो भी मन में था
जो भी मिला नही मन भाया
फिर भी चलती रही जिन्दगी
मन की मन में बात रह गई ||

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पाने, बढ़ जाने और खो जाने का नाम है जीवन।

Dr Varsha Singh said...

बहुत ही उत्कृष्ट रचना है यह. आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

अनामिका की सदायें ...... said...

bahut hi bhaav-vibhor kar dene wali rachna.

सुधीर राघव said...

सशक्त और सार्थक रचना

Satish Saxena said...

बहुत बार भीगा होगा मन
फिर भी प्यासी प्यास रह गई |

क्या बात है भाई जी ...! हार्दिक शुभकामनायें आपको !