साहित्य सर्जक
Monday, July 11, 2011
गठ्बन्धन
गठ्बन्धन की मजबूरी है चाहे देश बेच खाएं
गठ्बन्धन की मजबूरी है जानें कितनी भी जाएँ
गठ्बन्धन के कारण तो तुम देश का सौदा कर दोगे
ऐसा क्या ये गठ्बन्धन है मन मर्जी जो कर लोगे
2 comments:
प्रवीण पाण्डेय
said...
गठबन्धन, सबका ख्याल आवश्यक है।
July 11, 2011 at 8:38 PM
अरुण चन्द्र रॉय
said...
badhiya
July 12, 2011 at 12:41 AM
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गठबन्धन, सबका ख्याल आवश्यक है।
badhiya
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