Sunday, February 28, 2010

हाकी मैच जितने पर बधाई

देश वासियों को भारत द्वारा हाकी मैच जितने पर हार्दिक बधाई खिलाडियों देश का नाम ऊँचा कर दिया. हमे उन पर गर्व है सभी को बहुत-२ बधाई.
डॉ. वेद व्यथित

Saturday, February 27, 2010

होली की हार्दिक शुभकामनाये

मैं सभी मित्रों को होली की हार्दिक शुभकामनायें प्रदान करता हूँ
इस होली में इश्वर करे आप की मन चाही हो जाये जिस से आप वर्षों से मिलने की आश लगाये बैठे हैं वे अचानक आपके घर स्वयम चल कर आ जाएँ आप के मन की कली खिल जाये आप उन्हें खूब मन चाह रंग लगायें उन से खुद भीगें और उन्हें खूब भिगएं आप दोनों मन चाहे रंगों में सराबोर हो जाएँ आप के घर खूब सरे मेहमान आयें आप के लिए खूब सारी आप की मन पसंद मिठाई लाये
इस बार यह होली ऐसी हो जाये जिसे आप जिन्दगी भर न भूल पायें यह आप की वीडियो रील की तरह आप के मन से स्टोर हो जाये और उसे जब चाहे एकेले में खूब च्लायेनुस का भरपूर आनन्द उठायें
मेरी फिर से प्रार्थना है कि भगवान आप कि सब इच्छाएं पूरी करे पर यह भी सुन लो कि भ्ग्वाजी मेरे बाप का नौकर नही हैजो मेरी सब बात पूरी कर दे उस कि अपनी मर्जी है पर मैंने तो उसे कह ही दिया है शयद मेरी बात वो मान भी ले इस लिए आप बेफिक्र हो कर होली मनाएं खूब नाचें गएँ मौज मनाये होली हुदंग मचाएं
मेरी शुभकामनायें आप के साथ हैं
डॉ.वेद व्यथित
dr.vedvyathit@gmail.com
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Thursday, February 25, 2010

कबीर का कबीर होना

कबीर को कबीर हो जाने दो कबीर यदि कबीर नही हुआ तो क्या होगा महज एक निरक्षर भट्टाचार्य .परन्तु निरक्षर होने पर भिब तो वह निरक्षर नही है कबीर तो अक्षर ब्रह्म का साधक है .यह अक्षर ही तो ब्रह्म है ,यह ब्रह्म ही तो कबीर का राम है जो उस का पिऊ है .उसीपरम पुरुष कि भूरिया या आत्मा है कबर यानि आत्मा और परमात्मा के दर्शन का कबीरी सिधांत प्रकट हो जाने दो .यह परम पुरुष ही तो केवल एक मात्र पुरुष है वहीतो एक मात्र रजा है . यह रजा राम ही तो कबीर का भरतार है कबीर के भरतार का चयन ही तो कबीरी साक्षरता है .यही तो उस की अक्षरताहै उसी कि राज व्यवस्था तो देश का आदर्श है इसी लिए तो रजा राम कि प्रति समर्पित हैं कबीर . इसी का चिन्तन करने वाले जन नायक महात्मा गांधी ने भी इसी कबीरी साक्षरता के आगे अपना मस्तक झुका दिया
वह क्या बात है अक्षर ही कितने थे कबीर कि साक्षरता के बहुत अधिक कहाँ है मात्र ढाई आखर ही तो है जिस में समाई है सम्पूर्ण चेतना सम्पूर्ण ब्रह्मांड और पूर्ण तत्व है जो सम्पूर्णता को आधार दे रहा है यही ढाई आखर .परन्तु जहाँ क्द्न्दित होने लगते हैं ये ढाई आखर कबीर को व्हिंतो खड़ा होना है कबर वहीं तो खड़ा है तभी तो वह कबीर है .परन्तु इतना आसन नही है वहाँ खड़ा होना इन अक्षरों को सहेजे रखना इस लिए तो कबीर को कबीर नही होने देता कोई ,वह व्यवस्था भी यह शासन भी .
तभी तो ता चढ़ मुल्ला बंग दे रहा है कि देश से भगा दो कबर को देश निकला दो .उस का सर कलम करो उसे कैद कर दो किसी अज्ञात स्थान पर ले जाओ कलकत्ता में कोई जगह नही है न तो कबीर के लिए न ही कबीरी अबर्त के लिए .यदिकबीर सामने आया तो हंगामा किया जायेगा उस पर हमला कर देंगे कुर्सियां उठा कर मरेंगे एक महिला को भी नही छोड़ेंगे जो भी उस के खिलाफ बन पड़ेगा करेंगे उसे मिटा कर ही दम लेंगे परन्तु कबीर को तो सोने कि जूतियाँ नही चाहियें .उसे कहाँ अच्छे लगे हैं चिनाशुक और तेल फुलेल गली २ की सखी रिझाने के लिए
उस कि झीनी चाद्रिये ही काफी है उस के शरीर को ढांपने के लिए यह भी छीन लो बेशक कबीर से जंजीरों में जकड़ लो बेशक उसे हठी के पैर से बंधकर बेशक खिच्देगा वह राजपथ पर परन्तु नही छोड़ेगा वह अपना कबीर पना नही लेगा तुम्हारा अनुदान तुम्हारी कृपा दृष्टि उसे नही चाहिए उसे नही नचाएगी माया बेशक उस शिव को नचाया ब्रह्मा को नचाता बेशक वह महा ठगनी है परन्तु जरा ठग कर तो दिखाए कबीर को माया उस के ठेंगे पर क्या बिगड़ेगी कबीर का जैसे कोलकत्ता वैसा ही दिल्ली या कशी व मगहर जहाँ भी रहेगा कबीर कबीर ही रहेगा
नही रुकेगा उस का चदरिया बुनना ऐसी चादर जो बेदाग रहेगी जिस में माया का चाटुकारिता का चरण भात होने का ठकुर सुहाती कहने का कोई दाग नही होगा इसी लिए यही चादर ओढ़ कर ही तो वह कबीर रहेगा बेशक सिर में खडाऊं लगे बेशक उस की कितनी ही परीक्षा ली जाये कबीर भागेगा नही वह राम अक्षर का बीज मन्त्र ले कर रहेगा इस धरती का मन्त्र इस ब्रह्मांड का मन्त्र जो सर्वाधार है जगत का माया का जीव का .व्ही तो महा जल है अंतर कहाँ है जल और जल में एक ही तो है इस जल कि एक ही तो जातहै हरिजन कि जात कौन नीच है कौन उंच है कबीर क तो बस एक ही जात पीरी है हरी जन कि जात यही तो मर्म है कबीर का इसी जातिके संरक्ष्ण में तो लाना है चाहता है कबीर सब को देश को दुनिया को .क्यों कि एक ही रह से तो आये हैं हम सब तो कैसे अलग अलग हो गये यही तो कबीर का प्रश्न है कबीर तो व्ही है जिस में दैवत नही है फूटे ही कुम्भ सब जल एक ही जल तो है यानि महाजल यानि वही राम जिस से कबीर कबीर बन सके
इसी लिए समर्पित है कबीर राम के प्रति बेशक वह उस के गले में रस्सी बांध कर उसे कहीं खींच ले जाये कबीर टॉम कूकर है राम का जहाँ राम ले जाये कबीर तो उत जाये कबीर नही भागेगा रस्सी तोड़ कर उसे ठौर कहाँ है दूसरी जहाज का पंछी तो ठिकाना ढूढने जाता है परन्तु दूसरा ठिकाना कोई और है ही नही इसी लिए राम का यह कूकर तो कहीं नही जायेगा वह तो उस के चरणों में ही रहेगा वहीं जियेगा वहीं मरेगा इसी लिए तो वह कबीर हो पायेगा इसी लिए कबीर को कबीर हो जाने दो सुन्न महल में लजा लेने दो दीया नही तोचारो और घिरा रहेगा अँधेरा कुछ भी सूझेगा अच्छे बुरे का अंतर ही पता नही चलेगा इस लिए जरूरी है कबीर होने के लिए सुन्न महल में दिया जलाना ताकि सब कुछ स्पस्ट हो जाये सब भ्रम दूर हो जाएँ और चमक उठे झिलमिल झिलमिल नूर एक नूर जो बस एक ही है बस वही झिलमिल नूर और कबीर हो जाये कबीर बस हो जाने दो कबीर को कबीर
डॉ.वेद व्यथित

Wednesday, February 24, 2010

स्त्री

स्त्री
पुरुष यानि व्यक्ति
जो सो सकता है पैर फैला कर
सारी चिंताएं हवाले कर
पत्नी यानि स्त्री के
और वह यानि स्त्री
जो रहती है निरंतर जागरूक
और देखती रहती है
आगम की कठोर
नजदीक आती परछाईं को
और सुनती रहती है
उस की कर्कश पदचापों की आह्ट
क्योंकि सोती नही है रातरात भर
कभी उद्हती रहती है
बुखार में कराहते बच्चे को
या बदलती रहती है
छोटे बच्चे के गीले कपड़े
और स्वयम पड़ी रहती है
उस के द्वारा गीले किये बिछौने पर
या गलती है हिम शिला सी
रोते हुए बच्चे को ममत्व का पय दे कर
और कभी कभी देती रहती है
नींद में बद्बदते पति यानि पुरुष के
प्रश्नों का उत्तर
क्योंकी उसे तो जागना ही है निरंतर
डॉ.वेद व्यथित

Tuesday, February 23, 2010

भारत पाक वार्ता पर मुक्तक

कहाँ गये वो बोल तुम्हारे जो लाशों पर बोले थे
सबक सिखायेंगे दुश्मन को बार बार यों बोले थे
जब तक आतंकी हरकत है बात नही होगी उन से
पर इस प्रेम वार्ता के हित मंत्री जी क्यों बोले थे

शायद यद् नही रहता है मंत्री ने क्या बोला है
जब जब आतंकी हमले ने भारत का दिल तोडा है
पर ऐसे नापाक इरादों से मंत्री पर फर्क नही
क्यों की उस ने देश नही कुर्शी से नाता जोड़ा है

शायद कुर्सी तुष्टि और बस वोट सभी कुछ है इन को
चिंता क्या है इन्हें देश की कुर्सी सब कुछ है इन को
ज्यादा दिन अब दूर नही है जब ये देश बेच देंगे
इन बातों का फर्क नही है देश क्या चिंता इन को

डॉ.वेद व्यथित
१५७७ -सेक्टर ३ फरीदाबाद -१२१००४
email-dr.vedvyathit@gmail.com

Sunday, February 21, 2010

Holi

ननुआ ने तो भंग चढाई धोती फाड़ी ललुआ ने
कर रुमाल धुतिया के भैया ताल लगे कलुआ ने
दिल्ली गूंजी सब जग गूंजा खूब सुने अगुआ ने
बड़ी में के गिर चरणों में धोक लगाईं मनुआ ने

चीनी मिल रही पांच रुपया कडुआ तेल मुफ्त में है
डाल मिल रही दो दो रुपया रोटी संग मुफ्त में है
कैसा सुंदर राज है भैया होली खूब मनाओ जी
हाथों को मलते रह जाओ लाली खूब मुफ्त में है
डॉ.वेद व्यथित
१५७७- सेक्टर -३ फरीदाबाद -१२१००४
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dr.vedvyathit@gmail.com

Friday, February 5, 2010

Muktak

जो जनता को नाच नचाते उन को गुंडे नचा रहे
ताल एक हो जाये सब की तालीवे सब बजा रहे
सब की मिली भगत होती है नेता अफसर गुंडों की
नये साल में नाच नाच कर ऐसा ही वे बता रहे

नाच नचाना और नाचना ये शासन का सूत्र यहाँ
मंहगाई बस बढती जायेबस ये शासन का सूत्र यहाँ
चीनी अभी और भी मंहगी होगी नेता कहते हैं
नेता गीरी और मंहगाई का है अच्छा सूत्र यहाँ

आतंकी तो भगने ही थे और जेल में क्या करते
क्या बिरयानी खाते खाते वे बेचारे न थकते
अब तक ही क्या किया आप ने आगे भी तुम क्या करते
छूटना तो था ही था उन और प्रतीक्षा क्या करते

क्या साधारण कानूनों से आतंकी रुक सकते हैं
देश द्रोह जैसे मद्दे को को क्या हम खास समझते हैं
इसी लिए ऐसी घटनाएँ खूब सहज घट जाती हैं
क्यों की जल्दी फाँसीअफजल कोभी न दे सकते हैं

" मोमिजि के रंग "

' " मोमिजि के रंग "

'मोमिजिके रंग ' मेंसुपर्ण मोमिजि के रंग तो हैं ही साथ ही इस अद्भुत रचना में सप्त वर्णीय इन्द्रधनुषी छटा की दिव्यता का अद्भुत पुष्पाभरण है जिसेबहुभाषा विदुषी व प्रख्यात लेखिका डॉ. राज बुधिराजा एवं हिन्दी भाषा के प्रति श्रद्धान्वित व प्रेमानुरागी टोमोको किकुची व योशियो तकाकुराने भिन्न भिन्न पुष्पों से सुसज्जित व समन्वित कर के दिव्यता प्रदान की है इस में दो देश जापान व भारत की अद्भुत मैत्री है सौहार्द है सामंजस्य है प्रेम है स्नेह है और पवित्रता व दिव्यता है इस के साथ साथ इस में प्रकृति सुन्दरी की अनुपम छटा है इस चित्रं का पटल [कैनवस ]सम्पूर्ण पृथ्वी ग्रहहै जिस की इस अनुपम शोभा की अनुकृति को सम्पादक त्रय ने बड़े मनोयोग वत्सलता पूर्ण आत्मीय भाव व स्वांत:सुखाय के रूप में चित्रित किया है
भाषा द्वै के साहित्य में जो जो भी रत्न माणिक्य व मौतिक आदि सम्पादक त्रय को गहरे पैठ करही प्राप्त हुए हैं उन्हें अनथक श्रम पूर्वक इस कृति में अलंकृत किया है भारतीय संस्कृत भाषा साहित्य की प्रारम्भ काल की रचनाओं से ले कर अद्यतन हिन्दी रचनाओं तक एवं इसी प्रकार जापानी भाषा की प्राचीन रचनाओं से ले कर आज तक की सुंदर रचनाओं को मोमिजि के रंग में स्थान दिया है दोनों भाषों की रचनाओ में जो प्राकृतिक सौन्दर्यबोध है वह इन सुकोमल पत्रावलियों के माध्यम से इन रचनाओं में अद्भुत ढंग से उतर आया है और यहीअनुपम सौन्दर्य इस पुस्तक का वैशितय है
यह पुस्तक अपने आप में अलीक अदिव्तीय व असाधारण है क्यों की इतनी सारी सामग्री को एकत्र करना क्रमबद्धता प्रदान करना सहेजना और फिर उस का कुशल सम्पादन करना कोई हंसी खेल बात नही है यह बच्चों का खेल नही है उस के साथ साथ इस सामग्री का लिप्यांतर व भाषांतर करना अत्याधिक श्रम साध्य कार्य है जिस में सम्पादक त्रय ने अपनेज्ञान व कौशल के साथ साथ अपनी निष्ठां व लग्न का भी स्तुत्य परिचय दिया है सम्पादक त्रय का इस के लिए किन शब्दों में साधुवाद दिया जाये वह अनिर्वचनीय है और बड़ी बात तो यह रही कि इस श्रमसाध्य कार्य को याज्ञिक अनुभूति व इस के प्रति फल को यग्य शेष के रूप में स्वीकार कर ईश्वरके प्रति उन का समर्पण भाव उन का बडप्पन नही तो और क्या है जो सदा अनुकरणीय व स्मरणीय है मैं सम्पादक त्रय को साधुवाद व हार्दिक शुभकामनायें तथा बधाई देता हूँ
डॉ.वेद व्यथित
dr.vedvyathit@gmail.com

Wednesday, February 3, 2010

बीमा की महिमा

बड़ी मधुर २ आवाज में
कुछ आने लगे
मुझ जैसे नाचीज को भी
सर कह कर बुलाने लगे
फिर बीमा करवाने के
बिना पूछे ही फायदे बताने लगे
बहुतेरा मना किया
मैं झुंझलाया झल्लाया
पर उनपर इस का कोई
फर्क नही पाया
वह मेरे घर में आतंवादी सा घुस आया
मैं घबरा गया
उस ने मुझे नही मेरी पत्नी को समझाया कि
बीमा के कितने फायदे हैं
उस ने फायदों को बताना शुरू किया
एक एक कर गिनवाना शुरू किया
बड़े आराम से समझाया
और सब से पहले बताया कि
बीमा करवाने के बाद
यदि इन को कुछ हो जाये तो
आप के वारे के न्यारे हो जायेंगे
गरीबी के दिन मिट जायेंगे
आप भी ऐश करेंगी
बच्चे भी मौज उड़ायेंगे
आप को लाखों रूपये
एक ही झटके मिल जायेंगे
उन की समझ में
यह बात आ गई
उन्हें यह बात बहुत भा गई
बस फिरक्या था
उन्होंने बीमा करवानेकी
जिद्द पकड़ ली
और न करवाने पर
कैकई की तरह
कोप भवन में जाने की
तैयारी कर ली
क्यों कि उन्हें हर हल में
मेरा बीमा करवाना था
उस का पूरा फायदा उठाना था
हम ने हजारों ही कहाँ देखे ठेव
पर बीमा के बाद मरने पर
तो लाखों मिलने थे
गरीबी मिटनी थी
उन्हें सब इच्छाएं पूरी करनी थी
बढिया सड़ी खरीदनी थी
गहनेबनवाने थे
बालों को कालाकर के
जवानी के दिन दुबारा लाने थे
बच्चे भी कह रहे थे
हम भी सुखी हो जायेंगे
फटीचर बाप से कम से कम
छुटकारा तो पाएंगे
वारे न्यारे हो जायेंगे
दो चार मोटर साइकिल खरीदेंगे
उन का सैलेंसर निकल कर
शहर भर में घूमेंगे
चलते चलते फब्तियां कसेंगे
दिल को फेंकेंगे
पुलिस को चमका दे कर
भाग जायेंगे
यदि पकड़े गये तो
बड़ा सा नोट दे कर छूट जायेंगे
सभी ने अपने अपने
खूब ख्याली पुलाव पकाए
पर हम ने पसीज पाए
तो भी क्या हुआ
एजेंट बड़ा घाघ था
दूसरे की जेब से
पैसा निकलने में तो
उस का बड़ा कमल था
यही तो उस का सफलतम
बाजारवाद था
उस ने पासा पलता
दूसरा दाव फैंका
रोटी को तवे पर नही
सीधा आंच पर सेका
उस ने मेरी पत्नी को
चाय बनाने भेजा
फिर मुझ से बोला
जल्दी करो अपना नही तो
अपनी पत्नी का फार्म भर दो
मर गई तो हजारों नही
गारंटी से लाखों पाओगे
और यदि पैसा है तो
आप बुत महान हैं
समाज सेवी हैं
कद्रदान हैं
यदि पैसा है तो बेजान में भी जान है
फिर आप तो समझदार हैं
बहुएं तो जलती रहती हैं
वे बेमौत मरती रहती हैं
कुछ मर दी जाती हैं
कुछ मरने को मजबूर कर दे जाती हैं
पैसा हो तो सब ठीक हो जाता है
कुछ ही दिन में आदमी
दूसरी ले आता है
बिन पैसे के अटठारह की लाता है
और पैसा हो तो सोलह की ले आता है
फिर खूब मौज उडाता है
उस ने मुझे क्या क्या
सब्ज बैग दिखलाये
हम दोनों को दो
हुक्म के इक्के भी थमाए
पर उस के ये इक्के भी काम न आये
एजेट को तो हम ने हराया
पर पत्नी नही हारी
उन का बार बार आग्रह था
ऐ जी मन जाओ
पर हम ने उन्हें कहा कि
तुम ही अपना फ़ार्म भरवाओ
परन्तु वह अड़ गईं कि
तुम ही बीमा करवाओगे
पर जब मैं नही मानातो
वे अंदर से बेलन ले आईं
और अपनी नारी वादी
प्रगती शीलता पर उतर आईं
एजेंट डर गया
बेचारा अपने फार्म वहीं
छोड़ कर भग गया
बीमा होने से पहले ही
पालसी का क्लेम मिल गया

डॉ. वेद व्यथित