Saturday, May 29, 2010

पत्रकारिता दिवस पर मेरे प्रश्न
मैं अपने पत्रकार बन्धुओं को आज पत्रकारिता दिवस पर हार्दिक बधाई देता हूँ
इस अवसर पर मैं यह भी पूछना चाहत हूँ कि क्या पत्रकारिता आज राष्ट्रिय मुद्दों पर इमंदारना ढंग से पुन लेत सकती है जो बन्धु मानवाधिकारों के नाम पर देशद्रोहियों का पक्ष रखती है क्या वह राष्ट्रिय पत्रकारिता हो सकती है यह सीधा २देश द्रोह नही तो और क्या है
इस के अतिरिक्त हिन्दू समाज कीछोटी से छोटी घटना को भी पूरे हिन्दू समाज पर आरोपित कर के हिन्दू धर्म को बदनाम करने का जो षड्यंत्र आज हो रह है क्या आज उस का प्रतिकार हो सकेगा
अन्य मतों की बुरी से बुरी कुरीति भी मत के नाम पर आज पत्रकारिता में माफ़ की जा रही हैंक्या उस समय पत्रकारिता की धर चुक जातीहै
एक चौनल से पत्रकार बन्धु ने तो इतना सफेद झूठ बोला की हद हो गई उन का कथन है किमनु स्मृति में शूद्र के कान में सीसा डालने का लिखा है जब कि किसी भी मनु स्मृति में ऐसा नही है यह सफेद झूठ पता नही कब से इस देश में वैमनस्य पैदा करने के लिए चलाया जा रहा है जब कि यह एक डीएम सफेद झूठ है
इसी तरह हमारी सेना को बदनाम करने के लिए उस के खिलाफ समाचारों को प्रमुखता देना भी क्या देश द्रोह नही है सेना के किसी जवान से गलती हो सकती है पर उस का यह मतलब तो नही कीसेना इ गलत हो गई
क्या उन्हें यह नही दीखता की सेना किन परिस्थितियों में काम करती है अपना ह्ग्र्बर ऐश आराम छोड़ कर मित के सामने क्या इतनी आसानी से कोई खड़ा हो सकता है
मेरा निवेदन है की कम से कम राष्ट्रीय पर तो महरबानी रखें
इस के साथ २ क्या चैनल अपने विरूद्ध टिप्पणियों को भी दिखने का कोई जरिया बना सकते हैं जब आप दूसरों की आलोचना करते हैं तो अपनीं आचना क्यों शं नही कर सकते यदि नही कर सकते तो आप इसे स्वतंत्र मिडिया कैसे कह सकते हैं
यह तो आप की मनमानी ही रही जो हो भी रही है
मुझे पता है इस का किसी पर कोई असर नही पड़ेगा पर प्रश्न करने का तो मेरा अधिकार है
पुन:बधाई
डॉ.वेद व्यथित

1 comment:

honesty project democracy said...

बिलकुल सही बात है की अगर शालीनता से की गयी आलोचना को हम सुन नहीं सकते और उसपर सोच विचार नहीं कर सकते तो हमारे नियत में ही कहीं न कहीं खोट है | अपने कार्य पर तर्कसंगत आलोचना का हमें हार्दिक स्वागत हमेशा करना चाहिए तब जाकर हम कुछ अच्छा और नेक काम कर पाएंगे |