Saturday, November 14, 2009


पुरुष यानि व्यक्ति
जो सो सकता है पैर फैला कर
सारी चिंताएँ हवाले कर
पत्नी यानि स्त्री के
और वह यानि स्त्री
जो रहती है निरंतर जागरूक
और और देखती रहतीहै
आगम कि कठोर
नजदीक आती परछाईं को
और सुनती रहती है
उस कि कर्कश पदचापों कि आहट
क्यों कि सोती नही है वह रात रात भर
कभी उडाती रहती है सर्दी में
बच्चों को अपनी ह्रदय अग्नि
और कभी चुप करती रहती है
बुखार में करते बच्चे को
या बदलती रहती है
छोटे बच्चे के गीले कपडे
और स्वयम पडी रहती है
उस केद्वारा गीले किये पर
या गलती है हिम शिला सी
रोते हुए बच्चे को ममत्व कापय दे कर
और कभी कभी देती रहती है
नींद में बडबदाते पीटीआई यानि पुरुष के
प्रश्नों का उत्तर
मैं क्यों कि उसे तो जागना ही निरंतर है

3 comments:

श्याम जुनेजा said...

बहुत सुन्दर रचना है ... स्त्री व्य्था को लेकर पुरुष मन में आ रहे बदलाव का स्वागत है... फिर भी इससे कहीं आगे जाकर सोचने की जरूरत है ... दुखी केवल स्त्री ही नहीं है ... पुरुष के भी दुःख हैं ... संस्कारबद्ध मानसिकता से मुक्त चिंतन की जरूरत है... बहुत कुछ अनर्गल चला जा रहा है जिसे प्रश्नों में घेरे जाने की जरूरत है हमने जिन्दगी की सड़क पर बहुत बहुत अनावश्यक स्पीड ब्रेकर बना डाले है
kavita mein 'yani', 'kyonki' jaise shabdon ke pryog se bachna chahiye

D.P. GIRDHAR said...

Ofcource the secrifice given by woman in upbringing is supreme,this is very well nareted in kavita.But male has his own arena of challenges,in today scenario necessity is to work in mutual co operation.
such heart touching poems give message of passionate feelings of NAARI.
DESH PAUL

Romy Sood said...

kya bekaar si kavita likh di. samaj hi nhi aai