नव गीतिका
यह रचना गजल नही है
रौशनी कैद है और परेशान है
अब जमाने की ये ही तो पहचान है ।
हाँ मैं हाँ बस करो और कुछ न कहो
फिर तो सब से भले आप इन्सान हैं।
भूल कर भी उठाया यदि प्रश्न तो
आप इन्सान कब आप हैवान हैं ।
भूल जाओ यहाँ सच बड़ी चीज है
संच कहने से मिलता नही मान है ।
आँख भी बंद हो , कान मुंह बंद हो
फिर तो बन जाओगे आप परधान है।
झूठ ही तुम कहो जोर से पर कहो
मान लेंगे उसे लोग सच बात है ।
इस जमाने का कैसा ये दस्तूर है
पूजते हैं उसे जो की बदमाश है ।
आप बच्चों के जैसे न बातें करें
जिस से पूरा हो स्वारथ वो भगवान है ।
इस जमाने से कैसे लड़ोगे भला
सांच अब न यहाँ कोई हथियार है ।।
डॉ वेद व्यथित
09868842688
2 comments:
गुनते गुण अपनी परिभाषा,
जग से रही नहीं कुछ आशा।
बिलकुल सही बात!
कुँवर जी,
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