Friday, January 27, 2012

बसंत की दो कविताएँ




बसंत की दो कविताएँ
1
वसंत के आने से
चमक लौट आई है
तुम्हारी आँखों में
वे अधिक चंचल सी
हो गईं लगतीं हैं
उन में मादकता
टपक २ पड़ रही है
ओसे ही
चौकन्ने हुए लग रहे हैं
तुम्हारे कान
कोई भी आह्ट चौंका
देती है उन्हें
ऋतू आसक्त मृगी की भाँति
कोई मधुर स्वर स्वत:
अनुगुंजित हो रहा है उन में
ऐसे ही बिखर रही है
तुम्हारे पास वह गंध
जो वसंत आने पर ही
प्रस्फुटित हिती है
नव पल्लवों से
नव कलिकाओं से
या नव वनस्पतियों के अंग २ से
और जो बसंती बयार बार २
छो रही है तुम को
जिसे तुम्हारे स्पर्श ने
कुछ और अधिक कमनीयता
प्रदान कर दी है
और मन तो जैसे
बौरा ही गया है
बसंत के आने से
आखिर उस ने ही तो
कर दिया है सब बसंती
नही तो इस पतझरे काष्ठ में
कहाँ था यह सब
जिसे तुम बसंती कह रही हो
जिसे तुम मधुमय कह रही हो ||
2
मैं चाहता था
खूब सारा पिला रंग घोलूँ
और तुम्हे सराबोर कर दूं उस में
तुम्हारा अंग २ पवित्र सा हो जाये
तुम पीत वसना हो कर
वसन्ति सुगंध से भर जाओ
परन्तु पसंद नही था तुम्हें
यह रंग बिलकुल भी
तुम तो चाहतीं थीं
गुलाबी रंग में सराबोर होना
परन्तु मेरे लिए
विरोध भी नही क्या था तुमने
और स्वीकार भी नही था तुम्हें वह रंग
क्यों कि हम दोनों ही
अभी अनजान थे
उस रंग से जिस में सराबोर होना था
हम दोनों को
आओ कोशिश करें
उस रंग को घोलने की ||

डॉ. वेद व्यथित
०९८६८८४२६८८



Sunday, January 22, 2012

मेरी दो विपरीत रचनाएँ






शीत की भयंकरता

इस तरह हाड तोड़ सर्दी ने
कर दिए थे सारे उत्साह ठंडे
जमने लगे थे सम्बन्ध
परन्तु फिर भी श्न्वास की ऊष्मा
उर्जावान बनाये हुए थी उन्हें
नही तो शीत ने कहाँ कसर छोड़ी थी जमा देने में
अब तो बस एक ही प्रार्थना है
उर्जावान व गतिवान बने रहें यह श्न्वास
जिस से बचा रहे यह अस्तित्व
इस भयंकर शीत में ||


आग

जब तक आग रहेगी तुम्हारे अंदर
तब तक ही जलते रहोगे तुम
या यह आग तब तक जलाएगी तुहें
जब तक शेष रहेगी तुम्हारे भीतर
यदि यह आग ही बुझ गई तो
पूरी तरह समाप्त हो जायेगा
तुम्हारा अस्तित्व
आग के न रहने पर
इस लिए सहेजे रहो
अपनी अग्नि को किसी तरह निरंतर
शनै:शनै: जलाने के लिए ||




Sunday, January 1, 2012

muktk






करो तसल्ली लोक पल बिल हम ही तो बनवायेंगे
अपने मन से जैसा चाहे हम उस को बनवायेंगे
चाहे तुम कितने भी उस में संशोधन ले कर आना
पर मर्जी जो अपनी होगी उस को ही बनवायेंगे ||

साठ साल से करी तस्सली और साठ लग जायेंगे
कह तो दिया अभी हम ने हम भ्रष्टाचार मिटायेंगे
जब तक स्विस बैंक का पैसा इधर उधर न कर लेंगे
तब तक हम अपने पैरों पर नही कुल्हाड़ी खायेंगे ||

हम को दोष किस लिए देते हम तो हैं बिल ले आये
तुम ही उस में इतने २ संशोधन ले कर आये
अगर सभी संशोधन इस में पास यदि हम कर देते
फिर तो अगले दिन से हम को जेल के अंदर कर देते ||

यदि पास हो जायेगा ये लोक पल बिल संसद में
तब तो एक दरोगा आ कर पकड़ सकेगा संसद में
ऐसे लोक पाल की हड्डी गले नही फंसने देंगे
इस के टुकड़े २ कर के फेंकेंगे हम संसद में ||
कैसी बेशर्मी हैं ये वे दोष दूसरों को देते
उन की मंशा जग जाहिर है पर वे उस को क्यों कहते
इसी लिए कुछ भी कह कर वे खुद की खाल बचायेंगे
और दूसरों के माथे पर खूब दोष मढ़ जायेंगे||