Thursday, January 2, 2014

प्यारी पीड़ा

प्यारी पीड़ा 

पीड़ा इतनी प्यारी क्यों है 
हृदय सीप  में मोती जैसी 
यह इतनी उजयारी क्यों है ? 

जो जो भूल हुईं जीवन में 
भूला कब हूँ याद  सभी हैं 
एक एक कर सभी सामने 
हर दिन खुद आ जाती क्यों हैं 
बहुत चाहता भूलूं उन को 
पर वे भूलें प्यारी क्यों हैं ?

जिन रस्तों पर खूब चला हूँ 
उन से ही क्यों ऊब रहा हूँ 
नई  राह की  चाह लिए क्यों
 मंजिल मंजिल भटक रहा 
नई नई मंजिल अनजानी  
लगती इतनी प्यारी क्यों हैं ?

गहन तिमिर की स्याह निशा में 
आँखों की कोशिश रहती हैं 
अंधकार के चित्र बना कर  
छूने की कोशिश रहती है
 हवा गुजरती यदि निकट से 
आखों को दिख जाती क्यों है ?

बैठे बैठे गहन शून्य में 
कितने रंग भरे सपनों में 
गहन तमस  में आँखें कैसे 
रंग सजाती  है सपनों में 
बिना बात सपनों की माला 
आँखें रोज सजातीं क्यों हैं ??

डॉ वेद व्यथित 
अनुकम्पा -१५७७ सेक्टर - ३ 
फरीदाबाद -१२१००४ 
09868842688