Sunday, June 24, 2012

अँधेरे ही अँधेरे हैं उजाले छुप गये जा कर 
चलो हम रौशनी करने उन्हें ढूंढ लाते हैं |
तपिश जो बढ़ गई है आसमां से आग बरसी है 
चलो उस आग को हम खून दे कर बुझा आते हैं |
सुना है हर तरह वे अपनी बातें  ही सही कहते 
चलो हम आइना उन का उन्ही को दिखा आते हैं |
नही वे मानते कब हैं कभी अपने किये को ही 
उन्ही के कारनामों को उन्हें ही दिखा आते हैं |
बहुत आसन कब है खुद की गलती माँ भर लेना 
चलो उन की कही बातें उन्ही को बता आते हैं |
फुंके अपना ही घर बेशक उजाले तो जरूरी हैं 
चलो हम दीया लेकर फूंक अपना घर ही आते हैं |

डॉ. वेद व्यथित 
०९८६८८४२६८८

Monday, June 18, 2012

रास्ट्रीय जनतांत्रिक गठ्बन्धन ये एन डी ए को अब समाप्त कर दिया जाना चाहिए क्यों कि अब इस का कोई अस्तित्व बाक़ी कहाँ रहा है जब घटक दल अपना २ राग अलाप रहे हैं तो फिर गठबन्ध कैसा इस लिए बी जे पी इस से अलग हो कर अपने अस्तित्व की लड़ाई अकेली ही लड़े इस से बी जे पी को बहुत लाभ होगा नही तो सब के हाथ जोड़ते २ उस का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा वह कहीं की भी नही रहेगी न राम की न काम की 

Sunday, June 3, 2012


कबीर को कबीर हो जाने दो 


कबीर को कबीर हो जाने दो कबीर यदि कबीर नही हुआ तो वह क्या होगा , महज एक निरक्षर भट्टाचार्य  परन्तु  निरक्षर होने पर भी तो वह निरक्षर नही है कबीर तो अक्षर ब्रह्म का साधक है यह अक्षर ही तो ब्रह्म है यह  ब्रह्म है  तो  राम है जो उस का पिऊ  है इस परम परम पुरुष  की बहुरिया  है या आत्मा है यानि आत्मा और परमात्मा के दर्शन की कबीरी सिद्धता प्रकट हो जाने दो वह परम पुरुष ही तो केवल मात्र पुरुष है वही तो राजा है वह राजा राम ही तो भरतार है कबीर के भरतार का चयन ही ही तो कबीरी साक्षरता है वह  साक्षरता ही तो अक्षरता  है उसी की राज्य व्यवस्था देश का आदर्श है इसी लिए तो राम राज के लिए समर्पित है इस का चिन्तन करने वाले मनीषी जन नायक यानि शताब्दी पुरुष गांधी जिन्होंने कबीर की साक्षरता के आगे मस्तक नत कर दिया |
वाह क्या बात है अक्षरत ही कितने हैं कबीर के बहुत अधिक कहाँ है ये अक्षर मात्र ढाई आखर ही तो है दो जमा आधा जिस में समाई है सम्पूर्ण चेतना समर्पण तत्व या सम्पूर्ण ब्रह्मांड इस समूचे ब्रह्मांड को ही आधार दे रहे हैं यही ढाई आखर  परन्तु जहाँ खंडित होने लगते हैं ये अक्षर कबीर वही पर खड़ा दिखाई देता है उसे वही तो खड़ा होअना है तभी तो कबीर है वह परन्तु इतना आसन है कहाँ वहाँ खड़ा होना इन आखरों को सहेजना इसी लिए तो कबीर को कबीर नही देता कोई या व्यवस्था या शासन तभी तो " ता चढ़ मुल्ला बांग दे रहा है " की देश  से भगा दो कबीर को देश निकला दो उस का सर कलम करो उसे कैद कर के रखो किसी अज्ञात स्थान पर ले जाओ कोलकत्ता में कोई जगह नही है कबीर के लिए कबीरी इबारत के लिए यदि सामने आया कबीर तो हंगामा कर देंगे उस पर हमला कर देंगे कुर्सियां उस पर मारेंगे एक महिला को भी नही छोड़ेंगे जो बन पड़ेगा उसे देश से निकलवा कर ही दम लेंगे और उसे अपने खिलाफ मुंह भी नही खोलने देंगे चाहे दिल्ली हो या कोलकत्ता कोई फर्क नही है  मिटा देंगे कबीर को उस के ढाई आखर को पर कबीर को तो सोने की जूतियाँ नही चाहियें उसे कहाँ अच्छे लगते है चिनाकुश और तेल फुलेल गली २ की सखी रिझाने के लिए |
उस की तो झीनी चदरिया ही काफी है उस के शरीर को ढांपने के लिए यह भी छीन लो उस से बेशक जंजीरों से जकड़ लो कबीर को हाथी के पैर से बाँध कर बेशक खिंच्ड़ेगा  वह काशी की गलियों में परन्तु नही छोड़ेगा अपना कबीर पन | नही लेगा तुम्हारा अनुदान ,तुम्हारी कृपा दृष्टि उसे नही चाहिए उसे नही नचाएगी माया , बेशक वह महा ठगनी है परन्तु जरा ठग कर तो दिखाए कबीर को | माया उस के ठेंगे पर क्या बिगड़ेगी उस का जैसा कलकता वैसा ही दूसरा शहर उस के लिए जैसे काशी उस के लिए वैसा ही मगहर जहाँ भी रहेगा कबीर कबीर ही रहेगा क्या बिगड़ेगा उस का मगहर कुछ भी तो नही |
नही रुकेगा उस का चादरिया  बुनना ऐसी चदरिया जो बेदाग़ रहेगी जिस में नही होगा कोई दाग माया का लालच का चाटुकारिता का , चारण भाट  होने का ठकुर सुहाती कहने का , इसी लिए यही चदरिया ओढ़ कर ही तो वह कबीर रहेगा बेशक सिर में खडाऊं लगे , उसे दुत्कार दो उसे भगा दो फटकारो कुछ भी हो जाये परन्तु नही भागेगा कबीर ले कर रहेगा " राम " अक्षर का बीज  मन्त्र |इस धरती का मन्तर ब्रह्मांड का मन्त्र जो सर्वाधार है जगत का , माया का , ब्रह्म का जीव का | वही तो जल है कुम्भ का भी और वही है सागर का जल , जल तो जल ही है अंतर कहाँ है जल और जल में एक ही तो है सब कुछ इसी लिए सब एक ही जाती है इस जल की | हरिजन की जात और कौन उंच है और कौन नीच  कबीर को तो प्रिय है बस हरिजन की जात | यही तो मर्म है कबीर का इसी जात के  रक्षण में तो लाना चहेते हैं कबीर सब को देश को दुनिया को , क्यों अलग २ हैं हम सब एक ही राह से आये हुए हैं हम सब तो कैसे अलग २ हो गये यह तो कबीराना बात  नही है कबीर तो वही है जिस में द्वैत नही है फूटते  ही कुम्भ का  जल ,जल में जल हो जायेगा यानि महा जल यानि वही राम जिस ने कबीर को कबीर बनाया |
इसी लिए समर्पित है कबीर राम के प्रति बेशक वह उस के गले में जेवड़ी यानि रस्सी बाँध कर उसे कहीं भी खींच ले जाये कबीर तो कूकर है राम का | जहाँ राम ले जाये कबीर तो उत जाये कबीर नही भागेगा रस्सी तुड़ा कर उसे और ठौर कहाँ हैं जहाज का पंछी तो ढूँढने जाता है दूसरा ठिकाना परन्तु मिलता नही तो लौट आता है जहाज पर परन्तु राम का यह कूकर तो कहीं नही जायेगा बस उस के चरणों में ही रहेगा वही जियेगा वहीं मरेगा इसी लिए तो वह कबीर हो पायेगा , इसी लिए हो जाने दो कबीर को कबीर | सुन्न महल में  जला लेने दो दीवरा यानि दीपक नही तो घिरा रहेगा अँधेरा चारों ओर|कुछ भी नही सूझेगा अच्छा या बुरा अंतर ही पता नही चलेगा बिना दीपक जलाये इसी लिए जरूरी है कबीर होने के लिए सुन्न महल का दीया जलाना ताकि सब कुछ स्पष्ट हो जाये सब भ्रम दूर हो जाएँ और चमक उठे झिल मिल झिल मिल नूर |एक नूर जो एक ही है बस वही झिल मिल झिल मिल चमके नूर और कबीर हो जाये बस हो जाने दो कबीर को कबीर |
कबीर तेरी बात को समझ , समझ सके न कोय 
जो समझा कबिरा  भय , और न कबिरा होय |
डॉ. वेद व्यथित 
०९८६८८४२६८८ 
 अनुकम्पा - १५७७ सेक्टर ३ 
फरीदा बाद १२१००४