Wednesday, February 3, 2010

बीमा की महिमा

बड़ी मधुर २ आवाज में
कुछ आने लगे
मुझ जैसे नाचीज को भी
सर कह कर बुलाने लगे
फिर बीमा करवाने के
बिना पूछे ही फायदे बताने लगे
बहुतेरा मना किया
मैं झुंझलाया झल्लाया
पर उनपर इस का कोई
फर्क नही पाया
वह मेरे घर में आतंवादी सा घुस आया
मैं घबरा गया
उस ने मुझे नही मेरी पत्नी को समझाया कि
बीमा के कितने फायदे हैं
उस ने फायदों को बताना शुरू किया
एक एक कर गिनवाना शुरू किया
बड़े आराम से समझाया
और सब से पहले बताया कि
बीमा करवाने के बाद
यदि इन को कुछ हो जाये तो
आप के वारे के न्यारे हो जायेंगे
गरीबी के दिन मिट जायेंगे
आप भी ऐश करेंगी
बच्चे भी मौज उड़ायेंगे
आप को लाखों रूपये
एक ही झटके मिल जायेंगे
उन की समझ में
यह बात आ गई
उन्हें यह बात बहुत भा गई
बस फिरक्या था
उन्होंने बीमा करवानेकी
जिद्द पकड़ ली
और न करवाने पर
कैकई की तरह
कोप भवन में जाने की
तैयारी कर ली
क्यों कि उन्हें हर हल में
मेरा बीमा करवाना था
उस का पूरा फायदा उठाना था
हम ने हजारों ही कहाँ देखे ठेव
पर बीमा के बाद मरने पर
तो लाखों मिलने थे
गरीबी मिटनी थी
उन्हें सब इच्छाएं पूरी करनी थी
बढिया सड़ी खरीदनी थी
गहनेबनवाने थे
बालों को कालाकर के
जवानी के दिन दुबारा लाने थे
बच्चे भी कह रहे थे
हम भी सुखी हो जायेंगे
फटीचर बाप से कम से कम
छुटकारा तो पाएंगे
वारे न्यारे हो जायेंगे
दो चार मोटर साइकिल खरीदेंगे
उन का सैलेंसर निकल कर
शहर भर में घूमेंगे
चलते चलते फब्तियां कसेंगे
दिल को फेंकेंगे
पुलिस को चमका दे कर
भाग जायेंगे
यदि पकड़े गये तो
बड़ा सा नोट दे कर छूट जायेंगे
सभी ने अपने अपने
खूब ख्याली पुलाव पकाए
पर हम ने पसीज पाए
तो भी क्या हुआ
एजेंट बड़ा घाघ था
दूसरे की जेब से
पैसा निकलने में तो
उस का बड़ा कमल था
यही तो उस का सफलतम
बाजारवाद था
उस ने पासा पलता
दूसरा दाव फैंका
रोटी को तवे पर नही
सीधा आंच पर सेका
उस ने मेरी पत्नी को
चाय बनाने भेजा
फिर मुझ से बोला
जल्दी करो अपना नही तो
अपनी पत्नी का फार्म भर दो
मर गई तो हजारों नही
गारंटी से लाखों पाओगे
और यदि पैसा है तो
आप बुत महान हैं
समाज सेवी हैं
कद्रदान हैं
यदि पैसा है तो बेजान में भी जान है
फिर आप तो समझदार हैं
बहुएं तो जलती रहती हैं
वे बेमौत मरती रहती हैं
कुछ मर दी जाती हैं
कुछ मरने को मजबूर कर दे जाती हैं
पैसा हो तो सब ठीक हो जाता है
कुछ ही दिन में आदमी
दूसरी ले आता है
बिन पैसे के अटठारह की लाता है
और पैसा हो तो सोलह की ले आता है
फिर खूब मौज उडाता है
उस ने मुझे क्या क्या
सब्ज बैग दिखलाये
हम दोनों को दो
हुक्म के इक्के भी थमाए
पर उस के ये इक्के भी काम न आये
एजेट को तो हम ने हराया
पर पत्नी नही हारी
उन का बार बार आग्रह था
ऐ जी मन जाओ
पर हम ने उन्हें कहा कि
तुम ही अपना फ़ार्म भरवाओ
परन्तु वह अड़ गईं कि
तुम ही बीमा करवाओगे
पर जब मैं नही मानातो
वे अंदर से बेलन ले आईं
और अपनी नारी वादी
प्रगती शीलता पर उतर आईं
एजेंट डर गया
बेचारा अपने फार्म वहीं
छोड़ कर भग गया
बीमा होने से पहले ही
पालसी का क्लेम मिल गया

डॉ. वेद व्यथित

2 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

हा हा हा हा..
आपका यह बीमा पुराण बहुत ही रोचक लगा...!!
लेकिन इसमें बहुत सच्चाई भी निहित है....आज कल यही तो हो रहा है..
बहुत ही सार्थक कविता लगी आपकी...
बधाई...

vedvyathit said...

aap ka aabhar aap ne kvita pdhi yh aap ka bddpn hai jo ise sraha bhut 2 dhnyavad