Saturday, January 9, 2010

मुक्तक

सभी ओर चर्चे हैं धरती गर्म बहुत हो जाएगी
बर्फ पिघल जाएगी सारी बस पानी हो जाएगी
उस के बाद बहुत सा पानी धरती पर भर जायेगा
पर सोचो ये ऐसीनोबत किस के कारण आएगी

कोन सुन रहा है धरती की गर्म आह निकली कितनी
सर्पों की जिह्वा की जैसी ज्वालायें निकली कितनी
फिर भी तो पीड़ा दायी हम उत्सर्जन कर रहे यहाँ
किस के मुंह से बस कहने की बात अभी निकली कितनी

जिन पर एक निवाला ही था उस को ही छिना तुमने
तन ढकने को एक लंगोटी वह भी छिनी है तुमने
देश बचा है जैसे तैसे उस को भी गिरवी रख दो
सारा कुछ तो बेच खा गये छोड़ा ही क्या है तुमने

इसी तरह जनता का पैसा कोड़ा वोडा खायेंगे
कानूनों का लिए सहारा खूब ही उसे पचाएंगे
क्या कर लोगे उन का तो कुछ बल नही बांका होगा
अध् नंगे भूखे प्यासे वे बेचारे मर जायेंगे

कुछ महीने भी चली नही जो सडक बनाई है तुमने
रोड़ी जो लिख दी कागज में कहाँ लगाईं है तुमने
इसी तरह पुल और भवन भी तुमने खूब बनाये हैं
खा कर सारा माल देश का मौज उड़ाई है तुमने

देश हुआ आजाद तो फिर आजाद उसे रहने देते
राजनीति के हाथों लोगों को गिरवी तो मत रखते
कहीं तेलगी कहीं ये कोड़ा मुंह की रोटी छीन रहे
राजनीति यदि सेवा होती फिर ये एसा क्यों करते

सेवा सेवा की रट ने हिसेवा को बदनाम किया
खाली घर जिन के होते थे उन को माला माल किया
ये है सेवा ये उस का फल कैसी ये बेशर्मी है
शर्म करो सेवा कहने से देशद्रोह का कम किया

3 comments:

प्रिया said...

sare prashna hi thoos hai.....lekin jawabdeh prashasan hi kyon? ham kyo nahi

महावीर said...

तथ्यों के आधार पर एक प्रभावशाली रचना है. एक सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद.
महावीर शर्मा

हरकीरत ' हीर' said...

देश हुआ आजाद तो फिर आजाद उसे रहने देते
राजनीति के हाथों लोगों को गिरवी तो मत रखते
कहीं तेलगी कहीं ये कोड़ा मुंह की रोटी छीन रहे
राजनीति यदि सेवा होती फिर ये एसा क्यों करते

बहुत तीखा प्रहार है आपकी कविता में .....!!

एक सशक्त और प्रभावशाली कविता .....!!