Monday, March 10, 2014

आज कल " आप " मौसम हुए 
क्या भरोसा है कब क्या हुए।  
बात ईमान से कह रहे 
क्योंकि वे ही हरिश चंद हए। 
दूसरों की हैं गंदी कमीजें 
साफ़ तो आप पहने हुए।  
देश में सब के सब चोर हैं 
कैसे लगते हैं कहते हुए।  
तोड़ दीं  तुमने कसमें सभी 
आप अपने सगे न हुए।  
जिन को मंचों से गालीं बकीं 
जीभ से उन के तलुए छुए।  
कथनी करनी कहाँ एक है 
अंतर दोनों में कितने हुए 
शर्म फिर भी कहाँ आप को 
जूते खा २ के खुश तुम हुए। 
शर्ट फाड़ी सभा के लिए 
हाथ में ब्लैक बेरी लिए 
कुर्सी मकसद रही "आप "का 
आदमी आम पीछे हुए।  
डॉ वेद व्यथित 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वर्तमान पर सन्नाट व्यंग।

vedvyathit said...

bhai prven ji kin shbdon meaabhar vykt kroon hardik aabhar swikar kren