हम न लीक बनाई क्यों है
मौन साधना भंग हुई तो
इस में शब्द कहाँ दोषी हैं
नभ से तारा टूट गिरा तो
इस में वह कहाँ दोषी है
दोष दूसरों को देने की
हम ने लीक बनाई क्यों है ||
आखिर कितनी देर रहे दिन
सूरज को भी ढल जाना है
रात चांदनी भी ढल जाती
और अमावस को आना है
फिर अंधियारे से नफरत की
जाने रीत बनी क्यों है ||
जो भी रंग आकर्षित करते
सारे फीके पड़ जाता हैं
कितने आकर्षित यौवन हो
सारे ढीले पड़ जाते हैं
फिर क्यों बेरंगी सांसों से
दूरी खूब बनाई क्यों है ||
4 comments:
बेहद गहन भावो का समावेश्।
प्रेम और ईर्ष्या के बीच फँसी जीवन की कहानी।
समय के आगे लीक बदलती भी है !
समय और रिश्तो के आगे ''लीक'' खुदबखुद बन जाती है ...
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