हम ने लीक बनी क्यों है
मौन साधना भंग हुई तो
इस में शब्द कहाँ दोषी हैं
नभ से तारा टूट गिरा तो
इस में वह कहाँ दोषी है
दोष दूसरों को देने की
हम ने लीक बनाई क्यों है ||
आखिर कितनी देर रहे दिन
सूरज को भी ढल जाना है
रात चांदनी भी ढल जाती
और अमावस को आना है
फिर अंधियारे से नफरत की
जाने रीत बनी क्यों है ||
जो भी रंग आकर्षित करते
सारे फीके पड़ जाता हैं
कितने आकर्षित यौवन हो
सारे ढीले पड़ जाते हैं
फिर क्यों बेरंगी सांसों से
दूरी खूब बनाई क्यों है ||
9 comments:
सार्थक सोच को दर्शाती कविता।
दोष निकालने वाला समाज सदा ही दोषभरा रहता है।
अपनी ही गलतियों से भागने के लिए ....हमने ये लीक बना डाली ....
बहुत ही सार्थक सोच के साथ आपकी ये कविता .......आभार
humesha hum apni galtiya chipane ke liye dusro me dosh dhundte hai.....very nice :)
a good poem ,which gives us a great message...
♥
आदरणीय वेद व्यथित जी
सादर अभिवादन !
आपके यहां पहुंच कर प्रसन्नता हुई ।
प्रस्तुत गीत के भाव बहुत श्रेष्ठ है …
आख़िर कितनी देर रहे दिन
सूरज को भी ढल जाना है
रात चांदनी भी ढल जाती
और अमावस को आना है
फिर अंधियारे से नफ़रत की
जाने रीत बनी क्यों है ?
बहुत सुंदर !
सविनय निवेदन यह है कि गीत के तुकांत समान होते तो आनंद आ जाता … बनी क्यों है , बनाई क्यों है कुछ खटक रहा है …
हार्दिक मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
♥
आदरणीय वेद व्यथित जी
सादर अभिवादन !
आपके यहां पहुंच कर प्रसन्नता हुई ।
प्रस्तुत गीत के भाव बहुत श्रेष्ठ है …
आख़िर कितनी देर रहे दिन
सूरज को भी ढल जाना है
रात चांदनी भी ढल जाती
और अमावस को आना है
फिर अंधियारे से नफ़रत की
जाने रीत बनी क्यों है ?
बहुत सुंदर !
सविनय निवेदन यह है कि गीत के तुकांत समान होते तो आनंद आ जाता … बनी क्यों है , बनाई क्यों है कुछ खटक रहा है …
हार्दिक मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
blame game kaa zamaana hai na, apni kami ko chipaanaa hee to har kisi kaa maksad ho gaya hai. Very well expressed!
वाह ...बहुत खूब कहा आपने ...
Post a Comment